ईवीएम की ‘प्रथम स्तर की जांच’ के लिए अपनायी गई प्रक्रिया के खिलाफ दायर याचिका खारिज

ईवीएम की ‘प्रथम स्तर की जांच’ के लिए अपनायी गई प्रक्रिया के खिलाफ दायर याचिका खारिज

ईवीएम की ‘प्रथम स्तर की जांच’ के लिए अपनायी गई प्रक्रिया के खिलाफ दायर याचिका खारिज
Modified Date: September 1, 2023 / 04:48 pm IST
Published Date: September 1, 2023 4:48 pm IST

नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने आगामी आम चुनावों से पहले ईवीएम और वीवीपैट की ‘प्रथम स्तर की जांच’ के लिए अपनायी गई प्रक्रिया को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता एवं दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अनिल कुमार की यह धारणा कि प्रथम स्तर की जांच (एफएलसी) को फिर से आयोजित करने से कोई समय की हानि नहीं होगी, एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसे स्वीकार कर पाना अदालत के लिए कठिन है।

अदालत ने कहा कि भारत का निर्वाचन आयोग (ईसीआई) सख्त समयसीमा पर काम करता है और विलंब संभावित रूप से पूरी चुनावी प्रक्रिया को खतरे में डाल सकता है।

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मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा, ‘‘ईसीआई के निर्देशों में उल्लिखित समय-सीमा की विशिष्टता और आम चुनाव प्रक्रिया के उन्नत चरणों को देखते हुए, जैसा कि उल्लेखित किया गया है…, प्रक्रिया की पुन: शुरुआत जैसे कोई भी बदलाव, एक प्रतिगामी कदम होगा। अंततः एफएलसी और पूरी चुनावी प्रक्रिया का उद्देश्य जनता की सेवा करना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनका विश्वास सुनिश्चित करना है।’’

उच्च न्यायालय का आदेश 29 अगस्त को पारित किया गया था जिसे शुक्रवार को इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया।

पीठ ने कहा कि दिशानिर्देशों में शामिल सुरक्षा उपाय और नियंत्रण एफएलसी प्रक्रिया की शुचिता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त हैं और ईवीएम को सील करने में राजनीतिक प्रतिनिधियों को शामिल करना आपसी जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

उसने कहा, ‘‘प्रत्येक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल को इस प्रक्रिया का हिस्सा बनने का समान अवसर दिया गया। इसलिए, इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी इसकी शुचिता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।’’

याचिका में दावा किया गया कि एफएलसी को पूरा करने के लिए पर्याप्त नोटिस नहीं दिए गए और राजनीतिक दल इस प्रक्रिया के लिए खुद को तैयार नहीं कर सके। पर्याप्त नोटिस देने के बाद ईसीआई को एफएलसी को फिर से आहूत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

इसमें कहा गया है कि प्रचलित व्यवस्था के अनुसार, राजनीतिक दलों को इसके शुरू होने से कम से कम एक सप्ताह पहले एफएलसी के बारे में सूचित किया जाना चाहिए और एफएलसी के शुरू होने से पहले केवल दो दिन का नोटिस राजनीतिक दलों को बूथ स्तर के एजेंट या व्यक्तियों को प्रक्रिया में प्रभावी ढंग से हिस्सा लेने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण के साथ शामिल का निर्देश देने का पर्याप्त अवसर नहीं देता है।

संबंधित जिला चुनाव अधिकारियों के वकील ने दलील दी कि एफएलसी प्रक्रिया समय-समय पर संशोधित ईसीआई के निर्देशों सहित मौजूदा मानदंडों का सख्ती से पालन करती है।

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के साथ-साथ अन्य पात्र हितधारकों को एफएलसी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पर्याप्त नोटिस दिया गया था। वकील ने कहा कि हालांकि, उन्होंने अपने प्रतिनिधियों को नहीं भेजने का विकल्प चुना, जिसका कारण याचिकाकर्ता पक्ष को बेहतर ज्ञात होगा।

वकील ने कहा कि तीन राज्यों केरल, झारखंड और दिल्ली में ईवीएम और वीवीपैट के लिए एफएलसी प्रक्रिया को अंतिम रूप दे दिया गया है और अन्य पांच राज्यों के लिए प्रक्रिया जारी है।

अकेले दिल्ली में, कुल 42,000 मतपत्र मशीन और 23,000 वीवीपैट की जांच की गई है और याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तावित निर्देश, यदि दिए गए, तो पूर्व-निर्धारित चुनाव कार्यक्रम को संभावित रूप से पटरी से उतार सकते हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि एफएलसी ‘ओके’ मशीन की स्वीकृति तक राजनीतिक दलों की भागीदारी, लोकतांत्रिक भावना और प्रक्रिया की समावेशिता को रेखांकित करती है। हालांकि, डीपीसीसी ने इससे ‘दूर रहने का विकल्प चुना।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि एफएलसी एक सावधानीपूर्वक प्रक्रिया है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली की पारदर्शिता, शुचिता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए तैयार किया गया है और यह प्रक्रिया भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) के प्रमाणित इंजीनियरों द्वारा निष्पादित की जाती है।

पीठ ने कहा, ‘‘प्रक्रिया के संबंध में याचिकाकर्ता की आपत्तियां जांच के लिए निर्धारित ईवीएम और वीवीपैट की सूची के संबंध में पूर्व सूचना की कथित कमी से उत्पन्न हुई हैं। निर्धारित निर्देशों और प्रक्रियाओं पर गौर करने पर अदालत को ऐसा कोई निर्देश नहीं मिला जिसमें पूर्व अधिसूचना की बात कही गई हो। पर्याप्त मजबूत प्रक्रियाएं हैं जो पूर्ण पारदर्शिता लाती हैं।’’

अदालत ने कहा कि कठोर और पारदर्शी प्रक्रिया को देखते हुए, एफएलसी प्रक्रिया की सुरक्षा और विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाली याचिकाकर्ता की दलीलें ‘निराधार’ हैं।

पीठ ने कहा कि जब एफएलसी जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया राजनीतिक दलों को प्रतिनिधित्व और अवलोकन के अवसर प्रदान करती है, तो यह इन प्रतिनिधियों का कर्तव्य बन जाता है कि वे सक्रिय रूप से इसमें भाग लें और प्रक्रिया की विश्वसनीयता सुनिश्चित करें।

इसमें कहा गया है कि भागीदारी से बचना और बाद में उसी प्रक्रिया की शुचिता पर सवाल उठाना सही नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिका में ठोस आधार नहीं है और वह याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है।

भाषा अमित वैभव

वैभव


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