लॉकडाउन के दौरान पिछले साल करीब 15 प्रतिशत विवाहित महिलाओं को नहीं मिल पाए गर्भनिरोधक | Nearly 15 per cent of married women could not get contraceptives last year during lockdown

लॉकडाउन के दौरान पिछले साल करीब 15 प्रतिशत विवाहित महिलाओं को नहीं मिल पाए गर्भनिरोधक

लॉकडाउन के दौरान पिछले साल करीब 15 प्रतिशत विवाहित महिलाओं को नहीं मिल पाए गर्भनिरोधक

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:51 PM IST, Published Date : July 5, 2021/2:46 pm IST

नयी दिल्ली, पांच जुलाई (भाषा) देश में कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए पिछले साल लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान कम आय वाले परिवारों की करीब 15 प्रतिशत विवाहित महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें गर्भनिरोधक नहीं मिल पाए। एक अध्ययन में यह बात सामने आई।

अध्ययन के अनुसार, वैश्विक महामारी से पहले सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने वाली महिलाओ में से करीब 16 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें महावारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले पैड नहीं मिल सके या सीमित मात्रा में मिले।

एक वैश्विक सलाहकार समूह ‘डेलबर्ग’ ने ‘‘भारत में कम आय वाले परिवारों की महिलाओं पर कोविड-19 का असर’’ शीर्षक से एक अध्ययन जारी किया। इस अध्ययन के तहत 10 राज्यों की करीब 15,000 महिलाओं और 2,300 पुरुषों के अनुभवों एवं नजरिए के बारे में पता किया गया। यह महिलाओं पर कोविड-19 के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को लेकर किए गए सबसे वृहद अध्ययनों में से एक है।

अध्ययन में कहा गया, ‘‘वैश्विक महामारी से पहले सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में से करीब 16 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें मार्च से नवंबर के बीच पैड नहीं पाए या सीमित मात्रा में मिले। इसके अलावा, 15 प्रतिशत विवाहित महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें गर्भनिरोधक नहीं मिल पाए। इसका मुख्य कारण वैश्विक महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं तक पहुंच को लेकर चिंताएं थी।’’

अध्ययन में यह भी पाया गया कि वैश्विक महामारी से पहले कामकाजी लोगों में करीब 24 प्रतिशत महिलाएं थीं, लेकिन अपनी नौकरी गंवाने वाले जिन लोगों को दोबारा काम नहीं मिल पाया है, उनमें 43 प्रतिशत महिलाएं हैं। इसमें पाया गया कि महिलाओं को उनके काम का भुगतान नहीं किए जाने के मामले बढ़े है।

इसमें कहा गया है कि वैश्विक महामारी की आर्थिक मार उन महिलाओं पर अधिक पड़ी है, जो पहले से ही कमजोर वर्ग से संबंध रखती थीं, जिनमें मुसलमान, प्रवासी, विधवा, पति से अलग रह रहीं और तलाकशुदा महिलाएं शामिल हैं। अध्ययन के अनुसार, हर तीन में से एक महिला संकट से निपटने में सरकारी की मदद को सबसे अहम मानती है।

‘डेलबर्ग एडवाइजर्स’ की श्वेता तोतापल्ली ने कहा, ‘‘भारत में महिलाओं पर वैश्विक महामारी की मार विनाशकारी और हैरान करने वाली है। यह स्पष्ट है कि अब तक महिलाओं को संकट से निपटने में मदद करने के लिए सरकारी मदद अत्यावश्यक साबित हुई हैं। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि इस तरह की मदद विशिष्ट वर्गों की जरूरतों के लिए और भी अधिक लाभकारी कैसे हो सकती है।’’ तोतापल्ली ने कहा कि इस प्रकार के व्यय देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अच्छा निवेश हैं।

इस अध्ययन में 10 राज्यों (बिहार, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) के लोगों को शामिल किया गया था, जो पूरे भारत में कम आय वाले परिवारों की 63 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह अध्ययन ‘फोर्ड फाउंडेशन’, ‘रोहिणी नीलेकणी फिलैन्थ्रॉपीज’ और ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ के सहयोग से पूरा किया गया।

भाषा सिम्मी उमा

उमा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)