छिंदवाड़ा लोकसभा सीट: जनता बनाएगी नकुल को ‘नाथ’ या खिलेगा ‘कमल’, जानिए क्या है इस सीट का समीकरण

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट: जनता बनाएगी नकुल को 'नाथ' या खिलेगा 'कमल', जानिए क्या है इस सीट का समीकरण

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  • Publish Date - April 26, 2019 / 11:50 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:41 PM IST

भोपाल: लोकसभा चुनाव 2019 की सियासी बिसात बिछ चुकी है। इसके साथ ही सियासी गलियारों में हलचल भी तेज हो गई है। राजनीतिक दल एक—एक सीट पर जीत के लिए पूरजोर कोशिश कर रहे हैं। तो चलिए हम आपको मध्यप्रदेश की एक ऐसी हाईप्रोफाइल सीट के बारे में बताते हैं जहां कई दशकों से ‘कमल’ का राज है। कमल वो नहीे जो भाजपा का चुनाव चिन्ह है बल्कि वो जो आज मध्यप्रदेश के ‘नाथ’ हैं यानि प्रदेश के मुखिया कमलनाथ। जी हां हम बात कर रहे हैं छिंदवाड़ा लोकसभा सीट की जहां से कमलनाथ 9 बार सांसद चुने गए हैं। इनका दबदबा ऐसा है कि लोकसभा चुनाव 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी तब कई नेताओं को जमानत भी बचाना मुश्किल हो गया था जब इन्होंने यहां से भारी मतों से जीत दर्ज किया था।
लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस ने सीएम कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं भाजपा ने नत्थनशाह कवरेती को जीत का दारोमदार सौंपा है। पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो इस सीट पर 1980 से कमलनाथ जीतते आए हैं, उन्हें 1997 के उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। 1997 कमलनाथ को बीजेपी के दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा से शिकस्त खानी पड़ी थी। लेकिन अच्छा कमबैक करते हुए कमलनाथ ने 1998 में अपनी कुर्सी वापस हथिया ली। इसके बाद आज तक यहां से चुनाव नहीं हारे। कमलनाथ इस सीट से 9 बार सांसद रह चुके हैं। कहा जाए तो यहां की जनता ने कांग्रेस को ही सर आंखों पर बैठाया है। सीएम कमलनाथ के विकास कार्यों और जीत के रिकॉर्ड को देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि लोकसभा चुनाव 2019 का मुकाबला एकतरफा है, लेकिन इस बार परिस्थिति में बदलाव आया है मैदान में कमलनाथ नहीं नकुलनाथ हैं। इस लिहाज से यह कहा जा सकता है भाजपा कांग्रेस के बीच मुकाबला कड़ा होगा।

विधानसभा क्षेत्र

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के अंतर्गत 7 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इन सभी सीटों पर हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस उम्मीवार पर भरोसा जताया और उन्हें अपना नेता चुना है। सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को जनता ने नकार दिया था और कांग्रेस उम्मीवारों की भारी बहुमत से जीत मिली थी।

छिंदवाड़ा, चौरई,  सौंसर, अमरवाड़ा, पांढुर्णा,  परासिया,  जुन्नाारदेव

क्या कहता है राजनीतिक समीकरण

अगर छिंदवाड़ा के इतिहास पर नजर डालें तो यहां पर सिर्फ 1 बार ही भाजपा को जीत मिली है वो भी उपचुनाव में, लेकिन एक साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में जनता ने फिर से कांग्रेस को अपना समर्थन दिया था। इस सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव 1951 में हुआ था। तब कांग्रेस की ओर से रायचंद भाई शाह चुनावी मैदान में थे। इस चुनाव में उन्हें जीत मिली थी। इसके बाद 1957 और 1962 में जनता ने कांग्रेस के बीकूलाल लखमिचंद को अपना नेता बनाया था। जीत का सिलसिला लगातार जारी था कि कांग्रेस ने अपना उम्मीवार 1967 में बदल दिया और गार्गीशंकर मिश्रा को चुनावी मैदान में उतारा। नए उम्मीदवार होने के बाद भी जनता ने दिल खोलकर इनका समर्थन किया। वे आगामी 1971 और 1977 चुनाव में भी छिंदवाड़ा सीट से सांसद चुने गए।
 
इसके बाद बारी आई छिंदवाड़ा के ‘नाथ’ कमलनाथ की। कांग्रेस ने 1980 चुनाव में कमलनाथ को अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने जीत से साथ अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की। 1980 के बाद कमलनाथ लगातार डेढ़ दशक तक छिंदवाड़ा के सांसद रहे। लेकिन 1996 चुनाव से पहले कमलानाथ का नाम हवालाकांड में आ गया, जिसके चलते कांग्रेस ने उनकी पत्नी अलकानाथ को चुनावी मैदान में उतार। यहां की जनता ने उन्हें भी निराश नहीं किया और उन्होंने बीजेपी के चौधरी चंद्रभान सिंह को मात दी। हालांकि बाद में कमलनाथ की पत्नी ने इस्तीफा दे दिया। जिसके कारण 1997 में यहां पर उपचुनाव हुआ। 
 
1997 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर कमलनाथ पर दांव खेला, लेकिन शायद हावालाकांड ने उनकी छवी धुमिल कर दी थी। जिसके चलते कमलनाथ को भाजपा के दिग्गज नेता सुंदर लाल पटवा से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि अगले साल 1998 में फिर चुनाव हुए और पटवा कमलनाथ से हार गए। 1998 से लेकर 2014 तक इस सीट पर हुए 5 चुनावों में सिर्फ और सिर्फ कमलनाथ का ही जादू चला है। बीजेपी ने उन्हें हराने की हर कोशिश की, लेकिन उसके सारे प्रयास नाकाम ही रहे।

सामाजिक ताना बाना तय करता है जीत का सूत्र

छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। देखने में तो यहां कोयला का अथाह भंडार है, लेकिन छिंदवाड़ा को देश का सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता था। लेकिन वर्तमान हालात कुछ और ही हैं। कमलनाथ ने न सिर्फ यहां सड़कों का जाल बिछाया है, बल्कि छिंदवाड़ा को एक एजुकेशन हब के रूप में विकसीत किया है। यहां पर उन्होंने 56 किमी लंबा रिंग रोड, कॉल सेंटर, मॉडल रेलवे स्टेशन बनवाया है।

सामाजिक समीकरण: 2011 की जनगणना के अनुसार

जनसंख्या                : 2090922
ग्रामीण क्षेत्र की आबादी : 75.84 प्रतिशत
शहरी क्षेत्र की आबादी  : 24.16 प्रतिशत
अनुसूचित जनजाति     : 11.11 फीसदी
अनुसूचित जनजाति     : 36.82 फीसदी

2014 चुनाव में मतदाताओं का आंकड़ा

कुल मतदाता     : 14,01,277
महिला मतदाता  : 6,79,795
पुरुष मतदाता    : 7,21,482
2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 79.03 फीसदी मतदान हुआ था।

लोकसभा चुनाव 2019 चुनावी मुद्दा

कहने को तो छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में कमलनाथ ने पिछले 40 साल में भरपूर विकास किया है, लेकिन इस चुनाव में भी सभी दलों ने विकास को आगे जारी रखने मु्द्दे को ही अहम माना है। लेकिन अगर देखा जाए तो यहां के युवा अभी भी बेरोगारी की मार झेल रहे हैं। वहीं, स्थानीय मुद्दों की बात करें तो कर्जमाफी ही अभी भी सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। एक ओर भाजपा जहां इसे छलावा बता रही है, वहीं कांग्रेस का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद 2 लाख रुपए तक की कर्ज माफी होगी। केंद्र में कांग्रेस आई तो न्याय योजना के तहत 72 हजार का लाभ भी मिलेगा। ग्रामीण इलाकों में इस पर खासी चर्चा चल रही है। दूसरा मुद्दा कांग्रेस सरकार आने के बाद हो रही बिजली कटौती है। भाजपा इसे कांग्रेस शासन से जोड़ रही है।

क्या कहते हैं 2014 चुनाव के आंकड़े

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कमलनाथ ने बीजेपी के चंद्रभान सिंह को हराया था। कमलनाथ को 5,59,755 वोट मिले थे। तो वहीं चंद्रभान सिंह को 4,43,218 वोट मिले थे। वहीं, जीजीपी के पर्देशी हरतपशाह टिग्राम को 25,628 वोट मिले थे।

क्या कहते हैं 2009 चुनाव के आंकड़े

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने बीजेपी के मारोत राव को हराया था। कमलनाथ को इस चुनाव में 4,09,736 वोट मिले थे तो वहीं मारोत रॉव को 2,88,516 वोट मिले थे। साथ ही निर्दलीय उम्मीदवार मनमोहन शाह को 27414 वोट मिले थे।