राष्ट्रपति- राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख, मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे: कर्नाटक ने न्यायालय में कहा
राष्ट्रपति- राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख, मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे: कर्नाटक ने न्यायालय में कहा
नयी दिल्ली, नौ सितंबर (भाषा) कांग्रेस नीत कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल नाममात्र के प्रमुख हैं और वे केंद्र तथा राज्य दोनों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं।
कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यन ने प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्यवाही से छूट प्रदान करता है क्योंकि उनके पास कार्यपालिका की जिम्मेदारी नहीं है।
उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए सुब्रमण्यन ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर की पीठ को बताया कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपाल की संतुष्टि, मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही है।
राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई के आठवें दिन अपनी दलीलों में सुब्रमण्यन ने कहा कि संविधान राज्य में निर्वाचित सरकार के साथ समानांतर प्रशासन की व्यवस्था नहीं करता है।
प्रधान न्यायाधीश गवई ने सुब्रमण्यम से पूछा कि क्या सीआरपीसी की धारा 197 के तहत, जो लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी से संबंधित है, सरकार को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना पड़ता है।
इस पर वरिष्ठ वकील ने कहा कि इस न्यायालय के कई निर्णय हैं, जिनमें यह माना गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं और सीआरपीसी की धारा 197 के संबंध में अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं।
इससे पहले तीन सिबंतर को पश्चिम बंगाल सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि विधेयक के रूप में जनता की आकांक्षाओं को राज्यपालों और राष्ट्रपति की ‘‘मनमर्जी और इच्छाओं’’ के अधीन नहीं किया जा सकता, क्योंकि कार्यपालिका को विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से रोका गया है।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शासित राज्य सरकार ने कहा था कि राज्यपाल संप्रभु की इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते हैं और विधानसभा द्वारा पारित विधेयक की विधायी क्षमता की जांच करने के लिए आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जो न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
न्यायालय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए 14 प्रश्नों की जांच कर रहा है, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या संवैधानिक प्राधिकारी विधेयकों पर अनिश्चित काल तक स्वीकृति रोक सकते हैं और क्या न्यायालय अनिवार्य समय-सीमा लागू कर सकते हैं।
भाषा शोभना मनीषा
मनीषा

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