सामाजिक विरोध का सामना करने के बावजूद अधिक लोग लिंग परिवर्तन सर्जरी के लिए आगे आ रहे हैं

सामाजिक विरोध का सामना करने के बावजूद अधिक लोग लिंग परिवर्तन सर्जरी के लिए आगे आ रहे हैं

सामाजिक विरोध का सामना करने के बावजूद अधिक लोग लिंग परिवर्तन सर्जरी के लिए आगे आ रहे हैं
Modified Date: December 18, 2022 / 07:21 pm IST
Published Date: December 18, 2022 7:21 pm IST

(पायल बनर्जी)

नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) लिंग परिवर्तन सर्जरी के लिए आगे आने वाले लोगों को सामाजिक विरोध और कई अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि इसके बाजवूद अधिक लोग इस तरह की सर्जरी के लिए आगे आ रहे हैं।

आपको यह जानकर कैसा लगता है कि आपका शरीर ही आपका नहीं है? ऐसा जानकार दम घुटने लगता है और निराशा होती है। एक ट्रांसजेंडर महिला 25 वर्षीय नयरा ने लगभग 24 वर्षों तक ऐसा ही महसूस किया, जब तक कि उसने लिंग परिवर्तन सर्जरी नहीं करवाई।

 ⁠

एक पुरुष के रूप में जन्मी, नयरा की पहचान लैंगिक असंगति के साथ की गई थी। लैंगिक असंगति वह शब्द है जिसमें लैंगिक स्थिति जन्म के समय से भिन्न होती है।

ऐसा व्यक्ति अपने माता-पिता, भाई-बहनों, साथियों और बड़े पैमाने पर समाज के साथ संघर्ष में रहता हैं, जिससे वह खुद को तनावग्रस्त महसूस करता है और यह समझता है कि वह भेदभाव का शिकार है।

यहां शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल में ‘प्लास्टिक, एस्थेटिक, रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी एंड जेंडर एफर्मेशन क्लिनिक’ के निदेशक और विभाग अध्यक्ष डॉ. रिची गुप्ता ने कहा, ‘‘यह निश्चित रूप से एक तंत्रिका विज्ञान, आनुवंशिक और हार्मोन से जुड़ी स्थिति है।’’

परिवार के सदस्यों से समर्थन नहीं मिलने और सामाजिक विरोध का सामना करने के बावजूद, नयरा ने मन और शरीर दोनों से महिला बनने के लिए लिंग परिवर्तन सर्जरी कराई।

उन्हें 2020 में ‘फेमिनाइजिंग हार्मोन थेरेपी’ पर रखा गया था और जून में उनकी ‘वैजिनोप्लास्टी’ की गई थी।

‘वैजिनोप्लास्टी’ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रजनन नलिका का निर्माण या पुनर्निर्माण किया जाता है। इसके बाद उन्होंने अगस्त में ‘ब्रेस्ट ऑग्मेंटेशन सर्जरी’ कराई।

नयरा ने कहा, ‘‘मुझे एक पुरुष के शरीर में घुटन महसूस होती थी। मैं जब सुबह उठती थी तो अपनी त्वचा खरोंचने का मन करता था और मन करता था कि मुझे इस पुरुष शरीर से छुटकारा मिल जाये। मेरे माता-पिता कभी यह नहीं समझ पाए कि मैं क्या कर रही थी।’’

उन्होंने कहा कि समय के साथ जैसे-जैसे वह अपनी पहचान के बारे में मुखर होती गई, उसके रिश्तेदार और अन्य इसे स्वीकार करने में असमर्थ होते गये।

नयरा ने कहा, ‘‘वे मुझे धार्मिक स्थानों और मनोचिकित्सकों के पास ले गए क्योंकि उन्हें लगा कि मुझे इस बीमारी से ठीक होने की जरूरत है क्योंकि वे इसे एक बीमारी मानते थे। अंत में, मैंने उस प्रक्रिया से गुजरने का फैसला किया। इसके बाद मुझे घर छोड़ने के लिए कहा गया। मेरा अब तक का सफर काफी कठिन रहा है।’’

उन्होंने कहा कि सर्जरी के बाद भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ है, हालांकि उन्हें अब इस बात का संतोष है कि उनका शरीर, उनका अपना है।

अमृत (24) को भी लगभग नौ साल लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। इस प्रक्रिया के तहत उनकी हार्मोन थेरेपी की गई और नवंबर में एक ‘फ्लैप सर्जरी’ की गई ताकि उन्हें पुरुष बनाया जा सके।

अमृत अभी भी ठीक हो रहा है और महाराष्ट्र में अपने गृह नगर वापस जा चुका है।

अमृत ​​ने कहा कि उसे 2020 में मर्दाना हार्मोन थेरेपी पर रखा गया था, जिसके बाद उसकी आवाज भारी हो गई और उसने दाढ़ी बढ़ाना शुरू किया।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं एक महिला के शरीर में फंसा हुआ महसूस करता था। मैं कभी भी खुद को आईने में नग्न नहीं देख सकता था। मुझे लगा कि मेरे परिवार में कोई भी मुझे समझ नहीं पाएगा, इसलिए मैं उनसे बात नहीं कर सका।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उस प्रक्रिया के बारे में पता चला जिसके माध्यम से मैं एक पुरुष का शरीर प्राप्त कर सकता था और मैंने डॉ. रिची गुप्ता से संपर्क किया।’’

वर्ष 2020 में जब अमृत ने आखिरकार अपने परिवार को बताया तो उन्होंने उसका फैसला मान लिया।

डॉ. रिची गुप्ता ने कहा कि जब उन्होंने लगभग 20 साल पहले इस प्रकार की सर्जरी शुरू की थी तो साल में केवल पांच-छह मरीज ही सामने आते थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 250 के आसपास हो गई है।

भाषा

देवेंद्र नरेश

नरेश


लेखक के बारे में