फिल्म ‘मद्धिम’ के जरिये मातृ भाषा में हम कहानी बताना चाहते: विमल चंद्र पांडेय

फिल्म ‘मद्धिम’ के जरिये मातृ भाषा में हम कहानी बताना चाहते: विमल चंद्र पांडेय

फिल्म ‘मद्धिम’ के जरिये मातृ भाषा में हम कहानी बताना चाहते: विमल चंद्र पांडेय
Modified Date: November 30, 2024 / 09:01 pm IST
Published Date: November 30, 2024 9:01 pm IST

(बेदिका)

नयी दिल्ली, 30 नवंबर (भाषा)लेखक और फिल्मकार विमल चंद्र पांडेय के मुताबिक जब उन्होंने बॉब शॉ की 1966 की प्रसिद्ध लघु कहानी ‘‘लाइट ऑफ अदर डेज’’ अपनी भोजपुरी फिल्म ‘मद्धिम’ के रूप में दर्शकों के सामने पेश करने का फैसला किया तो उन्हें ‘भोजपुरी और विज्ञान कथा? इसे कौन देखेगा?’ जैसे सवालों का सामना करना पड़ा।

पांडेय ने 2017 की समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्म ‘द होली फिश’ के साथ अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत की। वह अपनी दूसरी फिल्म ‘धतूरा’ की रिलीज का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सब उस भाषा में एक दिलचस्प कहानी बताने की इच्छा से शुरू हुआ, जिसे बोलते हुए वह बड़े हुए हैं।

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पांडेय ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में बताया, ‘‘भोजपुरी मेरी मातृभाषा है और मैं हमेशा से इसमें कुछ करना चाहता था। इसमें कुछ करने की इच्छा बढ़ती रही। इस कहानी को बताने के लिए मेरा मॉडल दक्षिण में स्वतंत्र सिनेमा था, जहां फिल्म निर्माता सीमित संसाधनों के साथ सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट कहानियां प्रस्तुत कर रहे हैं और वे दुनिया भर में पसंद की जा रही हैं। मैंने सोचा, ‘‘क्यों न भोजपुरी में भी कुछ ऐसा ही किया जाए?’’

फिल्म की आधिकारिक कथानक के अनुसार, ‘मद्धिम’ इंस्पेक्टर प्रत्यूष और कांस्टेबल चौबे की कहानी है, जो रमन रस्तोगी नामक एक प्रसिद्ध ‘पल्प फिक्शन’ लेखक की मौत की जांच कर रहे हैं।

इसमें लिखा है, ‘‘सर्किल ऑफिसर और एसपी को यकीन है कि यह उसकी पत्नी द्वारा व्यभिचार और हत्या का मामला है, लेकिन इंस्पेक्टर प्रत्यूष लगातार उचित जवाब की तलाश में है। आखिरकार, उसे रमन रस्तोगी के अतीत के बारे में पता चलता है। एक अविश्वसनीय लेकिन दिमाग को झकझोर देने वाला वैज्ञानिक आविष्कार प्रत्यूष को हत्यारे को रंगे हाथों पकड़ने में मदद करता है।’’

पांडेय ने ‘भले दिनों की बात थी’, ‘लहरतारा’ और ‘भले दिनों की बात थी’ जैसे उपन्यासों और ‘डार’, ‘मस्तूलों के इर्दगिर्द’ और ‘मारण मंत्र’ जैसी कहानी संग्रहों के साथ हिंदी साहित्य जगत में ख्याति प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि वह भोजपुरी में कहानी कहने के इच्छुक थे, लेकिन इसे विज्ञान कथा शैली में बनाने का विचार उनके सह-लेखक वैभव मणि त्रिपाठी से आया।

विज्ञान-कथा के शौकीन त्रिपाठी ने शुरुआत में अपनी एक कहानी का भोजपुरी ध्वनि स्वरूप में अनुवादित करने के लिए पांडेय से संपर्क किया था। वह चाहते थे कि पांडेय उनके ऑडियो ऐप के लिए भी कुछ ऐसा ही करें।

पांडेय ने कहा, ‘‘वह चाहते थे कि मैं एक ऑडियो सीरीज भी लिखूं। लेकिन मैं उस भाषा में एक फिल्म बनाने के लिए ज्यादा उत्सुक था। उन्होंने इसे एक विज्ञान कथा आधारित फिल्म के रूप में बनाने का विचार रखा और हमने बॉब शॉ की कहानी पर फिल्म बनाने के लिए पहले बहुत सारा साहित्य पढ़ा, जो 1960 के दशक में लिखी गई थी। हमने कहानी से स्लो ग्लास की अवधारणा ली और उसके इर्द-गिर्द एक हत्या की गुत्थी बुनी।’’

फिल्म निर्माता ने सोचा था कि ‘मद्धिम’ का निर्माण कार्य जल्दी पूरा हो जाएगा, लेकिन इस परियोजना पर दो साल से अधिक समय लग गया, तथा इस दौरान उन्हें कई बाधाओं और पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा।

भाषा धीरज माधव

माधव


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