चंडीगढ़, 24 मई (भाषा) पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने ‘‘मौखिक और लिखित’’ शिकायतें प्राप्त होने के बाद ‘‘संस्था के हित में’’ और न्यायाधीश की ‘‘प्रतिष्ठा की रक्षा’’ के लिए अदालत के एक न्यायाधीश से एक मामला वापस ले लिया है। यह जानकारी मुख्य न्यायाधीश के एक आदेश से मिली।
अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी विशेष मामले को किसी विशेष पीठ को सौंपने या किसी विशेष पीठ से वापस लेकर किसी अन्य न्यायाधीश को सौंपने की मुख्य न्यायाधीश की शक्ति ‘‘पूरी तरह स्वतंत्र और न्यायिक समीक्षा से मुक्त’’ है।
यह आदेश याचिकाकर्ता रूप बंसल के वकील मुकुल रोहतगी द्वारा इस मामले को वापस लेने पर आपत्ति जताने के बाद आया है। याचिकाकर्ता रूप बंसल ने 17 अप्रैल को अपने खिलाफ हरियाणा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा पंचकूला में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था।
याचिका पर न्यायमूर्ति महावीर सिंह सिंधु ने सुनवाई की थी और 2 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश शील नागू ने कुछ ‘मौखिक और लिखित’ शिकायतें प्राप्त होने के बाद न्यायमूर्ति सिंधु से मामला वापस ले लिया और एक अन्य पीठ गठित कर दी, जिसमें वह स्वयं भी शामिल थे तथा मामले को 12 मई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। मुख्य न्यायाधीश शील नागू ने ऐसा कदम ‘‘विवाद को समाप्त करने और संस्थान तथा संबंधित न्यायाधीश को किसी और शर्मिंदगी से बचाने के लिए किया।’’
रोहतगी ने मामले को वापस लेने पर आपत्ति जताते हुए दलील दी थी कि जिस मामले पर एक पीठ सुनवाई कर चुकी है और फैसला सुरक्षित रख लिया है, उसे उससे वापस लेकर किसी अन्य एकल पीठ को नहीं सौंपा जा सकता, भले ही उसमें मुख्य न्यायाधीश ही शामिल हों।
शुक्रवार को पारित आदेश में कहा गया है, ‘‘न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिंधु की एकल पीठ से इस मामले को वापस लेने का कारण शिकायत (मौखिक और लिखित) की प्राप्ति थी, जिसने मुख्य न्यायाधीश को उक्त एकल पीठ से इस मामले का रिकॉर्ड मंगवाने और 12 मई को अपराह्न 3.30 बजे मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक अन्य एकल पीठ गठित करने के लिए बाध्य किया, ताकि शिकायत का निपटारा किया जा सके, विवाद को समाप्त किया जा सके और मामले का यथाशीघ्र निर्णय करके संस्थान और संबंधित न्यायाधीश को किसी और शर्मिंदगी से बचाया जा सके।’’
मुख्य न्यायाधीश के आदेश में कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश को कुछ शिकायतें प्राप्त हुईं और इन शिकायतों ने मुख्य न्यायाधीश को संस्थान के हित में तथा न्यायमूर्ति महावीर सिंह सिंधु की प्रतिष्ठा और गरिमा को बनाए रखने के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
इसमें कहा गया है कि चूंकि मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति महावीर सिंह सिंधु ने 2 मई को की थी और इसे सुरक्षित रख लिया था तथा शिकायतों की जानकारी मुख्य न्यायाधीश को देर से 8-9 मई को मिली, इसलिए प्रतिक्रिया के लिए बहुत कम समय उपलब्ध था।
आदेश के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश ने 10 मई को प्रशासनिक आदेश पारित करके एक कठोर कदम उठाया और न्यायमूर्ति सिंधु से इस मामले को वापस ले लिया तथा मामले को 12 मई को सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश की एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील द्वारा मामला वापस लेने पर उठायी गई आपत्ति पर आदेश में कहा गया, ‘‘इसमें कोई विवाद नहीं है कि मुख्य न्यायाधीश ‘रोस्टर’ (कार्य विभाजन सूची) के मामले में सर्वेसर्वा हैं, लेकिन जब मुख्य न्यायाधीश द्वारा रोस्टर या प्रशासनिक आदेश के माध्यम से किसी मामले को किसी विशेष पीठ को सौंप दिया जाता है, तो वह विशेष मामला, निर्णय होने तक निर्दिष्ट पीठ के विशेष अधिकार क्षेत्र में आ जाता है, सिवाय इसके कि रोस्टर में परिवर्तन किया जाए या मुख्य न्यायाधीश उस विशेष मामले को किसी अन्य पीठ को आवंटित कर दें।’
भाषा अमित दिलीप
दिलीप
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