प.बंगाल : एसआईआर, बांग्लादेश में अशांति, अगले साल का विधानसभा चुनाव 2025 में चर्चा में रहे

प.बंगाल : एसआईआर, बांग्लादेश में अशांति, अगले साल का विधानसभा चुनाव 2025 में चर्चा में रहे

प.बंगाल : एसआईआर, बांग्लादेश में अशांति, अगले साल का विधानसभा चुनाव 2025 में चर्चा में रहे
Modified Date: December 31, 2025 / 11:57 am IST
Published Date: December 31, 2025 11:57 am IST

(प्रदीप्त तापदार)

कोलकाता, 31 दिसंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल में अगले विधानसभा चुनाव को लेकर पूरे वर्ष सरगर्मी तेज रही। जहां एक ओर शासन व्यवस्था पर मतदान की प्रक्रिया, सीमा संबंधी चिंताएं और बढ़ती सांप्रदायिक रेखाएं हावी रहीं, वहीं मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) और सीमा पार अशांति राज्य के राजनीतिक मैदान में निर्णायक मुद्दे बन गए।

अगर 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने चुनावी समीकरण तय कर दिए तो 2025 की राजनीति ने माहौल तय कर दिया।

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पूरे वर्ष पड़ोसी बांग्लादेश से उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता का प्रभाव बना रहा। सीमा पार की राजनीतिक अस्थिरता और एक हिंदू व्यक्ति की हत्या समेत अल्पसंख्यकों पर हमले से लेकर सांप्रदायिक हिंसा की खबरों ने पश्चिम बंगाल के राजनीतिक विमर्श को सीधे तौर पर प्रभावित किया।

वर्ष 2026 के विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने आक्रामक रुख अपनाते हुए अपनी बंगाली अस्मिता को और मजबूत किया और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में संस्थागत एवं भाषा के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया। बनर्जी की इस रणनीति ने 2021 के चुनाव में भाजपा की हिंदुत्व की लहर को काफी हद तक बेअसर कर दिया था।

बंगाल में जारी इस उथल-पुथल के केंद्र में निर्वाचन आयोग का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) है जो 2002 के बाद इस तरह का पहला अभ्यास है। संशोधन के तहत प्रकाशित मसौदा मतदाता सूचियों में मृत्यु और प्रवास से लेकर दोहराव एवं पता ज्ञात नहीं हो पाने जैसे विभिन्न कारणों से 58 लाख से अधिक नाम हटा दिए गए।

विशेष रूप से नदिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना, मालदा और उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों के सीमावर्ती जिलों एवं शरणार्थी-बस्ती वाले क्षेत्रों में मतदाताओं का बड़ा हिस्सा नोटिस, सुनवाई और दस्तावेजीकरण संबंधी आवश्यकताओं से असहज महसूस कर रहा है।

लगभग 50 विधानसभा सीट को प्रभावित करने वाले दलित हिंदू मतदाता समूह ‘मतुआ समुदाय’ के लिए इस संशोधन ने कागजी कार्रवाई और नागरिकता को लेकर लंबे समय से जारी चिंताओं को फिर से हरा कर दिया है।

तृणमूल कांग्रेस ने इस प्रक्रिया को वास्तविक मतदाताओं के लिए खतरा बताया और केंद्र पर चुनाव से महीनों पहले ऐसे लोगों को मताधिकार से वंचित करने का आरोप लगाया।

भाजपा ने संवैधानिक आवश्यकता बताते हुए इस संशोधन का समर्थन किया और सत्तारूढ़ पार्टी पर अवैध घुसपैठियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया।

विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘‘एक साफ-सुथरी मतदाता सूची लोकतंत्र की नींव है। असली मतदाताओं को डरने की कोई जरूरत नहीं है।’’

एसआईआर के संबंध में अदालत में सुनवाई का चरण आगे बढ़ने के साथ शासन व्यवस्था के बजाय मतदाता सूची चुनावी विमर्श का मुख्य केंद्र बन गई।

राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘बंगाल एक ऐसे चक्र में प्रवेश कर चुका है जहां चुनावी बहस योजनाओं के बजाय वोट पर केंद्रित है। इससे चुनाव प्रचार की भावनात्मक तीव्रता और जोखिम दोनों में बदलाव आता है।’’

जून में बीरभूम की गर्भवती प्रवासी महिला सुनाली खातून को बांग्लादेशी होने के संदेह में दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया और सीमा पार भेज दिया।

उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दिसंबर में उन्हें उनके नवजात बेटे के साथ स्वदेश वापस भेज दिया गया, जिसे तृणमूल कांग्रेस ने भेदभाव और संस्थागत ज्यादती का प्रतीक बताया।

अंतरराष्ट्रीय सीमा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों से अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेजे जाने की खबरों ने भी परस्पर विरोधी राजनीतिक दावों को बल दिया।

भाजपा ने इस तरह की गतिविधि को घुसपैठ के उजागर होने के सबूत के तौर पर पेश किया जबकि तृणमूल कांग्रेस ने विपक्ष पर दहशत फैलाने और बांग्ला भाषी लोगों के खिलाफ गलत धारण बनाने का आरोप लगाया।

बीतते साल के साथ बांग्लादेश का साया और गहराता गया। भाजपा नेताओं ने अल्पसंख्यक अधिकारों और क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं को उठाने के लिए सीमा पार की घटनाओं का बार-बार हवाला दिया।

तृणमूल कांग्रेस ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की निंदा की और भाजपा पर क्षेत्रीय अस्थिरता का फायदा उठाकर लोगों को ध्रुवीकृत करने का आरोप लगाया।

अप्रैल में मुर्शिदाबाद के कुछ हिस्सों में हुए दंगों के बाद राज्य के भीतर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और गहरा गया। वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शनों से भड़के इन दंगों में आगजनी की घटनाएं और तीन लोगों की हत्या शामिल थी।

भाजपा ने इस हिंसा को अराजकता और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का सबूत बताया। तृणमूल कांग्रेस ने उकसावे और बाहरी हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रशासन ने व्यवस्था बहाल करने के लिए निर्णायक कार्रवाई की।

मुर्शिदाबाद पूरे वर्ष राजनीतिक रूप से संवेदनशील बना रहा, विशेष रूप से अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बनाई जाने वाली एक मस्जिद की आधारशिला रखे जाने के बाद यह फिर से विवादों में आ गया जिससे तनावपूर्ण माहौल के बीच बयानबाजी और भी तेज हो गई।

संस्थागत झटकों ने बेचैनी को और बढ़ा दिया जबकि स्कूल सेवा आयोग के माध्यम से अनियमित नियुक्तियों से जुड़े लगभग 26,000 स्कूली भर्तियों को रद्द करने के शीर्ष अदालत के फैसले ने सामाजिक और राजनीतिक रूप से गहरा झटका दिया।

भाषा सुरभि मनीषा

मनीषा


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