वरिष्ठ पदनाम: उच्चतम न्यायालय ने वकीलों के अंक आधारित मूल्यांकन को खत्म किया

वरिष्ठ पदनाम: उच्चतम न्यायालय ने वकीलों के अंक आधारित मूल्यांकन को खत्म किया

वरिष्ठ पदनाम: उच्चतम न्यायालय ने वकीलों के अंक आधारित मूल्यांकन को खत्म किया
Modified Date: May 13, 2025 / 10:11 pm IST
Published Date: May 13, 2025 10:11 pm IST

नयी दिल्ली, 13 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वकीलों को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ का पदनाम देने के लिए नये दिशा-निर्देश जारी किए। साथ ही, इसने शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों की अंक-आधारित मौजूदा मूल्यांकन प्रणाली को खत्म कर दिया।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि पिछले साढ़े सात वर्षों के उसके अनुभव से पता चलता है कि ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ पदनाम के लिए आवेदन करने वाले वकीलों की बार में योग्यता और कानूनी अनुभव का अंकों के आधार पर आकलन करना तर्कसंगत या वस्तुनिष्ठ रूप से संभव नहीं हो सकता है।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों से कहा कि वे चार महीने के भीतर नये दिशा-निर्देशों के अनुरूप अपने मौजूदा नियमों में संशोधन करें।

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फैसले में कहा गया है, ‘‘पदनाम देने का निर्णय उच्च न्यायालयों या इस न्यायालय की पूर्ण पीठ का होगा। स्थायी सचिवालय द्वारा योग्य पाए गए सभी उम्मीदवारों के आवेदन को आवेदकों द्वारा प्रस्तुत प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ पूर्ण पीठ के समक्ष रखा जाएगा।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘हमेशा सर्वसम्मति पर पहुंचने का प्रयास किया जा सकता है। हालांकि, अगर अधिवक्ताओं के पदनाम पर सर्वसम्मति नहीं बनती है, तो निर्णय मतदान की लोकतांत्रिक पद्धति से किया जाना चाहिए। किसी मामले में गुप्त मतदान होना चाहिए या नहीं, यह एक ऐसा निर्णय है जिसे उच्च न्यायालयों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, ताकि वे संबंधित मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करके निर्णय ले सकें।’’

हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निर्धारित न्यूनतम योग्यता 10 वर्ष की कानूनी प्रैक्टिस पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है।

शीर्ष अदालत ने अधिवक्ताओं द्वारा पदनाम के लिए आवेदन देने की प्रथा जारी रखने की अनुमति दी, क्योंकि इससे उनकी ओर से सहमति का संकेत मिलता है।

पीठ ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि इस न्यायालय को भी इस निर्णय के आलोक में नियमों/दिशानिर्देशों में संशोधन करने का काम करना होगा। इस न्यायालय और संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा समय-समय पर इसकी समीक्षा करके पदनाम की व्यवस्था/प्रणाली में सुधार करने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा।’’

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16 वकीलों के वरिष्ठ पदनाम से संबंधित है।

शीर्ष न्यायालय ने पहले कहा था कि वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने के मामले में ‘‘गंभीर आत्मनिरीक्षण’’ की आवश्यकता है।

न्यायालय ने कहा कि ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ का पदनाम हासिल करना कुछ चुनिंदा लोगों का एकाधिकार नहीं हो सकता। इसने कहा कि निचली अदालतों और अन्य न्यायिक मंचों पर वकालत करने वाले वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने पर विचार किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा कि पदनाम के लिए चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और निर्देशित होनी चाहिए तथा हर साल कम से कम एक बार इसे जरूर अपनाया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘जब हम विविधता की बात करते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उच्च न्यायालय एक ऐसा तंत्र विकसित करे, जिसके तहत हमारी निचली और जिला न्यायपालिका तथा विशेष न्यायाधिकरणों में वकालत करने वाले बार के सदस्यों को नामित करने पर विचार किया जाए, क्योंकि उनकी भूमिका शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं की भूमिका से कमतर नहीं है। यह भी विविधता का एक अनिवार्य हिस्सा है।’’

भाषा सुरेश दिलीप

दिलीप


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