लोकसभा चुनाव के छठवें चरण के लिए 12 मई को मतदान होना हैं। देश के अन्य सीटों के साथ मध्यप्रदेश की जिन सीटों पर इस दिन मतदान होना है, उनमें राजगढ़ भी शामिल है। राजगढ़ एक छोटा-सा, लेकिन एक साफ-सुथरा जिला है। यहां नेवज नदी बहती है, जिसे शास्त्रों में ‘निर्विन्ध्या’ के नाम से जाना जाता है वहीं राजगढ़ जिले में स्थित नरसिंहगढ़ के किले को ‘कश्मीर ए मालवा’ तक कहा जाता है। ये मध्य प्रदेश का सर्वाधिक रेगिस्तान वाला जिला है। ये जिला मालवा पठार के उत्तरी छोर पर पार्वती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है।
मध्य प्रदेश की राजगढ़ लोकसभा सीट राज्य की वीआईपी सीटों में से एक है। यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच का मुकाबला काफी रोचक होता आया है। इस सीट पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस ने ही राज किया है। यहां दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह आमने-सामने रह चुके हैं। बता दें दिग्विजय सिंह यहां से 2 बार तो लक्ष्मण सिंह 5 बार सांसद चुने जा चुके हैं। फिलहाल यहां से भाजपा के रोडमल नागर यहां से सांसद रहे हैं।
भाजपा ने यहां से रोडमल नागर को विरोध के बाद भी टिकट दिया है। बताया जा रहा है कि संगठन और कार्यकर्ताओं के बीच पटरी नहीं बैठ पा रही है। चाचौड़ा और राघौगढ़ जैसी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति को भाजपा चुनौती नहीं दे पा रही है। राजगढ़ में प्रत्याशी कांग्रेस सरकार के मंत्री जयवर्धन सिंह और प्रियवृत सिंह के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह ने राजगढ़ सीट पर मोर्चा संभाला हुआ है। जबकि कांग्रेस की घेराबंदी को तोड़ने के लिए भाजपा पूरा जोर लगा रही है।
वहीं कांग्रेस ने मोना सुस्तानी को चुनावी मैदान में उतारा है। वे पूर्व विधायक गुलाब सिंह सुस्तानी की बहू हैं। गुलाब सिंह जिला कांग्रेस के अध्यक्ष, एमपी एग्रो के चेयरमैन होने के साथ दो बार राजगढ़ विधायक भी रह चुके है। मोना ज़िला कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष होने के साथ ही तीन बार से लगातार जिला पंचायत सदस्य हैं। वो जनपद सदस्य भी रह चुकी हैं। वो कई सामाजिक धर्मिक संगठनों की सदस्य होने के साथ किरार धाकड़ समाज की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इस वजह से समाज में उनकी काफी पकड़ है।
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं। इसमें चचौड़ा, ब्यावरा, सारंगपुर, राघोगढ़, राजगढ़, सुसनेर, नरसिंहगढ़ और खिलचीपुर यहां की विधानसभा सीटें शामिल हैं।
राजगढ़ लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ। इसमें निर्दलीय उम्मीदवार भानुप्रकाश सिंह विजयी हुए। इसके बाद 1967 में कांग्रेस की रजनी देवी को जीत मिली। 1971 में भी कांग्रेस के ही उम्मीदवार यहां से सांसद चुने गए। 1977 में जनता दल के नरहरि प्रसाद साईं, 1980 में जनता पार्टी के वसंत कुमार रामकृष्ण चुने गए। कांग्रेस के खाते में यह सीट दिग्विजय सिंह ने 1984 में डाली। उसके बाद 1989 में प्यारेलाल खंडेलवाल और 1991 में फिर दिग्विजय सिंह को ही राजगढ़ में विजय मिली।
इसके बाद 1994 में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को जीत मिली, जिसके बाद उन्होंने लगातार 1996, 1998 और 1999 तक यह जीत कायम रखी। 2004 में भी लक्ष्मण सिंह ही इस सीट से सांसद चुने गए, लेकिन उन्होंने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा। 2009 में यहां कांग्रेस के नारायण सिंह ने राजगढ़ में विजय हासिल की तो 2014 में यह सीट भाजपा के खाते में आ गई और रोडमल नागर यहां से सांसद चुने गए, नागर एक बार फिर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस को 6 बार जीत मिली है और बीजेपी को 3 बार। ऐसे में देखा जाए तो इस सीट पर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है।
2011 की जनगणना के मुताबिक राजगढ़ में 24,89,435 जनसंख्या है। यहां की 81.39 फीसदी जनसंख्या ग्रामीण इलाके में रहती है और 18.61 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। इस क्षेत्र में गुर्जर, यादव और महाजन वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है। ये चुनाव में किसी भी उम्मीदवार की जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा राजगढ़ में 18.68 फीसदी अनुसूचित जाति के और 5.84 अनुसूचित जनजाति के लोग हैं।
कुल मतदाता 15,78,748
महिला 7,51747
पुरुष 8,27,001
2014 में कुल मतदान 57.75 फीसदी
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