एनआईए ने यासीन मलिक को मौत की सजा देने संबंधी याचिका पर बंद कमरे में सुनवाई करने का अनुरोध किया

एनआईए ने यासीन मलिक को मौत की सजा देने संबंधी याचिका पर बंद कमरे में सुनवाई करने का अनुरोध किया

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  • Publish Date - November 10, 2025 / 08:21 PM IST,
    Updated On - November 10, 2025 / 08:21 PM IST

नयी दिल्ली, 10 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि 2017 के आतंकी वित्तपोषण मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मौत की सजा देने की एनआईए की अपील पर सुनवाई बंद कमरे में की जाए।

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि एनआईए के वकील, विशेष लोक अभियोजक अक्षय मलिक द्वारा कार्यवाही बंद कमरे में करने और एक निजी वर्चुअल लिंक उपलब्ध कराने का अनुरोध करने के बाद याचिका पर विचार किया जाएगा।

तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश हुए यासीन मलिक ने कहा कि अपील पर निर्णय लेने में लगभग तीन साल की देरी के कारण उसे मानसिक यातना झेलनी पड़ी।

पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 28 जनवरी की तारीख मुकर्रर की।

यासीन मलिक ने सितंबर में उच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल किए गए 85 पन्नों के हलफनामे में दावा किया कि उसने लगभग तीन दशकों तक राज्य द्वारा अनुमोदित एक ‘‘बैकचैनल’’ तंत्र में प्रमुख भूमिका निभाई और प्रधानमंत्रियों, खुफिया प्रमुखों और यहां तक कि कारोबारी दिग्गजों के साथ मिलकर जम्मू और कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए काम किया।

जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) प्रमुख मलिक तिहाड़ जेल में बंद है और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।

एक निचली अदालत ने 24 मई 2022 को अलगाववादी नेता को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

मलिक ने यूएपीए सहित सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया था, अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

सजा के खिलाफ अपील करते हुए एनआईए ने इस बात पर जोर दिया कि किसी आतंकवादी को सिर्फ इसलिए आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और मुकदमे में शामिल नहीं होने का फैसला किया है।

एनआईए ने सजा को बढ़ाकर मृत्युदंड करने का अनुरोध करते हुए कहा कि यदि ऐसे खूंखार आतंकवादियों को मृत्युदंड नहीं दिया गया, तो आतंकवादियों को मृत्युदंड से बचने का रास्ता मिल जाएगा।

भाषा शोभना दिलीप

दिलीप