Book Review: भविष्य के भारत का प्रमाणिक दस्तावेज है भारत राइजिंग

Book Review: भविष्य के भारत का प्रमाणिक दस्तावेज है भारत राइजिंग
Modified Date: April 30, 2024 / 03:02 pm IST
Published Date: April 30, 2024 3:02 pm IST

अरविंद कुमार मिश्रा. वरिष्ठ पत्रकार

कोई भी अभिमत जब तथ्यों और प्रमाण का लिबास ओढ़ लेता है तो वह निजी न रहकर सामाजिक स्वीकार्यता का रूप ले लेता है। साल 2014 में भारतीय इतिहास ने जो करवट ली उसे सिर्फ राजनीतिक चश्मे से देखना उचित नहीं होगा। 21वीं सदी के दूसरे दशक से देश सामाजिक, लोकतांत्रिक एवं राजनय के क्षेत्र में धर्म के मूल तत्व सनातन के साथ कैसे आगे बढ़ रहा है, उसका राष्ट्र के जीवन पर क्या प्रभाव है, इसका मौलिक आकलन ‘भारत राइजिंग : धर्म, डेमोक्रेसी, डिप्लोमेसी’ पुस्तक में किया गया है। वरिष्ठ पत्रकार उत्पल कुमार द्वारा लिखी गई पुस्तक में तथ्यों के साथ स्वतंत्रता के आंदोलन के बाद से अब तक की राजनीतिक व्यवस्था, उनकी विचारधारा तथा सियासी दलों की प्रतिबद्धताओं को परखा है।

किताब में बताया गया है कि कैसे आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऊपर वामपंथ के प्रभाव ने देश को विकास का एक ऐसा मॉडल दिया जो पाश्चात्य द्वारा थोपा गया और अव्यवहारिक था। फ्रांसीसी पत्रकार फ्रांस्वा गोटियर के शब्दों में यह पुस्तक ‘‘भारत को भारत की दृष्टि से देखना होगा। बौद्धिक औपनिवेशिक मानसिकता में जकड़े लुटियंस के पश्चिम आधारित विमर्श पर यह एक बौद्धिक प्रहार है।” पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल लिखते हैं ‘‘यह पुस्तक भारत की संपन्न सांस्कृतिक विरासत की नींव पर वर्तमान चुनौतियों के बीच उसके पुनर्उत्थान की गाथा कहती है।” प्रसिद्ध लेखक और कूटनीतिज्ञ पवन के वर्मा कहते हैं ‘‘भारत राइजिंग पुस्तक शोधपरक तथ्यों से पूर्ण होने के साथ भविष्य के भारत को लेकर सकारात्मक विमर्श की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।”

 ⁠

पुस्तक का पहला अध्याय ‘अयोध्या से काशी तक एक ऐतिहासिक जागरण’ देश को एक सूत्र में पिरोये रखने में प्राचीन मंदिरों के महत्व इंगित करता है। पिछले एक दशक से मंदिरों के पुनर्निर्माण से उनके प्राचीन गौरव को लौटाने का प्रयास किया जा रहा है। यह वह मंदिर हैं, जो विदेशी आक्रांताओं द्वारा कभी नष्ट किए गए बाद में मुस्लिम तुष्टिकरण की वजह से उपेक्षित रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह नि:संकोच हिंदू प्रतीक चिन्हों को धारण करते हैं, इसने कथित सेक्युलरवादी बेड़े को वैचारिक रूप से झुलसाने का काम किया है।

पुस्तक में अपने दूसरे अध्याय में लेखक ने नये भारत के विकास की जड़ों को संपन्न ऐतिहासिक विरासत से सिंचित बताया है। संविधान सभा में डॉ भीमराव आंबेडकर ने सेक्युलर शब्द सम्मिलित करने को लेकर 15 नवंबर 1948 को केटी शाह के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए इसे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध बताया था। इंदिरा गांधी ने किस तरह 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान में सेक्युलरिज्म शब्द को स्थापित किया, इसका तथ्यात्मक चित्रण पुस्तक में किया गया है। संविधान की मूल प्रति में भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के चित्र आवरण में प्रदर्शित किए गए थे। संविधान निर्माताओं की हिंदुत्व और सनातन पर आस्था की ऐसी ही अभिव्यक्ति पीएम मोदी ने नये संसद भवन के उद्घाटन के समय सिंगोल की स्थापना कर व्यक्त की। पुस्तक का तीसरा अध्याय भारतीयता तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता के विरुद्ध सक्रिय शक्तियों की वैचारिक, जनसांख्यिकी और मजहबी रणनीति को बेनकाब करती है। पुस्तक का एक महत्वपूर्ण अध्याय हमारी रसोई तक दाखिल होते चीन की विस्तारवादी सोच को उजागर करती है।

पाकिस्तान के साथ रिश्तों पर पुस्तक कहती है कि “जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल से ही एक के बाद एक वार्ताएं और आतंकवादी हमलों के साथ उनका अंत पाकिस्तान के साथ भारतीय रिश्तों की नियति बन गई थी। पठानकोट हमले के बाद नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के लिए एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खिंची जिसके लांघने का दुस्साहस बालाकोट और ऊरी के बाद उसने अब तक नहीं की है।” लेखक ने पुस्तक के अंतिम अध्याय में उदारवादी मीडिया के भारत विरोधी एजेंडे को बखूबी उजागर किया है। इसमें कोई दो मत नहीं कि आज बहुत सी किताबें रेडी टू इट फूड की शक्ल में तैयार की जा रही हैं।ऐसे समय में भारत राइजिंग पुस्तक में उपयोग में लाए गए लगभग 500 लेख और पुस्तकों के संदर्भ इसे उदमीयान भारत की आकांक्षाओं को व्यक्त करने वाला समकालीन दस्तावेज बनाते हैं।


लेखक के बारे में

Associate Executive Editor, IBC24 Digital