लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर 19 फरवरी से आमरण अनशन करूंगा: वांगचुक |

लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर 19 फरवरी से आमरण अनशन करूंगा: वांगचुक

लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर 19 फरवरी से आमरण अनशन करूंगा: वांगचुक

:   Modified Date:  February 5, 2024 / 09:49 PM IST, Published Date : February 5, 2024/9:49 pm IST

(शुजा-उल-हक)

नयी दिल्ली/लेह, पांच फरवरी (भाषा) लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों के लिए अभियान चला रहे सोनम वांगचुक ने सोमवार को कहा कि वे अपनी मांगों को लेकर 19 फरवरी से आमरण अनशन शुरू करेंगे और आंदोलन में स्थानीय निवासियों की भागीदारी पर काम किया जा रहा है।

रेमन मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित वांगचुक ने कहा कि संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपायों और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा समेत अन्य मांगों के पूरा नहीं होने के चलते स्थानीय निवासियों में निराशा की भावना बढ़ रही है।

वांगचुक ने प्रस्तावित आमरण अनशन पर ‘पीटीआई-वीडियो’ से कहा, ‘सबसे पहले वह थुपस्तान छेवांग (भाजपा के पूर्व लोकसभा सदस्य) और मैं होंगे और यदि हमारी मृत्यु हो जाती है, तो अगला कौन और कितने होंगे? इन सब की रूपरेखा तैयार की जा रही है।’’

उन्होंने कहा कि वह पहले 3 फरवरी से तीन सप्ताह के लिये अनशन करने की योजना बना रहे थे, लेकिन ‘लेह एपेक्स बॉडी’ (एलएबी) के अध्यक्ष छेवांग ने उन्हें 19 फरवरी तक इंतजार करने के लिए कहा, जब केंद्र शासित प्रदेश के प्रमुख नेता नयी दिल्ली में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात करेंगे।

राय एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के प्रमुख हैं, जो लद्दाख निवासियों के अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर गौर करने के लिए गठित की गई है।

लद्दाख में शनिवार को एक बड़ी विरोध रैली आयोजित की गई, जब ‘लेह एपेक्स बॉडी’ (एलएबी) और ‘कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस’ (केडीए) द्वारा अपने चार सूत्री एजेंडे के समर्थन में आहूत बंद के दौरान केंद्र शासित प्रदेश में पूरी तरह बंद रहा।

वांगचुक ने कहा, ‘‘करीब 30,000 लोग बाहर आये, जो लद्दाख के इतिहास में अभूतपूर्व है। यह ऐसा है, जैसे लद्दाख की एक तिहाई वयस्क आबादी सरकार को यह बताने के लिए बाहर आयी कि यह एक व्यक्ति की आवाज नहीं है, बल्कि हर कोई अपने क्षेत्र के लिए सुरक्षा उपाय चाहता है।’’

उन्होंने कहा कि यह लोगों की बेचैनी का नतीजा है, क्योंकि कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। वांगचुक ने बताया कि छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपायों का उनके लिए क्या मतलब है।

उन्होंने कहा, ‘‘छठी अनुसूची जो कुछ करती है, वह यह है कि किसी भी एजेंडे में स्थानीय मूल लोगों के परामर्श की आवश्यकता होती है। यह विधायी अधिकारों, कानून बनाने के अधिकारों के साथ मूल लोगों की परिषद स्थापित करने के बारे में है और कोई भी उद्योग आ सकता है, लेकिन लोगों के परामर्श या सहमति के बिना नहीं।

उन्होंने कहा, ‘दूसरी बात, यह केवल बाहरी लोगों से लद्दाख की रक्षा करने के बारे में नहीं है। यह लद्दाख को लद्दाखी लोगों से बचाने का भी है। हम भी बहुत नुकसान कर सकते हैं। जैसे कि पैंगोंग झील है, सोमोरीरी झील है, बहुत नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र है।’

एलएबी से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है, जो आदिवासी अधिकारों के लिए सुरक्षा उपाय प्रदान करती है। यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों में लागू है। केडीए लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहा है।

वांगचुक ने कहा कि मौजूदा हताशा लोगों को यह कहने पर मजबूर कर रही है कि उनके लिए पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर के साथ रहना बेहतर है, जिसे 2019 में केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था।

उन्होंने कहा, ‘‘चीनी मानचित्रों में, वे लद्दाख को दिखाते हैं। अब, यदि भारत कहता है कि हाँ यह विवादित है। हम इसे लोकतंत्र के बिना इसलिए रख रहे हैं, क्योंकि यह विवादित है। चीन को यह कहने में खुशी होगी, हां, यह हमारा है। आपने इसे हासिल किया है।’’

भाषा अमित दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)