संसदीय समिति ने देश भर में चिकित्सा सीट के असमान वितरण पर चिंता जताई
संसदीय समिति ने देश भर में चिकित्सा सीट के असमान वितरण पर चिंता जताई
नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) संसद की एक समिति ने देशभर में मेडिकल सीटों के असमान वितरण और चिकित्सा शिक्षा की भारी लागत पर चिंता जताते हुए कहा है कि ‘‘ऐसा लगता है कि गरीब अभिभावक के बच्चों को चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिला दिलाने वाला कोई है ही नहीं’’।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने राज्यसभा में बृहस्पतिवार को प्रस्तुत की गई अपनी 167वीं रिपोर्ट में सीट वितरण के मुद्दे को उठाते हुए कहा कि जहां कुछ राज्यों में मेडिकल सीट की संख्या अधिक है, वहीं प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 75 एमबीबीएस सीट के राष्ट्रीय औसत की तुलना में कुछ राज्यों में सीट की भारी कमी है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि सरकार दिल्ली में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने के लिए नये चिकित्सा महाविद्यालय खोले, ताकि राष्ट्रीय राजधानी के छात्रों को चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करने के लिए अन्य राज्यों में या यहां तक कि विदेश न जाना पड़े।
देश में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता पर अपनी रिपोर्ट में निहित अपनी सिफारिशों/टिप्पणियों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई को अस्वीकार करते हुए, समिति ने दृढ़तापूर्वक सिफारिश की कि एनएमसी (राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग) को उन राज्यों में नये चिकित्सा महाविद्यालयों की स्थापना के लिए दिशानिर्देश जारी करने चाहिए, जहां प्रति 10 लाख जनसंख्या पर सौ से कम एमबीबीएस सीट हैं।
यह पाया गया कि कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु में प्रति 10 लाख आबादी पर लगभग 150 एमबीबीएस सीट हैं, जबकि पुडुचेरी में लगभग 10 लाख की आबादी पर 2,000 या उससे भी अधिक एमबीबीएस सीट हैं।
उच्च सदन में बृहस्पतिवार को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि एक ओर जहां कुछ अन्य राज्यों में प्रति 10 लाख आबादी पर 50 से भी कम सीट हैं, वहीं बिहार में प्रति 10 लाख आबादी पर केवल 21 सीट हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि आवश्यक बुनियादी ढांचा और संकाय पद उपलब्ध हैं, तो किसी भी कॉलेज, चाहे वह पुराना हो या नया, को चरणबद्ध तरीके से स्नातक एमबीबीएस सीट की संख्या अधिकतम 250 तक बढ़ाने की अनुमति देने पर विचार किया जा सकता है।
समिति ने इस बात को फिर से दोहराया कि देश में चिकित्सा शिक्षा की वहनीयता चिंता का विषय बनी हुई है, क्योंकि चिकित्सा शिक्षा की लागत बहुत अधिक है, जो 60 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये या उससे भी अधिक है, ‘‘मानो, गरीब अभिभावक के बच्चों को चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिला दिलाने वाला कोई है ही नहीं।’’
रिपोर्ट में इस बात का समर्थन किया गया है कि सरकार निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में 50 प्रतिशत सीट पर शुल्क संरचना लागू कर सकती है और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क एमबीबीएस की इन 50 प्रतिशत सीट पर लगाया जा सकता है, जबकि शेष 50 प्रतिशत सीट के लिए शुल्क का निर्धारण प्रत्येक राज्य की शुल्क नियामक समिति के परामर्श से किया जाए।
समिति ने अपनी इस सिफारिश को दोहराया कि मंत्रालय राज्यों के सहयोग से पात्र छात्रों के लिए आवश्यकता-आधारित छात्रवृत्ति पर विचार करे।
समिति ने यह भी कहा कि एमबीबीएस की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों की भारी संख्या और विभिन्न कॉलेजों में सीट की कम उपलब्धता को देखते हुए, बड़ी संख्या में छात्र विदेश स्थित चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिला लेते हैं।
हालांकि, विदेशी मेडिकल स्नातकों को विभिन्न राज्यों में स्थायी पंजीकरण प्राप्त करने में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
भाषा सुभाष सुरेश
सुरेश

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