ईडब्ल्यूएस आरक्षण को चुनौती के लिए संसद में चर्चा नहीं होने के आधार को मानने से न्यायालय का इनकार

ईडब्ल्यूएस आरक्षण को चुनौती के लिए संसद में चर्चा नहीं होने के आधार को मानने से न्यायालय का इनकार

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  • Publish Date - September 15, 2022 / 08:46 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:06 PM IST

नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को इस दलील को खारिज कर दिया कि संसद ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी 103वें संविधान संशोधन को बिना पर्याप्त चर्चा के पारित कर दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘‘उसके इस क्षेत्र में प्रवेश करने पर रोक है।’’

शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने दोहराया कि सरकारी नीतियों का लाभ लक्षित समूह तक पहुंचाने के लिए आर्थिक मानदंड तय करना ‘वर्जित’ नहीं है बल्कि वर्गीकरण का एक मान्य आधार है।

प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, ‘‘संविधान एक जीवंत और बदलाव वाला दस्तावेज है। हम पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी देखते हैं। हम गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले समूहों को भी देखते हैं। यह बड़ा जन समुदाय है। आर्थिक आधार पर कोई सकारात्मक कार्रवाई (सरकार द्वारा) क्यों नहीं हो सकती।’’

एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के.एस. चौहान ने इस संदर्भ में पूर्व प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण के भाषणों का जिक्र किया कि संसद में बिना चर्चा के विधेयक पारित हो रहे हैं।

वकील ने कहा, ‘‘हम लोकतंत्र हैं और लोकतंत्र चर्चा-परिचर्चा से चलता है। यह संविधान संशोधन आठ जनवरी को लोकसभा में और नौ जनवरी को राज्यसभा में पारित हुआ था। मुझे इस पर कोई चर्चा नहीं मिली।’’

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला शामिल रहे।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारे इस विषय में प्रवेश करने पर रोक है कि संसद में क्या बोला जाता है। हम विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते और यह कोई आधार नहीं हो सकता। इस पर किस बात की बहस?’’

पीठ ने संविधान संशोधन पर संसद में कम चर्चा होने को चुनौती का आधार मानने से इनकार कर दिया।

भाषा वैभव माधव

माधव