स्टालिन, पलानीस्वामी ने पेरियार की 52वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी
स्टालिन, पलानीस्वामी ने पेरियार की 52वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी
चेन्नई, 24 दिसंबर (भाषा) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के प्रमुख ए. के. पलानीस्वामी समेत राज्य के कई नेताओं ने समाज सुधारक एवं द्रविड़ विचारक ई. वी. रामासामी को बुधवार को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी। रामास्वामी को स्नेह से ‘पेरियार’ कहा जाता है।
स्टालिन और पलानीस्वामी ने पेरियार की प्रशंसा करते हुए उन्हें ऐसा व्यक्ति बताया जिसने ‘‘झुकी हुई पीठों को सीधा होकर आत्मसम्मान की रक्षा करने’’ में सक्षम बनाया। उन्होंने पेरियार को ‘‘हर प्रकार के आधिपत्य को भस्म करने वाला महान प्रकाश’’ बताया।
स्टालिन ने कहा कि तर्कसंगत सोच और समानता का पालन करना तथा किसी के आधिपत्य के आगे न झुकना पेरियार के प्रति तमिल समुदाय की सच्ची कृतज्ञता है।
मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘यदि तमिलनाडु एकता की भावना के साथ उस विरोधी समूह के छलपूर्ण इरादों को पराजित करने के लिए खड़ा हो जाए जो पेरियार नाम के महान प्रकाश को चुरा, निगल या पचा नहीं सकता, तो विजय सदा हमारी होगी।’’
स्टालिन ने यहां पेरियार के एक चित्र पर भी पुष्पांजलि अर्पित की।
पलानीस्वामी ने पेरियार को ‘‘तमिलनाडु के लिए तर्कसंगत मार्ग को प्रज्वलित करने वाली लौ’’ एवं ‘‘द्रविड़ आंदोलन का ज्ञान-प्रकाश’’ बताया तथा द्रविड़ गौरव एवं मानवता का सम्मान करने वाले सिद्धांतों के साथ सामाजिक न्याय के पथ पर चलने का संकल्प जताया।
अन्नाद्रमुक के महासचिव ने कहा, ‘‘हम द्रविड़वाद के ऊंचे गौरव और मानवता का सम्मान करने वाली महान विचारधारा के साथ सामाजिक न्याय के पथ पर अपनी यात्रा जारी रखने का संकल्प लेते हैं।’’
आत्मसम्मान आंदोलन और द्रविड़ कषगम के संस्थापक पेरियार का 24 दिसंबर, 1973 को 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें जातिगत उत्पीड़न और लैंगिक असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले द्रविड़ आंदोलन के जनक के रूप में याद किया जाता है। वर्ष 1879 में इरोड में जन्मे पेरियार के आत्मसम्मान, समानता और राज्य स्वायत्तता संबंधी विचारों ने तमिलनाडु की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया है।
पेरियार की पुण्यतिथि पर द्रविड़ कषगम के नेताओं ने पदयात्राएं और गोष्ठियां आयोजित कीं जिनमें न्याय, आरक्षण और भाषा पर जारी बहसों के बीच हिंदी थोपे जाने के खिलाफ और संघवाद के समर्थन में पेरियार के संघर्ष को रेखांकित किया गया। उनका तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण मौजूदा राजनीतिक विमर्श में भी प्रासंगिक माना जाता है।
कार्यकर्ताओं ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था, धार्मिक रूढ़ियों को चुनौती देने और विवाह, संपत्ति एवं शिक्षा में महिलाओं और शोषित समूहों के अधिकारों के लिए पेरियार के प्रयासों को याद किया।
भाषा सिम्मी मनीषा
मनीषा

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