सेवानिवृत्ति से ठीक पहले कई आदेश पारित करने की न्यायाधीशों की प्रवृत्ति ठीक नहीं : न्यायालय

सेवानिवृत्ति से ठीक पहले कई आदेश पारित करने की न्यायाधीशों की प्रवृत्ति ठीक नहीं : न्यायालय

सेवानिवृत्ति से ठीक पहले कई आदेश पारित करने की न्यायाधीशों की प्रवृत्ति ठीक नहीं : न्यायालय
Modified Date: December 18, 2025 / 03:09 pm IST
Published Date: December 18, 2025 3:09 pm IST

नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सेवानिवृत्ति से ठीक पहले ‘‘बहुत सारे आदेश’’ पारित करने की न्यायाधीशों की ‘‘बढ़ती प्रवृत्ति’’ पर आपत्ति जताई और इसकी तुलना मैच के अंतिम ओवरों में बल्लेबाज द्वारा ‘‘छक्के मारे जाने’’ से की।

प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की एक पीठ मध्य प्रदेश के एक प्रधान और जिला न्यायाधीश की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कुछ संदिग्ध न्यायिक आदेशों के संबंध में उनकी निर्धारित सेवानिवृत्ति से ठीक 10 दिन पहले उन्हें निलंबित करने के उच्च न्यायालय के सामूहिक फैसले को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली भी इस पीठ में शामिल थे। पीठ ने बुधवार को कहा, ‘‘ याचिकाकर्ता ने सेवानिवृत्ति से ठीक पहले छक्के लगाने शुरू कर दिए। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति है। मैं इस पर विस्तार से चर्चा नहीं करना चाहता।’’

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प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘सेवानिवृत्ति से ठीक पहले न्यायाधीशों की बहुत सारे आदेश पारित करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।’’

मध्य प्रदेश के न्यायिक अधिकारी 30 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले थे और उन्हें कथित तौर पर उनके द्वारा पारित दो न्यायिक आदेशों के कारण 19 नवंबर को निलंबित कर दिया गया।

उनकी ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी ने बताया कि उनका सेवा रिकॉर्ड बेदाग है और उन्हें वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों में लगातार उच्च अंक प्राप्त हुए हैं।

सांघी ने निलंबन की वैधता पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि न्यायिक अधिकारियों को केवल न्यायिक आदेश पारित करने के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई के दायरे में नहीं लाया जा सकता।

उन्होंने पूछा, ‘‘किसी अधिकारी को ऐसे न्यायिक आदेशों के लिए कैसे निलंबित किया जा सकता है जिनके खिलाफ अपील की जा सकती है और उच्च न्यायपालिका द्वारा उन्हें सुधारा जा सकता है?’’

पीठ ने सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारी के गलत आदेशों के खिलाफ सामान्यतः अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है।

प्रधान न्यायाधीश ने न्यायिक त्रुटि और कदाचार के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा, ‘‘ उन्हें इसके लिए निलंबित नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर आदेश स्पष्ट रूप से बेईमानी भरे हों तो क्या होगा?’

प्रधान न्यायाधीश ने यह भी उल्लेख किया कि 20 नवंबर को उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश सरकार को राज्य में न्यायिक अधिकारियों की सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 61 वर्ष करने का निर्देश दिया था।

इसके परिणामस्वरूप, न्यायिक अधिकारी अब 30 नवंबर, 2026 को सेवानिवृत्त होंगे।

प्रधान न्यायाधीश ने यह भी टिप्पणी की कि विवादित आदेश पारित करते समय अधिकारी को सेवानिवृत्ति की आयु में विस्तार की जानकारी नहीं थी।

पीठ ने यह भी पूछा कि अधिकारी ने निलंबन को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया।

सांघी ने इस पर कहा कि चूंकि निलंबन सामूहिक फैसले पर आधारित था, इसलिए अधिकारी का मानना ​​था कि सीधे उच्चतम न्यायालय से राहत मांगना अधिक उचित होगा।

इसके बाद पीठ ने टिप्पणी की कि कई मौकों पर उच्च न्यायालयों ने न्यायिक कार्यवाही में सामूहिक फैसलों को रद्द किया है।

इसके अतिरिक्त, अदालत ने अधिकारी के सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन के माध्यम से निलंबन का विवरण मांगने पर आपत्ति जताई।

अदालत ने कहा, ‘‘ किसी वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी से सूचना प्राप्त करने के लिए आरटीआई का सहारा लेने की अपेक्षा नहीं की जाती है। वे एक अभ्यावेदन पेश कर सकते थे।’’

पीठ ने याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए न्यायिक अधिकारी को उच्च न्यायालय के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी।

पीठ ने उच्च न्यायालय को चार सप्ताह के भीतर अभ्यावेदन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया।

भाषा शोभना नरेश

नरेश


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