नयी दिल्ली, 22 सितंबर (भाषा) कर्नाटक के हिजाब विवाद पर उच्चतम न्यायालय में 10 दिन तक चली बहस बृहस्पतिवार को पूरी हो गयी और शीर्ष अदालत ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान मुस्लिम याचिकाकर्ताओं के वकील ने जहां कक्षाओं में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने के लिए अंतिम प्रयास किया तथा इस बात पर जोर दिया कि राज्य सरकार को वर्दी की तुलना में शिक्षा के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए।
उन्होंने हिजाब पर प्रतिबंध लगाकर मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकने के कथित प्रयासों का विरोध करते हुए महिला सशक्तीकरण की अपनी बात पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के चर्चित नारे का भी उल्लेख किया।
मुस्लिम लड़कियों की ओर से पेश कई वकीलों ने इस बात पर अधिक जोर दिया कि लड़कियों को हिजाब पहनने से रोकने से उनकी शिक्षा खतरे में पड़ जाएगी, क्योंकि वे कक्षाओं में भाग लेना बंद कर सकती हैं।
मुस्लिम लड़कियों के वकीलों की ओर से दी गई दलीलों के बाद, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
पीठ ने बुधवार को मुस्लिम छात्राओं की ओर से पेश वकीलों से कहा था कि वे बृहस्पतिवार को एक घंटे के भीतर अपनी दलील पूरी कर लें। पीठ ने यह भी कहा था, ‘‘हम अपना धैर्य खो रहे हैं और यह सुनवाई का ओवरडोज (के समान) है।’’
उच्च न्यायालय ने 15 मार्च को उडुपी में ‘गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज’ की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा दायर उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिनमें उन्होंने कक्षाओं के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। अदालत ने कहा था कि यह (हिजाब) इस्लाम धर्म में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।
राज्य सरकार ने पांच फरवरी 2022 को दिए आदेश में स्कूलों तथा कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा पहुंचाने वाले वस्त्रों को पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
उच्चतम न्यायालय में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गयी है।
भाषा सुरेश अविनाश
अविनाश
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