(सुजीत नाथ)
पोर्ट ब्लेयर, 26 जनवरी (भाषा) डॉ. रतन चंद्र कार को 1998 में अंडमान निकोबार के एक दूरस्थ द्वीप में खसरे जैसी बीमारियों के प्रकोप से पीड़ित जारवा जनजाति के लोगों के इलाज के लिए केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन की ओर से मिली सूचना पर उनका पूरा परिवार परेशान हो गया था। लेकिन इस कॉल ने कार के जीवन को नया मोड़ दे दिया और वह बाद में जारवा लोगों के डाक्टर के रूप में मशहूर हुए।
आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए योगदान को लेकर कार को राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली और उन्हें इस साल पद्दम सम्मान पाने वाले लोगों की सूची में शामिल किया गया।
डॉ कार ने प्रतिकूल स्थितियों का सामना करते हुए जारवा लोगों के इलाज का प्रस्ताव स्वीकार किया। इसके बाद वह कदमतला और लखरालुंगटा में जारवा जनजाति समूह के लोगों का इलाज करने लगे और अंततः उनके साथ घुल-मिल गए।
माना जाता है कि जारवा समुदाय के लोग जहरीले धनुष-बाणों से लैस रहते हैं और वे बाहरी लोगों को अपने क्षेत्र में घुसना पसंद नहीं करते हैं। दुर्गम इलाकों को पार कर उनके क्षेत्रों तक पहुंचा जा सकता है।
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर कार को अंडमान निकोबार द्वीप समूह से पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, “ अपनी खुशी जताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं यह उपलब्धि हासिल करने में मेरी मदद करने वाले सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं।’’
डॉ कार की पत्नी अंजलि ने अपने पति से जारवा लोगों के इलाज की चुनौती स्वीकार करने और उन्हें विलुप्त होने से बचाने का आग्रह किया था।
उनके दोनों पुत्र तनुमय और अनुमय अपने पिता की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित थे। लेकिन विचार करने के बाद डॉ कार ने यह महसूस किया कि उन्हें अपने जीवन में ऐसा अवसर कभी नहीं मिलेगा। इसके बाद उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार करने का फैसला किया।
इससे पहले उन्होंने नगालैंड में कोन्याक जनजाति के बीच कुछ समय तक काम किया था और वह अनुभव उन्हें इस बार काम आया।
उन्होंने कहा, “वह मेरे जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था जब मैं मध्य अंडमान में कदमतला रवाना हुआ जो पोर्ट ब्लेयर से करीब 120 किमी दूर है। कदमतला की यात्रा करते समय मैं जारवा लोगों की संभावित प्रतिक्रिया के बारे में सोचकर थोड़ा घबराया हुआ था। क्या वे मुझे स्वीकार करेंगे या मुझ पर हमला करेंगे… उन्हें खसरा और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए इलाज पर ध्यान देने की आवश्यकता थी।”
पांच घंटे से अधिक की यात्रा के बाद डॉ. कार और उनकी टीम कदमतला पहुंची और वहां से जारवा जनजाति के इलाकों में से एक लखरालुंगटा जाने के लिए 45 मिनट तक एक छोटी नाव से यात्रा की।
उन्होंने कहा, “मैं जारवा लोगों के लिए उपहार स्वरूप नारियल और केले ले गया था। मैंने उनमें से कुछ लोगों को समुद्र तट पर खड़ा देखा, वे हमें देख रहे थे और उनमें से कुछ धनुष-बाणों से लैस थे। मैं नाव से उतर कर धीरे-धीरे उनकी ओर चलने लगा।’’
कार ने कहा, “मैं डरा हुआ था… मैं धीरे-धीरे चल रहा था, बाकी जारवा मेरे पीछे-पीछे चलने लगे। मैंने झोपड़ियों में से एक में प्रवेश किया और एक घायल जारवा को देखा। जंगली सूअर का शिकार करने के दौरान वह घायल हो गया। मैंने कुछ दवाई लगाई और और वहां से वापस कदमताल आ गया।”
अगले दिन जब कार लखरालुंगटा गए तो उन्होंने उनके व्यवहार में बदलाव देखा। उन्होंने कहा कि वे लोग स्वागत के मूड में थे क्योंकि घायल जारवा पर दवा का अच्छा असर हुआ था।
भाषा अविनाश माधव
माधव
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