फर्जी तथ्यों को रद्द किये बिना लोक अदालत के आदेश को पलटा या निरस्त नहीं किया जा सकता : न्यायालय |

फर्जी तथ्यों को रद्द किये बिना लोक अदालत के आदेश को पलटा या निरस्त नहीं किया जा सकता : न्यायालय

फर्जी तथ्यों को रद्द किये बिना लोक अदालत के आदेश को पलटा या निरस्त नहीं किया जा सकता : न्यायालय

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:51 PM IST, Published Date : May 18, 2022/10:22 pm IST

नयी दिल्ली, 18 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि लोक अदालत के रिकॉर्ड पर रखे गये फर्जी तथ्यों को निरस्त किये बिना उसके फैसले को पलटा या निरस्त नहीं किया जा सकता है।

‘लोक अदालत’ एक वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र है और यह एक ऐसा मंच है जहां अदालत में लंबित या पूर्व-मुकदमे के स्तर पर लंबित विवादों या मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया या समझौता किया जाता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यद्यपि वह मानती है कि लोक अदालत के फैसले के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य होगी, खासकर तब जब ऐसी याचिका समझौते के तरीके में धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए दायर की जाती है, लेकिन एक रिट अधिकार क्षेत्र वाली अदालत लोक अदालत के आदेश को बेपरवाह तरीके से निरस्त नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा, ‘‘लोक अदालत के रिकॉर्ड पर रखे गये फर्जी तथ्यों को निरस्त किये बिना उसके आदेश को न तो पलटा जा सकता है, न निरस्त किया जा सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के अप्रैल 2015 के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर अपना फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने रिट याचिकाओं का निपटारा करते हुए जुलाई 2012 के उस आदेश को वापस ले लिया था, जिसके तहत लोक अदालत द्वारा मूल मुकदमे के वादियों के बीच समझौता किया गया था।

उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि लोक अदालत के आदेश के निष्कर्षों की चर्चा किये बिना इसे रद्द करने का निर्णय कायम नहीं रखा जा सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय का ऐसा निर्णय कानून के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत है, जिसके तहत पक्षकारों के बीच समझौते या सहमति के आधार पर दिये गये आदेशों की पवित्रता और निश्चयात्मकता को संरक्षित किया जाता है।’’

अपीलों की अनुमति देते हुए, न्यायालय ने कहा कि एक समझौता डिक्री की शर्तों को तब तक टाला नहीं जा सकता जब तक कि धोखाधड़ी का आरोप साबित नहीं हो जाता।

इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त करते हुए लोक अदालत का आदेश बहाल कर दिया।

भाषा

सुरेश पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)