न्यायालय ने पूर्व रॉ अधिकारी की याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा

न्यायालय ने पूर्व रॉ अधिकारी की याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा

न्यायालय ने पूर्व रॉ अधिकारी की याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा
Modified Date: December 12, 2025 / 07:32 pm IST
Published Date: December 12, 2025 7:32 pm IST

नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सीबीआई से एक पूर्व रॉ अधिकारी की उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत उसके खिलाफ जारी मुकदमे में जांच एजेंसी द्वारा इस्तेमाल किए गए दस्तावेज उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया है।

न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को नोटिस जारी कर मेजर जनरल वी.के. सिंह (सेवानिवृत्त) की याचिका पर जवाब मांगा।

सिंह की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 19 सितंबर को निचली अदालत के आदेश में संशोधन किया और कहा कि सीबीआई द्वारा मामले में जिन दस्तावेजों पर भरोसा किया गया है, उनकी संवेदनशील प्रकृति के कारण याचिकाकर्ता के वकील द्वारा ही उनका निरीक्षण किया जा सकता है और ये याचिकाकर्ता को उपलब्ध नहीं कराए जा सकते।

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भूषण ने कहा, ‘‘सीआरपीसी की धारा 207 के तहत यह सामान्य प्रक्रिया है, जिसमें आरोपी को अभियोजन पक्ष द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेज उपलब्ध कराए जाते हैं। मजिस्ट्रेट ने दस्तावेजों की आपूर्ति की अनुमति दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसमें संशोधन कर दिया।’’

उन्होंने बताया कि सिंह ने खुफिया एजेंसी रॉ में सेवा की है और एक किताब लिखी है जिसमें उपकरणों की खरीद में भ्रष्टाचार के कुछ आरोप लगाए गए थे, लेकिन सीबीआई ने उनके खिलाफ आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए) के तहत मामला दर्ज कर दिया।

पीठ ने कहा कि वह याचिका पर सीबीआई का जवाब चाहती है और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद के लिए स्थगित की जाती है।

सीबीआई ने 20 सितंबर, 2007 को सिंह के खिलाफ एक शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया था, जिसमें उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने ‘इंडियाज एक्सटर्नल इंटेलिजेंस – सीक्रेट्स ऑफ रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ नामक अपनी पुस्तक के प्रकाशन के माध्यम से गुप्त जानकारी का खुलासा किया।

सिंह के खिलाफ 20 सितंबर, 2007 को ‘सर्च वारंट’ जारी किए गए थे और 24 सितंबर, 2007 को अदालत में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की गई थी।

केंद्र ने 7 अप्रैल, 2008 को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम की धारा 13(3) के तहत शिकायत दर्ज करने को अधिकृत किया और मामले में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 की धारा 3 एवं 5 तथा भादंसं की धारा 409 और 120बी के तहत 11 अप्रैल, 2008 को आरोपपत्र दाखिल किया गया, जिसमें गोपनीय दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में रखने का अनुरोध किया गया था।

निचली अदालत ने 31 जनवरी, 2009 को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 की धारा 3 और 5 तथा भादंसं की धारा 409 और 120बी के तहत अपराधों के लिए आरोपपत्र का संज्ञान लिया।

बारह दिसंबर 2009 को, मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 207 के तहत प्रतिवादियों द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया और सीबीआई को निर्देश दिया कि वह उचित आवेदन के बाद सिंह द्वारा मांगे गए दस्तावेज उन्हें उपलब्ध कराए।

हालांकि, दस्तावेजों की संवेदनशील प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, सीएमएम ने स्पष्ट किया कि प्रतिवादियों को उपलब्ध कराए गए दस्तावेज सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के व्यक्तिगत संरक्षण में रहेंगे, जिन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि दस्तावेजों को किसी भी तरह से प्रसारित न किया जाए।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 19 सितंबर को कहा कि सीबीआई दस्तावेजों के निरीक्षण का विरोध नहीं कर रही है, लेकिन उनकी संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए उसका अनुरोध है कि उनकी हार्ड कॉपी याचिकाकर्ता को उपलब्ध न कराई जाए।

इसने अपने आदेश में कहा था, ‘‘उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, वर्तमान याचिका को इस हद तक स्वीकार किया जाता है कि संबंधित आदेश में संशोधन किया जाता है और प्रतिवादियों को उनके विधिवत अधिकृत वकीलों के साथ निचली अदालत के पास मौजूद दस्तावेजों का निरीक्षण करने की अनुमति दी जाती है, जब भी आवश्यक हो, ताकि प्रतिवादी मुकदमे के दौरान प्रभावी ढंग से अपना बचाव कर सकें।’’

इस आदेश से असंतुष्ट सिंह ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।

सिंह जून 2002 में सेवा से सेवानिवृत्त हुए और उनकी पुस्तक जून 2007 में प्रकाशित हुई। उनके खिलाफ प्राथमिकी 2008 में दर्ज की गई थी।

भाषा नेत्रपाल रंजन

रंजन


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