एक बार कर्मी वेज बोर्ड का मानदंड स्वीकार लेते हैं तो वे उसमें खामी नहीं ढूंढ सकते : अदालत |

एक बार कर्मी वेज बोर्ड का मानदंड स्वीकार लेते हैं तो वे उसमें खामी नहीं ढूंढ सकते : अदालत

एक बार कर्मी वेज बोर्ड का मानदंड स्वीकार लेते हैं तो वे उसमें खामी नहीं ढूंढ सकते : अदालत

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:29 PM IST, Published Date : October 14, 2022/4:12 pm IST

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने टाइम्स ग्रुप की प्रकाशक बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड के खिलाफ पूर्व कर्मचारियों की याचिका खारिज करते हुए कहा है कि एक बार कर्मियों ने वेतन बोर्ड को लेकर प्रबंधन द्वारा अपनाए गए मानदंडों और कार्यप्रणाली को स्वीकार कर लिया है तो वे बाद में इसमें गलतियां नहीं ढूंढ सकते।

अदालत ने 80 से अधिक ऐसी याचिकाओं को खारिज कर दिया जिसमें मजीठिया वेज बोर्ड के तहत निर्धारित वेतनमान के अनुसार कंपनी को उनके वेतन में वृद्धि करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया।

श्रम अदालत के पीठासीन न्यायाधीश राज कुमार ने कहा, ‘‘मेरे विचार से, एक बार प्रबंधन द्वारा अपनाए गए मानदंड/पद्धति को कर्मचारियों द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो बाद में कर्मी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने में प्रबंधन द्वारा अपनाए गए उपरोक्त मानदंडों में खामी नहीं ढूंढ सकते।’’

न्यायाधीश ने प्रबंधन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राज बीरबल और अधिवक्ता रवि बीरबल द्वारा दी गई दलीलों को स्वीकार कर लिया, कि कर्मियों ने विभिन्न पत्रों और रसीदों के साथ यह स्वीकार किया कि उन्हें प्रबंधन से उनकी पूरी और अंतिम राशि प्राप्त हुई थी।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी जिरह के दौरान स्वीकार किया कि उन्हें एक अप्रैल 2014 से उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख तक मजीठिया वेज बोर्ड वेतनमान के तहत उनका संशोधित वेतन और बकाया प्राप्त हुआ था।

अदालत ने कहा, ‘‘उन्होंने (याचिकाकर्ताओं) यह भी स्वीकार किया है कि उन्हें उनकी पूरी परिलब्धियां यानी उनका पूरा और अंतिम बकाया बिना किसी विरोध के जैसे कि उनकी ग्रेच्युटी, भविष्य निधि आदि रकम प्राप्त हो गई है। कुछ कर्मियों को इस बात की जानकारी नहीं है कि उनका प्रारंभिक पदनाम या अंतिम पदनाम क्या था।’’

अदालत ने कहा, ‘‘कुछ कर्मियों ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार उचित पदोन्नति दी गई थी।’’

अदालत ने कहा कि कर्मचारियों ने वेतन बोर्ड के अनुसार संशोधित वेतन और बकाया निर्धारित करने में प्रबंधन द्वारा अपनाए गए मानदंडों और कार्यप्रणाली को स्वीकार किया, और कर्मियों के कर्मचारी संघ ने भी बोर्ड की सिफारिशों का पालन करने के लिए प्रबंधन के प्रति आभार व्यक्त किया।

अदालत ने 10 अक्टूबर को पारित 53-पृष्ठ के आदेश में कहा कि एसीडी (सुनिश्चित करियर उन्नति)/ पदोन्नति स्वत: नहीं दी जाती बल्कि यह सेवाओं के संतोषजनक समापन के अधीन है। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि प्रत्येक दस वर्ष की अवधि के दौरान एसीडी का निर्धारण स्वत: नहीं होती है, बल्कि यह कर्मियों द्वारा कर्तव्यों के संतोषजनक प्रदर्शन के अधीन है और इसलिए, वर्तमान याचिकाएं जहां तक एसीडी दिए जाने के संबंध में है, विचार योग्य नहीं हैं।’’

अदालत ने यह भी कहा कि प्रबंधन ने कुछ याचिकाकर्ताओं को उनकी असंतोषजनक सेवाओं और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के संबंध में समय के साथ विभिन्न पत्र जारी किए हैं। श्रम अदालत ने समान मुद्दों वाले कर्मियों की 86 याचिकाओं का निपटारा कर दिया।

शिकायतकर्ताओं ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद प्राप्त राशि में वृद्धि का अनुरोध करते हुए कहा था कि वे मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार बकाया वेतन और/या अंतरिम राहत के कारण ‘दावा राशि’ के हकदार थे, जिसे कंपनी द्वारा कथित तौर पर उन्हें देने से अस्वीकार कर दिया गया।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मजीठिया वेज बोर्ड के तहत संशोधित वेतनमान के निर्धारण के बाद कर्मी यह दिखाने में पूरी तरह विफल रहे हैं कि कैसे उनके मूल वेतन में भारी कमी आई।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मेरी राय है कि प्रबंधन द्वारा यह सही दलील दी गई कि मजीठिया वेज बोर्ड की खंड संख्या 20 (आई) के अनुसार, किसी भी कर्मचारी को संशोधित वेतनमान से अधिक नहीं दिया जाना था।’’

साथ ही न्यायाधीश ने कहा कि अदालत की राय में, प्रबंधन ने सही तर्क दिया है कि संशोधित वेतनमान की अधिकतम सीमा से अधिक नए मूल के निर्धारण का दावा मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के अनुरूप नहीं है।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मेरी भी राय है कि प्रबंधन ने आगे सही तर्क दिया है कि उसने कर्मचारी के एचआरए, परिवहन भत्ते आदि का निर्णय करते समय विधिवत वेतन पर विचार किया, और मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार तालिका चार मानदंड के अनुसार डीए दिया जाना है।’’

अदालत ने कहा कि दावेदारों ने सेवानिवृत्ति के बाद याचिका दायर की थी। न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता अपने दावे का निर्धारण करने में विफल रहे कि कैसे मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार संशोधित वेतनमान के निर्धारण के बाद उनके मूल वेतन को ‘‘काफी कम’’ कर दिया गया।

भाषा आशीष पवनेश

पवनेश

 

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