कोलकाता, 25 दिसंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल के यादवपुर विश्वविद्यालय में वार्षिक दीक्षांत समारोह के दौरान कुलपति से प्रशस्ति पत्र और प्रमाण पत्र प्राप्त करते समय दो छात्रों के ‘‘यादवपुर विश्वविद्यालय में ‘इस्लामोफोबिया’ के लिए कोई जगह नहीं है’’ लिखा पोस्टर प्रदर्शित करने के बाद विवाद खड़ा हो गया।
दीक्षांत समारोह के बाद छात्रों ने संवाददाताओं को बताया कि सोमवार को अंग्रेजी की सेमेस्टर परीक्षा के दौरान एक निरीक्षक ने सिर पर स्कार्फ पहनी तृतीय वर्ष की स्नातक छात्रा से उसकी सहपाठी का हिजाब आंशिक रूप से हटाने में मदद करने के लिए कहा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं वह वायरलेस हेडफोन का इस्तेमाल तो नहीं कर रही है। हालांकि, जांच में कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला।
छात्रों ने बताया, “हमने अपनी कनिष्ठ सहपाठी के साथ हुए ऐसे व्यवहार का विरोध किया, जिससे उसकी भावनाओं को ठेस पहुंची। हमने कोई हंगामा नहीं किया, लेकिन हमारा मानना है कि विश्वविद्यालय जैसे उदार और धर्मनिरपेक्ष संस्थान में ऐसा व्यवहार अकल्पनीय है।”
स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के एक नेता ने इस विरोध से खुद को अलग करते हुए कहा, “उन्होंने जो किया, वह पूरी तरह से उनका निजी फैसला था।”
हालांकि, संकाय सदस्यों ने विश्वविद्यालय में धार्मिक भेदभाव के आरोपों को खारिज किया।
अंग्रेजी विभाग के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने बृहस्पतिवार को कहा, “हम ‘इस्लामोफोबिया’ (इस्लाम के प्रति पूर्वाग्रह) के आरोपों का खंडन करते हैं। परीक्षा के दौरान नकल करने की कोशिश करते हुए कई छात्र पकड़े गए, जिसके बाद निगरानी बढ़ा दी गई। अगर किसी का भी व्यवहार संदिग्ध लगा, तो दोबारा जांच की गई। पिछले सप्ताह कम से कम चार परीक्षार्थी हेडफोन का इस्तेमाल करते हुए पकड़े गए, जिनमें से कोई भी अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक नहीं रखता था।”
प्रोफेसर ने कहा, “उस दिन ‘हुडी’ पहने एक छात्रा को परीक्षा पर्यवेक्षण ड्यूटी पर तैनात शोधार्थियों ने हेडफोन का इस्तेमाल करते हुए पकड़ा था। तीसरे वर्ष की एक अन्य छात्रा ने उससे सहयोग करने का अनुरोध किया और उसे बगल के एक कमरे में ले जाया गया, जहां कोई और मौजूद नहीं था। छात्रा से जानकारी मिलने के बाद परीक्षा बिना किसी आपत्ति के संपन्न हुई।”
प्रोफेसर ने स्पष्ट किया, “हिजाब पहनी दो अन्य छात्राओं की जांच नहीं की गई, जिनमें से एक दिव्यांग थी। विश्वविद्यालय पर ‘इस्लामोफोबिया’ जैसे आरोप लगाना अनुचित है। अगर शिक्षकों को इस तरह निशाना बनाया जाता है, तो उनके लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना असंभव हो जाएगा।”
भाषा जितेंद्र पारुल
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