राजद सांसद झा ने सांसदों से ‘वीबी-जी राम जी विधेयक’ का विरोध करने की अपील की

राजद सांसद झा ने सांसदों से ‘वीबी-जी राम जी विधेयक’ का विरोध करने की अपील की

राजद सांसद झा ने सांसदों से ‘वीबी-जी राम जी विधेयक’ का विरोध करने की अपील की
Modified Date: December 18, 2025 / 05:06 pm IST
Published Date: December 18, 2025 5:06 pm IST

नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने बृहस्पतिवार को संसद में अपने अन्य विपक्षी साथियों को खुला पत्र लिखते हुए उनसे अपील की कि मनरेगा को बचाएं और इसकी जगह लाए जा रहे विकसित भारत-जी राम जी विधेयक का विरोध करें।

राज्यसभा सदस्य झा ने ‘एक्स’ पर साझा एक पत्र में कहा, ‘‘संसद में साथी सांसदों से मनरेगा को बचाने की अपील है, जो सिर्फ एक सरकारी कार्यक्रम नहीं था, बल्कि भारतीय गणराज्य द्वारा अपने सबसे गरीब नागरिकों से किया गया एक नैतिक वादा था। यह गरिमा, आजीविका और सामाजिक न्याय के संवैधानिक वादे को दर्शाता है।’’

राजद सांसद ने महात्मा गांधी के उद्गारों का उल्लेख करते हुए लिखा, ‘‘उन्होंने (गांधी ने) हमसे कहा कि हम सबसे गरीब और सबसे कमज़ोर इंसान का चेहरा याद रखें। और खुद से पूछें कि जो काम हम करने जा रहे हैं, क्या वह उस इंसान के लिए किसी काम का होगा, क्या उससे उन्हें अपनी ज़िंदगी पर दोबारा नियंत्रण मिल पाएगा।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘उनका मानना ​​था कि अगर हमारा काम उस कसौटी पर खरा उतरता है, तो सारे शक दूर हो जाएंगे। (बापू का) वह मंत्र सार्वजनिक जीवन में हर फैसले का मार्गदर्शन करने के लिए था। मैं आज आपको उसी सिद्धांत को ध्यान में रखकर लिख रहा हूं।’’

उन्होंने लोकसभा सदस्यों से ‘विकसित भारत-रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) – वीबी जी राम जी विधेयक, 2025’ का विरोध करने का आग्रह किया।

गौरतलब है कि लोकसभा ने बृहस्पतिवार को विपक्षी दलों की नारेबाजी के बीच इस विधेयक को पारित कर दिया। राज्यसभा में इस पर चर्चा होनी है।

उन्होंने कहा, ‘‘मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) 2005 को सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के समर्थन से लागू किया गया था। तब सदन ने एक साझा संवैधानिक दायित्व को स्वीकार किया था कि गरिमा के साथ काम करने का अधिकार हमारे लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है।’

झा ने यह भी कहा, ‘‘मनरेगा में अपनी खामियां हैं, लेकिन वे कानून से नहीं, बल्कि कार्यान्वयन की विफलताओं से उत्पन्न होती हैं। दो दशकों में, इसने संकट के समय में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की है, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई है, और काम के सिद्धांत को एक अधिकार के रूप में बनाए रखा है, न कि एहसान के रूप में।’’

झा ने कहा कि कानून को मज़बूत किया जाना चाहिए, और बिना परामर्श या सहमति के इसे ‘‘खत्म करना’’ सुधार नहीं, बल्कि ‘‘संवैधानिक ज़िम्मेदारी से पीछे हटना’’ है।

भाषा वैभव पवनेश

पवनेश


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