राजद्रोह कानून पर उच्चतम न्यायालय की रोक से अनेक बड़े मामलों पर असर पड़ेगा |

राजद्रोह कानून पर उच्चतम न्यायालय की रोक से अनेक बड़े मामलों पर असर पड़ेगा

राजद्रोह कानून पर उच्चतम न्यायालय की रोक से अनेक बड़े मामलों पर असर पड़ेगा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:16 PM IST, Published Date : May 11, 2022/7:57 pm IST

नयी दिल्ली, 11 मई (भाषा) राजद्रोह कानून के तहत प्राथमिकियां दर्ज करने, चल रही जांच और अन्य कार्यवाहियों पर रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के मद्देनजर सभी की नजरें इस ब्रिटिश कालीन कानून के तहत दर्ज कुछ बड़े मामलों के भविष्य पर टिकी हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2020 के बीच देश में आईपीसी की धारा 124ए के तहत कुल 356 मामले दर्ज किये गये और 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से केवल छह को दोषी करार दिया जा सका।

दिल्ली पुलिस ने 14 फरवरी, 2021 को बेंगलुरु की 21 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को केंद्र सरकार द्वारा लाये गये विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन पर कथित रूप से ‘टूलकिट’ बनाने और फैलाने के मामले में गिरफ्तार किया था।

स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने तीन फरवरी, 2021 को टूलकिट ट्वीट किया था।

दिल्ली पुलिस ने बेंगलुरु के एक वेगन स्टोर में काम करने वाली दिशा के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 124ए (राजद्रोह), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) और 153ए (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत मामला दर्ज किया।

दिल्ली की एक अदालत ने दिशा को 23 फरवरी, 2021 को जमानत दे दी।

साल 2016 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी दिये जाने के तीन साल पूरे होने के मौके पर एक कविता पाठ का आयोजन किया था। दिल्ली पुलिस ने बाद में जेएनयू छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार के साथ उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य समेत अन्य छात्रों पर आईपीसी की धारा 124ए के तहत मामला दर्ज किया था।

जम्मू कश्मीर के छात्रों के लिए प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना के तहत आरबीएस इंजीनियरिंग कॉलेज, आगरा में दाखिला पाने वाले तीन कश्मीरी छात्रों को एक टी20 क्रिकेट मैच में भारत के खिलाफ पाकिस्तान की जीत के बाद उस देश के खिलाड़ियों की प्रशंसा वाला वॉट्सऐप स्टेटस कथित रूप से पोस्ट करने के मामले में पिछले साल 28 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था।

उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय से गत 30 मार्च को जमानत मिल गयी थी लेकिन स्थानीय गारंटर, जमानत की अधिक राशि तथा पुलिस सत्यापन नहीं होने की वजह से वे 26 अप्रैल तक जेल में रहे।

दिवंगत विनोद दुआ की तरह कुछ अन्य प्रसिद्ध पत्रकारों को सोशल मीडिया पर उनके विचारों के लिए इस सख्त कानून के प्रावधानों का सामना करना पड़ा है।

दुआ ने 30 मार्च, 2020 को यूट्यूब पर अपने कार्यक्रम में कोविड महामारी से सरकार के निपटने के तौर तरीकों के खिलाफ टिप्पणी की थी। इसके बाद हिमाचल प्रदेश पुलिस ने शिमला के एक भाजपा नेता की शिकायत पर राजद्रोह कानून के तहत उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।

उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह के आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि पत्रकारों को तब तक राजद्रोह के मामलों से संरक्षण प्राप्त है जब तक वे लोगों को सरकार के खिलाफ हिंसा के लिए नहीं उकसाते।

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने उस समय गिरफ्तार किया था जब वह पांच अक्टूबर, 2020 को हाथरस में एक दलित महिला से दुष्कर्म के मामले की रिपोर्टिंग करने जा रहे थे।

उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में दावा किया गया कि वह एक ‘साजिश’ के तहत ‘शांति भंग’ करने की मंशा से हाथरस जा रहे थे।

बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका और कार्यकर्ता अरुंधति रॉय पर 2010 में एक सेमिनार में उनके कथित ‘भारत विरोधी’ भाषण के लिए हुर्रियत नेता दिवंगत सैयद अली शाह गिलानी एवं अन्य के साथ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।

भाषा वैभव नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)