विपक्षी दलों ने पंजाब में विकास प्राधिकरणों के अध्यक्ष पद पर मुख्यमंत्री की जगह मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर आप सरकार पर निशाना साधा

विपक्षी दलों ने पंजाब में विकास प्राधिकरणों के अध्यक्ष पद पर मुख्यमंत्री की जगह मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर आप सरकार पर निशाना साधा

विपक्षी दलों ने पंजाब में विकास प्राधिकरणों के अध्यक्ष पद पर मुख्यमंत्री की जगह मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर आप सरकार पर निशाना साधा
Modified Date: June 22, 2025 / 10:32 pm IST
Published Date: June 22, 2025 10:32 pm IST

चंडीगढ़, 22 जून (भाषा) शहरी विकास प्राधिकरणों के अध्यक्ष के रूप में मुख्यमंत्री की जगह मुख्य सचिव को नियुक्त करने के पंजाब सरकार के फैसले की राज्य के विपक्षी दलों ने रविवार को कड़ी आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि यह आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल की ‘राज्य पर अपना नियंत्रण मजबूत करने की एक चाल’ है।

इससे पहले, शनिवार को पंजाब मंत्रिमंडल ने सभी शहरी विकास प्राधिकरणों की अध्यक्षता मुख्य सचिव को सौंपने का फैसला किया और कहा कि इस ‘साहसिक सुधार’ का उद्देश्य विकेन्द्रीकृत शासन को मजबूत करना, निर्णय लेने में तेजी लाना और प्रशासनिक ढांचे को जमीनी स्तर के मुद्दों पर तेजी से कार्य करने के लिए सशक्त बनाना है।

यह निर्णय राष्ट्रीय मॉडल की व्यापक समीक्षा पर आधारित था, जहां ऐसे निकायों का नेतृत्व आईएएस अधिकारी या मंत्री करते हैं, न कि मुख्यमंत्री। अहमदाबाद, न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण, कानपुर, बेंगलुरु और अन्य में ऐसा देखा गया है।

 ⁠

कैबिनेट बैठक के बाद जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि मुख्यमंत्री विकास प्राधिकरणों के अध्यक्ष हैं, लेकिन उनकी व्यस्तताओं के कारण कभी-कभी इन प्राधिकरणों का काम प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने रविवार को कैबिनेट के फैसले की निंदा की और कहा कि ‘मुख्य सचिव की विस्तारित भूमिका पंजाब के आत्मसम्मान पर सीधा हमला है’।

बाजवा ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में आरोप लगाया, ‘मुख्यमंत्री भगवंत मान ने न सिर्फ पंजाब की सत्ता को दिल्ली की मर्जी के आगे गिरवी रख दिया है?, बल्कि उन्होंने सत्ता के लाभ और विशेषाधिकारों के लिए अपनी आत्मा तक बेच दी है। पंजाब के मुख्य सचिव दिल्लीवालों द्वारा नियंत्रित पंजाब विकास आयोग से आदेश लेते हैं, जिससे पंजाब के निर्वाचित मुख्यमंत्री महज कठपुतली बनकर रह गए हैं। यह पंजाब के लोकतांत्रिक जनादेश का एक प्रकार से वास्तविक तख्तापलट है।’

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी आप सरकार के फैसले की निंदा की।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘यह कदम इस बात का अंतिम प्रमाण है कि पंजाब पर अब गैर-पंजाबियों का सीधा नियंत्रण है और भगवंत मान के माध्यम से शासन करने का दिखावा भी समाप्त हो गया है।’

बादल ने कहा, ‘पंजाब के इतिहास में कभी भी किसी नौकरशाह को किसी प्राधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री और उनके मंत्री पदेन सदस्य हों।’

उन्होंने पूछा, ‘क्या मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगी अब अपने अधीनस्थ अधिकारियों की अध्यक्षता वाली बैठकों में भाग लेंगे?’

कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैरा ने भी आप सरकार के फैसले की निंदा की और कहा, ‘यह निर्णय लोकतांत्रिक सिद्धांतों का ऐतिहासिक और खतरनाक क्षरण है, क्योंकि यह प्रभावी रूप से निर्वाचित मुख्यमंत्री को दरकिनार करता है और महत्वपूर्ण शासन कार्यों को एक नौकरशाह को सौंपता है।’

खैरा ने एक बयान में कहा, ‘भारत की आजादी के 75 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक चुने हुए मुख्यमंत्री — भगवंत मान — की जगह किसी अफसर को इतनी अहम जिम्मेदारी सौंप दी गई है। यह पंजाब के लोकतांत्रिक ताने-बाने पर एक स्पष्ट हमला है और स्पष्ट संकेत है कि अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के वास्तविक मुख्यमंत्री की भूमिका संभाल ली है।’

भाषा शुभम दिलीप

दिलीप


लेखक के बारे में