नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह का विपक्षी दलों ने बहिष्कार करने का ऐलान किया
नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह का विपक्षी दलों ने बहिष्कार करने का ऐलान किया
नयी दिल्ली, 24 मई (भाषा) विपक्ष के 19 दलों ने संसद के नये भवन के उद्घाटन समारोह का सामूहिक रूप से बहिष्कार करने का बुधवार को ऐलान किया और आरोप लगाया कि केंद्र की मौजूदा सरकार के तहत संसद से लोकतंत्र की आत्मा को निकाल दिया गया है तथा समारोह से राष्ट्रपति को दूर रखने का ‘अशोभनीय कृत्य’ ‘‘सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान’’ और लोकतंत्र पर सीधा हमला है।
वहीं दूसरी तरफ, सरकार ने विपक्ष के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि विपक्षी पार्टियों को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार को संसद के नये भवन का उद्घाटन करने वाले हैं।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक), जनता दल (यूनाइटेड), आम आदमी पार्टी(आप), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा), समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने उद्घाटन समारोह का संयुक्त रूप से बहिष्कार करने की घोषणा की है।
समारोह का संयुक्त रूप से बहिष्कार करने वाले दलों में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा, नेशनल कांफ्रेंस, केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची (वीसीके), मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कषगम (एमडीएमके) और राष्ट्रीय लोकदल भी शामिल हैं।
इनके अलावा, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने भी उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा की है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 28 मई को संसद के नए भवन के उद्घाटन के लिए सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया गया है और वे “अपने विवेक के अनुसार फैसला करेंगे”।
शाह ने संवाददाताओं से कहा कि ब्रिटिश शासन द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित करने के प्रतीक स्वरूप प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिए गए ऐतिहासिक राजदंड (सेंगोल) को नये संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। यह राजदंड अभी इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा हुआ है।
उन्होंने कहा कि कार्यक्रम को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
समारोह का बहिष्कार करने की विपक्षी दलों की घोषणा को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने उनसे अपने रुख पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया।
जोशी ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘बहिष्कार करना और अनावश्यक मुद्दे को मुद्दा बनाना सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं उनसे इस फैसले पर पुनर्विचार करने और समारोह में शामिल होने की अपील करता हूं।’’
जोशी ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष, संसद के संरक्षक हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री को संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया है।
विपक्ष के 19 दलों ने एक संयुक्त बयान जारी कर आरोप लगाया, ‘राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, नये संसद भवन का उद्घाटन करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय न केवल राष्ट्रपति का घोर अपमान है, बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है…।’
उनके मुताबिक, भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि ‘संघ के लिए एक संसद होगी, जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन होंगे जिन्हें क्रमशः राज्यसभा और लोकसभा के रूप में जाना जाएगा।’
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति न केवल राष्ट्राध्यक्ष होते हैं, बल्कि वह संसद का अभिन्न अंग भी हैं क्योंकि वही संसद सत्र आहूत करते हैं, सत्रावसान करते हैं और साल के प्रथम सत्र के दौरान दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित भी करते हैं। संक्षेप में, राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती है। फिर भी, प्रधानमंत्री ने उनके बिना नये संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया।”
इन विपक्षी दलों ने दावा किया कि यह ‘अशोभनीय कृत्य’ सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान करता है और संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता है।
उन्होंने कहा, ‘जब लोकतंत्र की आत्मा को ही संसद से निकाल दिया गया है, तो हमें नयी इमारत का कोई महत्व नहीं दिखता। हम नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं।’
उन्होंने यह भी कहा, ‘हम इस निरंकुश प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे, और अपना संदेश सीधे भारत के लोगों तक ले जाएंगे।”
विपक्षी दलों की इस सामूहिक घोषणा के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और विपक्ष के कई अन्य नेताओं ने कहा कि उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों नहीं कराया जाना और समारोह में भी उन्हें आमंत्रित नहीं किया जाना ‘‘देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है।’’
राहुल ने यह भी कहा कि संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों से बनती है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, ‘‘संसद में ‘लोकतंत्र’ की शहनाई बजनी चाहिए, लेकिन जब से स्वघोषित विश्वगुरु पधारे हैं ‘एकतंत्र’ की तोप चलाई जा रही है। इमारत नहीं, नीयत बदलो!’’
आप के संजय सिंह ने ट्वीट किया, ‘‘संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू जी को आमंत्रित न करना उनका घोर अपमान है। यह भारत के दलित आदिवासी व वंचित समाज का अपमान है। मोदी जी द्वारा राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करने के विरोध में आम आदमी पार्टी उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करेगी।’’
राजद के सांसद मनोज झा ने कहा, ‘‘अगर राष्ट्रपति महोदया संसद के नए भवन का उद्घाटन करतीं तो यह परंपरा के अनुकूल होता और संविधान के सर्वोपरि होने की पुष्टि होती। लेकिन प्रधानमंत्री किसी की कहां सुनते हैं। विपक्ष के अधिकतर दलों ने इस पक्ष में अपनी राय रखी कि संविधान सर्वोपरि है।’’
एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि संसद के नये भवन का उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को करना चाहिए और अगर ऐसा नहीं होता है तो उनकी पार्टी उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होगी।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने नये संसद भवन का उद्घाटन करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले को लेकर उन पर निशाना साधते हुए कहा कि यह उनके खुद के पैसों से निर्मित मकान का ‘गृह प्रवेश’ नहीं है।
वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के प्रमुख गुलाम नबी आजाद ने कहा कि नये संसद भवन के निर्माण का प्रस्ताव सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव के समय आया था, लेकिन यह ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
आजाद ने अब इसका निर्माण होने को अच्छा कदम करार दिया।
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