न्यायालय ने उप्र में ई-नीलामी रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा, अनियमित रेत खनन को नुकसानदेह बताया

न्यायालय ने उप्र में ई-नीलामी रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा, अनियमित रेत खनन को नुकसानदेह बताया

न्यायालय ने उप्र में ई-नीलामी रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा, अनियमित रेत खनन को नुकसानदेह बताया
Modified Date: May 8, 2025 / 10:18 pm IST
Published Date: May 8, 2025 10:18 pm IST

नयी दिल्ली, आठ मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को रेत खनन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ई-नीलामी नोटिस को रद्द करने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि इस तरह की अनियमित गतिविधियों को “कतई बर्दाश्त नहीं’ करना चाहिए क्योंकि यह ‘नदी के पारिस्थितिकी तंत्र’ में व्यवधान उत्पन्न करती है।

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि रेत खनन के लिए पर्यावरणीय मंजूरी देने से पहले जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) तैयार करना अनिवार्य है।

न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने रेत खनन के लिए 13 फरवरी, 2023 को जारी ई-नीलामी नोटिस को रद्द करने के एनजीटी के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार और अन्य की अपीलों को खारिज कर दिया। पीठ ने किसी भी रेत खनन गतिविधि को शुरू करने के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में वैध और मौजूदा डीएसआर की आवश्यकता को बरकरार रखा।

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न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने 34 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘हम रेत खनन को नियंत्रित करने वाले कानून और नियमों को स्पष्ट रूप से कायम रखते हैं और अनधिकृत गतिविधियों को कतई बर्दाश्त नहीं करने पर जोर देते हैं, इन नियमों का सख्ती से पालन करने के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।’’

उन्होंने कहा कि अनियमित रेत खनन नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न करता है और प्राकृतिक प्रवाह को भी बदलता है।

उन्होंने कहा कि इससे जलीय जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचता है क्योंकि ‘प्रजनन में सहायक स्थल’ नष्ट हो जाते हैं और पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है।

न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि नदी के किनारों की अस्थिरता बाढ़ को बढ़ावा देती है, जिससे मानव जीवन और पशु दोनों को खतरा होता है।

उन्होंने कहा कि अवैध रेत व्यापार अक्सर संगठित अपराध की छाया में संचालित होता है जो कानून के शासन को कमजोर करता है।

भाषा

संतोष अविनाश

अविनाश


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