कानूनी पेशे में महिला-पुरुष का ‘निम्न’ अनुपात, रूढ़िवादी धारणा को लेकर चिंता : सीजेआई चंद्रचूड़ |

कानूनी पेशे में महिला-पुरुष का ‘निम्न’ अनुपात, रूढ़िवादी धारणा को लेकर चिंता : सीजेआई चंद्रचूड़

कानूनी पेशे में महिला-पुरुष का ‘निम्न’ अनुपात, रूढ़िवादी धारणा को लेकर चिंता : सीजेआई चंद्रचूड़

:   Modified Date:  March 25, 2023 / 04:42 PM IST, Published Date : March 25, 2023/4:42 pm IST

मदुरै(तमिलनाडु), 25 मार्च (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई.चंद्रचूड़ ने शनिवार को कानूनी पेशे में ‘निम्न’ महिला-पुरुष अनुपात को रेखांकित करने हुए महिलाओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने का आह्वान किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि युवा, प्रतिभाशाली महिला वकीलों की कोई कमी नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि चेम्बर्स महिलाओं को नियुक्त करने को लेकर ‘सशंकित’ रहते हैं और धारणा बनाकर चलते हैं कि उनकी ‘पारिवारिक’ जिम्मेदारियां उनके पेशे के रास्ते में रुकावट के तौर पर सामने आएंगी।

कानूनी पेशे में महिला-पुरुष के ‘निम्न’ अनुपात को रेखांकित करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘आंकड़े बताते हैं कि तमिलनाडु में 50 हजार पुरुष पंजीकृत है जबकि महिलाओं के पंजीकरण की संख्या महज पांच हजार है। कानूनी पेशा महिलाओं को समान अवसर देने वाला पेशा नहीं है और यही स्थिति पूरे देश में हैं।’’

सीजेआई ने कहा, ‘‘दौर बदल रहा है। हाल में जिला अदालतों में न्यायिक अधिकारियों की हुई भर्ती में करीब 50 प्रतिशत महिलाएं थीं, लेकिन हमें महिलाओं के लिए समान अवसर बनाने की जरूरत है ताकि वे इस रास्ते से इसलिए नहीं हटें क्योंकि जीवन में प्रगति करने के लिए उन्हें कई गुना जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं।’’

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ जिला अदालत परिसर में अतिरिक्त अदालत इमारत की आधारशिला रखने और जिला एवं सत्र न्यायालय के साथ-साथ मयिलादुथुराई में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत के उद्घाटन के लिए आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

इस कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने भी हिस्सा लिया।

सीजेआई ने कहा, ‘‘चेम्बर महिला अधिवक्ताओं की भर्ती को लेकर सशंकित रहते हैं। इसकी वजह महिलाओं की प्रतिभा की कमी नहीं है, युवा महिलाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। लेकिन इसलिए ऐस होता है क्योंकि हमारे कृत्य रूढीवादी धारणाओं पर आधारित होते हैं और हमारी ये धारणाएं महिलाओं के खिलाफ हैं।’’

उन्होंने कहा कि दो रूढीवादी धारणाओं ने महिलाओं को अवसर देने से रोका है, ‘‘पहला भर्ती करने वाले चेम्बर्स यह मानकर चलते हैं कि महिला पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से कार्य को लंबे घंटे नहीं दे सकेगी और दूसरी समाज के तौर पर हम मजबूर करते हैं कि बच्चों की देखभाल महिलाओं की ही जिम्मेदारी है।’’

भाषा धीरज माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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