Goncha Parv: आज भी बरकरार है बस्तर की 615 साल पुरानी परंपरा, अद्भुत रस्मों से जुड़ी गोंचा महापर्व की जानें रोचक कहानी
Country second biggest Goncha festival भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पुरे देश में उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाई जाती है।
Chhattisgarh Goncha Festival Rath Yatra
Chhattisgarh Goncha Festival Rath Yatra : जगदलपुर। बस्तर गोंचा पर्व में गोंचा रथ यात्रा विधान सालों से जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर विराजित भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पुरे देश में उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाई जाती है। बस्तर में गोंचा पर्व भगवान श्री जगन्नाथ व देवी सुभद्रा और दाउ बलराम के रथ यात्रा का पर्व है। इस पर्व को प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से लेकर एकादशी तक पूरे 27 दिनों तक बस्तर वासियों के द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। बस्तर के जगदलपुर नगर में मनाए जाने वाले रथयात्रा पर्व एक अलग ही परंपरा, एक अलग ही संस्कृति देखने को मिलती है। सामान्यतः विशालकाय रथों को परंपरागत तरीकों से फूलों तथा कपड़ों से सजाया जाता है और रथयात्रा पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। गली गली मे जगन्नाथ भगवान के रथ खींचने की होड़ मची रहती है।
आषाढ़ मास में हल्की फ़ुहारो के साथ जय जगन्नाथ जयकारा गुंजता रहता है। जानकारी के मुताबिक रियासतकाल मे ओड़िसा राज्य के जगन्नाथ पूरी के महाराजा ने बस्तर के राजा को रथपति की उपाधि दी थी, जिसके बाद ओड़िसा के बाद बस्तर में गोंचा पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। 27 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में गोंचा के दिन बस्तर में तीन विशालकाय रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की रथयात्रा निकाली जाती है।
रियासतकाल से निभाई जा रही है ये खास परंपरा
दरअसल बस्तर मे आरण्यक ब्राम्हण समाज द्वारा पिछले 615 सालो से गोंचा का पर्व मनाया जा रहा है। माता सुभद्रा और बलभद्र की विग्रहों को सवारकर भगवान जगन्नाथ मंदिर से सीरासार भवन में बनाये गए जनकपुरी के लिए रथयात्रा निकाली गई। इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। रियासत काल से चली आ रही यह पंरपरा आज भी बस्तर में कायम है। बस्तर गोंचा पर्व के जानकार रुद्र नारायण पाणिग्रही बताते हैं कि बस्तर में विश्व प्रसिध्द दशहरा पर्व के बाद गोंचा दूसरा सबसे बड़ा पर्व माना जाता है।
करीब 615 साल पहले बस्तर के तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव बस्तर से पदयात्रा कर जगन्नाथ पुरी कर गये थे, जिसके बाद पुरी के तत्कालीन महाराजा गजपति द्वारा बस्तर के राजा को रथपति की उपाधी दी गई थी। महाराजा पुरुषोत्तम देव को उनकी भक्ति के फलस्वरूप देवी सुभद्रा का रथ दिया गया था और प्राचीन समय में बस्तर के महाराजा रथ यात्रा के दौरान इस रथ पर सवार होते थे। तब से ही बस्तर में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है। पंरपरानुसार रथयात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ माता सुभद्रा और बलभद्र को अपने साथ गुंडेचा मंदिर (जनकपुरी ) ले जाकर सात दिनों तक वहां विश्राम करते है। बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव आज भी इस रथयात्रा से पूर्व भगवान जगन्नाथ की पूजा पूरे विधि विधान से करते है।
महाराज पुरुषोत्तम देव पुरी से पैदल लाए थे प्रभु जगन्नाथ की मूर्तियां
बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव की मानें तो सन 1400 में महाराज पुरुषोत्तम देव पैदल जगन्नाथ पुरी गए थे। वहां से प्रभु जगन्नाथ की मूर्तियां लेकर आए थे। जिसे जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया गया। जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर ही यहां रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें प्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र रथारूढ़ होते हैं। साथ ही राजा और यहां के माटी पुजारी होने के नाते कमलचंद भंजदेव चांदी के झाड़ू से छेरा पोरा रस्म अदा करते हैं। जगन्नाथपुरी में सोने के झाड़ू से इस रस्म की अदायगी के बाद ही बस्तर में यह रस्म अदा की जाती है।
जनकपुरी में 9 दिनों तक होती है विशेष पूजा पाठ
Chhattisgarh Goncha Festival Rath Yatra : बस्तर में 9 दिनों तक चलने वाले गोंचा पर्व की शुरुआत 3 विशालकाय रथ की परिक्रमा जगदलपुर में भगवान को रथ मे विराजने के साथ होती है। पंरपरानुसार बांस से बनी तुपकी से सलामी दी जाती है। इसके बाद सीरासार भवन जिसे जनकपुरी कहा जाता है, यहां पूरे 9 दिनों तक 360 आरण्यक ब्राह्मण समाज और बस्तर के श्रद्धालुओं के द्वारा हर दिन विशेष पूजा पाठ की जाती है। वहीं इन रस्मों के दौरान 56 भोग लगाने की भी रस्म निभाई जाती है। 9 दिनों तक जगदलपुर शहर का माहौल भक्तिमय हो जाता है और सिर्फ बस्तर ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग इस महापर्व में शामिल होने बस्तर पहुंचते हैं।
एक तरफ जहां विकास की अधंड ने सारे विश्व में संस्कृति और परम्पराओं को बदल कर रख दिया है। वहीं आज भी 615 साल पुरानी इस गोंचा पर्व की पंरपंरा जस के तस बरकरार है। बस्तर की जनता आज भी 600 साल पूर्व की तरह ही पूरे जोश खरोश से गोंचा पर्व के सभी रस्मों और परम्पराओं का निर्वहन करती दिखाई देती है।

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