प्रदेश की सत्ता हथियाने के बाद क्या खजुराहो सीट पर कांग्रेस खत्म कर पाएगी 20 साल का ब्लैकआउट, जानिए क्या जनता का मूड  | Lok Sabha Elections 2019 : Khajuraho Lok sabha Constituency : BJP VS Congress

प्रदेश की सत्ता हथियाने के बाद क्या खजुराहो सीट पर कांग्रेस खत्म कर पाएगी 20 साल का ब्लैकआउट, जानिए क्या जनता का मूड 

प्रदेश की सत्ता हथियाने के बाद क्या खजुराहो सीट पर कांग्रेस खत्म कर पाएगी 20 साल का ब्लैकआउट, जानिए क्या जनता का मूड 

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:07 PM IST, Published Date : May 5, 2019/1:19 pm IST

खजुराहो: मध्य प्रदेश की खजुराहो लोकसभा सीट राज्य की 29 सीटों में से एक है। यह सीट भी राज्य की हाईप्रोफाइल सीटों में से एक माना जाता है। इस सीट पर पिछले डेढ़ दशक से भाजपा का कब्जा रहा है। वहीं, खजुराहो सीट पर भाजपा ने शुरू से 7 बार और कांग्रेस ने 6 बार जीत दर्ज की है। इस सीट से भाजपा की दिग्गज नेत्री और केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी चुनाव लड़ चुकीं हैं और जीत दर्ज की हैं। हालांकि एक बार यहां की जनता ने उन्हें निराश किया था, लेकिन वे यहां से 4 बार सांसद रहीं। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने चुनावी मैदान में नागेंद्र सिंह को उतारा था और उन्होंने जीत दर्ज की। विधानसभा चुनाव 2018 में नरेंद्र को पार्टी ने मैदान में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की, जिसके बाद ये सीट रिक्त हो गई है

राजनीतिक पृष्ठभूमि

खजुराहो लोकसभा सीट पर पहला चुनाव साल 1957 में हुआ। खजुराहो सीट छतरपुर और कटनी जिले के कुछ क्षेत्रों तक फैली हुई है। 1957 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के राम सहाय ने जीत हासिल की थी, लेकिन 1957 में यहां पर फिर से चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के ही मोतीलाल मालवीय विजयी रहे। इसके अगले चुनाव 1962 में कांग्रेस ने यहां पर जीत की हैट्रिक लगाई और राम सहाय एक बार फिर से सांसद बने। इसके बाद कांग्रेस की जीत का सिलसिला तोड़ने के लिए 1977 चुनाव में भाजपा ने चुनावी मैछान पर भारतीय लोकदल के लक्ष्मी नारायण नायक को चुनावी मैदान में उतारा। लक्ष्मी नारायण ने यहां भाजपा को जीत दिलाई। 1977 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने यहां पर 1980 में एक बार फिर वापसी की। कांग्रेस की विद्दावती चतुर्वेदी ने लक्ष्मीनारायण नायक को शिकस्त दी।
 
विद्दावती ने इसके बाद अगला चुनाव भी जीता और उन्होंने उमा भारती को मात दी। उमा भारती का इस सीट पर पहला चुनाव था. हालांकि उमा भारती ने 1989 के चुनाव में बदला लिया और विद्दावती चतुर्वेदी को हराया। उमा भारती ने इसके बाद 1991, 1996 और 1998 का चुनाव भी जीता. 1999 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से सत्यव्रत चतुर्वेदी को टिकट दिया। सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कांग्रेस की इस सीट पर वापसी कराई और वह यहां से सांसद बने। 2004 में बीजेपी ने एक बार फिर यहां पर वापसी की। बीजेपी के रामकृष्ण खुशमरिया ने इस बार सत्यव्रत चुतर्वेदी का मात दे दी। बीजेपी ने इसके बाद अगले 2 चुनावों में यहां से अपने उम्मीदवार को बदला और दोनों ही बार उसको जीत मिली।

सामाजीक समीकरण

चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में 17,02,794 मतदाता थे। इसमें से 7,95,482 महिला मतदाता और 9,07,312 पुरुष मतदाता थे। 2014 के चुनाव में यहां पर 51.36 फीसदी मतदान हुआ था। यहां की 81.78 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 18.22 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। खजुराहो में 18.57 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति और 15.13 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति के लोगों की है।

जाति

 फीसदी

कुर्मी—लोधी

16 फीसदी

ब्राम्हण

14.1 फीसदी

अहिरवार

9.2 फीसदी

क्षत्रिय

7.4 फीसदी

यादव

4.9 फीसदी

वैश्य

3.9 फीसदी

 

8 विधानसभा सीटें: तीन पर कांग्रेस का कब्जा

पन्ना: भाजपा ने विधानसभा चुनाव में कुसुम मेहदेले का टिकट काटकर बृजेंद्र प्रताप सिंह को दिया। वे जीते। पटेल-कुर्मी वोटों पर पकड़ रखने वाली मेहदेले नाराज हैं।
पवई: कांग्रेस के पूर्व विधायक मुकेश नायक लाेकसभा में टिकट नहीं मिलने के कारण क्षेत्र से बाहर घूम रहे हैं, इसलिए भाजपा को यहां मौका मिला है। 
गुन्नौर: कांग्रेस के शिवदयाल बागरी विधायक हैं। यहां विक्रम की पत्नी का खासा प्रभाव है। इसलिए यहां कांग्रेस मजबूत है।
चंदला: भाजपा ने विस चुनाव में पूर्व विधायक आरडी प्रजापति का टिकट काटकर बेटे राजेश को दिया था। वे जीते। उन्होंने अपना वोट बैंक एकजुट कर रखा है।  
राजनगर: लगातार चौथी बार विधायक बने कुंवर विक्रम सिंह का मजबूत क्षेत्र है। यहां पटेल और ब्राह्मण उनके साथ रहे हैं।  40 हजार ब्राह्मण और पटेल-कुशवाह मिलाकर 38 से 40 हजार हैं।  
विजयराघवगढ़: भाजपा विधायक संजय पाठक का प्रभाव यहां से लेकर बहोरीबंद तक है। कटनी जिले की तीन विधानसभों विजयराघवगढ़, मुड़वारा और बहोरीबंद में 65 से 70 हजार ब्राह्मण वोटर हैं।   
मुड्वारा: भाजपा के संदीप जायसवाल दूसरी बार विधायक हैं।  यहां ब्राह्मण के साथ सिंधी व मुस्लिम वोटर भी ज्यादा हैं। 
बहोरीबंद: भाजपा से विधायक प्रणय पांडे पूर्व विधायक प्रभात पांडे के बेटे हैं। यहां करीब 40 हजार पटेल हैं। निशिल पटेल की घरवापसी से कांग्रेस की आशाएं बढ़ी हैं। 
 

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नागेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राजा पटेरिया को हराया था। इस चुनाव में नागेंद्र सिंह को 4,74,966(54.31 फीसदी)वोट मिले थे तो वहीं राजा पटेरिया को 2,27,476(26.01फीसदी) वोट मिले थे। दोनों के बीच हार जीत का अंतर 2,47,490 वोटों का था। वहीं, बसपा 6.9 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी।
 

2009 का जनादेश

इससे पहले 2009 के चुनाव में भी बीजेपी को जीत मिली थी। बीजेपी के जितेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राजा पटेरिया को हराया था। जितेंद्र सिंह को 2,29,369 (39.34 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं राजा पटेरिया को 2,01,037(34.48 फीसदी) वोट मिले थे। जितेंद्र सिंह ने राजा पटेरिया को 28,332 वोटो से हराया था। वहीं, बसपा 13.22 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी।
 

लोकसभा चुनाव 2019 में क्या है जनता का मूड

खजुराहो संसदीय सीट पर भी जनता विकास के मुद्दे पर वोट देना चाहती है, लेकिन यहां एक दूसरा मुद्द भी है जों मतदान को प्रभावित कर सकती है। दरअसल खजुराहो एक ऐतिहासिक धरोहर है और यहां की आय का बड़ा हिस्सा पर्यटकों से आता है। दूसरी ओर यहां के अधिकतर किसान पिपरमंट की खेती करते हैं। वहीं, राज्य सरकार ने किसान कर्जमाफी का ऐलान किया है तो किसान वोटरों का रूझान कांग्रेस की ओर हो सकती है। इस सीट पर 7.4 फीसदी ठाकुर हैं। जबकि ब्राह्मण दो गुना और पटेलों की संख्या इससे भी ज्यादा है। ब्राह्मणों से चार बार के विधायक विक्रम को भी फायदा होता है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे नितिन के सपा के टिकट पर मैदान में उतरने से यह समीकरण अभी बिगड़ गए हैं। ऐसी सूरत में पटेल वोट निर्णायक हो सकता है। शहरी क्षेत्र में राष्ट्रीय मुद्दे और मोदी हैं, जबकि कस्बों में स्थानीय मुद्दे। देखना यह होगा कि यहां की जनता 15 साल बाद सत्ता में लौटे कांग्रेस की ओर झुकती है या मोदी के लहर के पक्ष में वोट करती है। फैसला 23 मई को जनता के सामने होगा।

 
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