गंगा के उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण में पैकेजिंग अपशिष्ट सर्वाधिक: अध्ययन
गंगा के उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण में पैकेजिंग अपशिष्ट सर्वाधिक: अध्ययन
नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) गंगा नदी के उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण में सर्वाधिक मात्रा पैकेजिंग अपशिष्ट की है। एक नये अध्ययन में यह बात सामने आई।
इस क्षेत्र में कई संकटग्रस्त प्रजातियों का आवास है।
झारखंड में साहिबगंज जिले के लाल बथानी और राधानगर के बीच के खंड का चयन इसलिए किया गया क्योंकि इसमें 34 किलोमीटर का उच्च जैव विविधता वाला क्षेत्र शामिल है, जो गंगा डॉल्फिन और ‘स्मूथ कोटेड ओटर्स’ (दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पाये जाने वाले ऊदबिलाव की एक प्रजाति) जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का आश्रय स्थल है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के शोधकर्ताओं द्वारा ‘सस्टेनेबिलिटी’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में गंगा के 76 किलोमीटर क्षेत्र में 37,730 मलबे के टुकड़ों का दस्तावेजीकरण किया गया।
कुल अपशिष्ट में पैकेजिंग अपशिष्ट का हिस्सा 52.4 प्रतिशत था, जिसमें खाद्य पदार्थों के रैपर, एकल-उपयोग पाउच और प्लास्टिक की थैलियां शामिल थे।
प्लास्टिक के टुकड़े 23.3 प्रतिशत के साथ, सर्वाधिक मात्रा में पाया गया दूसरा अपशिष्ट था, इसके बाद तंबाकू से संबंधित कूड़ा 5 प्रतिशत और कप, चम्मच और प्लेट जैसे एकल-उपयोग वाले कटलरी 4.7 प्रतिशत थे। मछली पकड़ने का सामान, कपड़ा और मेडिकल प्लास्टिक भी कम मात्रा में मौजूद थे।
डूब क्षेत्र में सबसे अधिक प्रदूषण देखा गया, जहां प्रति वर्ग मीटर घनत्व 6.95 था, जो नदी तटरेखाओं की तुलना में लगभग 28 गुना अधिक था, जहां प्रति वर्ग मीटर घनत्व 0.25 था।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट का स्तर समान था, तथा उच्च और निम्न जनसंख्या घनत्व वाले स्थानों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं देखा गया।
मौसमी अंतर नगण्य थे, लेकिन अध्ययन में पाया गया कि मानसून के बाद बाढ़ ने नदी में कचरा लाकर मलबे की भरपाई कर दी। अकेले उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र में, कुल मलबे का 61 प्रतिशत दर्ज किया गया, जिसमें बड़ी मात्रा में फेंके गए मछली पकड़ने के जाल और स्टायरोफोम शामिल थे, जो जलीय प्रजातियों के लिए खतरा पैदा कर रहे थे।
मलबे में घरेलू कचरे का योगदान 87 प्रतिशत था, जबकि मछली पकड़ने के उपकरण का योगदान 4.5 प्रतिशत और धार्मिक चीजों का योगदान 2.6 प्रतिशत था।
संगठित अपशिष्ट संग्रहण और निस्तारण प्रणालियों का न होना प्रदूषण स्तरों के बढ़ने के एक प्रमुख कारक के रूप में पहचाना गया।
यह सर्वेक्षण 2022 और 2024 के बीच किया गया। इस सर्वेक्षण में प्लास्टिक कचरे को मापने और वर्गीकृत करने के लिए ट्रांसेक्ट-आधारित नमूने (नमूना संग्रहण की एक विधि) का उपयोग किया गया।
भाषा प्रशांत सुभाष
सुभाष

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