Ujjain Lok Sabha Elections 2019 : महाकाल के नगरी में किसे मिलेगा आशीर्वाद, बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस का बढ़ा दबदबा, शिवराज और दिग्विजय की साख दांव पर

Ujjain Lok Sabha Elections 2019 : महाकाल के नगरी में किसे मिलेगा आशीर्वाद, बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस का बढ़ा दबदबा, शिवराज और दिग्विजय की साख दांव पर

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  • Publish Date - May 15, 2019 / 10:21 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:42 PM IST

मध्यप्रदेश की उज्जैन लोकसभा सीट भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल की नगरी है। उज्जैन मध्यप्रदेश का वो शहर है जो पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है।  यह नगर किसी समय विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी हुआ करती थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उज्जैन में हर 12 साल पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। धार्मिक नगरी होने के चलते उज्जैन पर भारतीय जनता पार्टी की अच्छी पकड़ रही है। इस सीट पर कांग्रेस ने आजादी के बाद शुरुआती सालों  में जीत हासिल की, लेकिन उसके बाद उसका जनाधार लगातार घटता गया। उज्जैन लोकसभा सीट पर अगर सबसे ज्यादा किसी उम्मीदवार ने जीत हासिल की है तो वो बीजेपी के सत्यनारायण जटिया हैं। उन्होंने सात चुनावों में यहां पर जीत हासिल की। फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और प्रोफेसर चिंतामणि मालवीय यहां के सांसद हैं।

लोकसभा चुनाव 2019 : प्रत्याशी

उज्जैन लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर है। कांग्रेस ने बलाई समाज से बाबूलाल मालवीय को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने खटीक समाज के अनिल फिरोजिया को मैदान में उतारा है।अनिल फिरोजिया ने तराना में विधायक रह चुके हैं। अनिल के पिता और बहन दोनों विधायक रह चुके हैं। हालांकि 2018 का  विधानसभा चुनाव हार गए थे। पहली बार लोक सभा सीट से लड़ रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवार बाबूलाल मालवीय दिग्विजय के शासन काल मे मंत्री रहे हैं। राजनीतिक अनुभव अच्छा है।

तराना से आते हैं, ज्यादा पहचाना चेहरा नही हैं। अनिल फिरोजिया पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के करीबी  हैं, तो वहीं बाबूलाल मालवीय कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की पहली पसंद  थे।   ऐसे में यहां से कोई भी जीते पूर्व मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर है।

8 विधानसभा सीटें

लोकसभा सीट में उज्जैन जिले की उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण ,महिदपुर, नागदा, घट्टिया, तराना, और बड़नगर विधानसभा क्षेत्र के साथ रतलाम की आलोट विधानसभा सीट शामिल है, जहां विधानसभा चुनाव में हुई जीत में कांग्रेस बीजेपी के गढ़ में मजबूत नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव में 8 सीटों में से बीजेपी के पास 3 तो कांग्रेस के कब्जे में 5 सीट है।

राजनीतिक इतिहास

उज्जैन में पहला लोकसभा चुनाव साल 1957 में हुआ था। उस समय कांग्रेस के व्यास राधेलाल ने जीत हासिल की थी। उन्होंने भारतीय जनसंघ के भार्गव कैलाश प्रसाद को पराजित किया था। इसके बाद 1962 के चुनावों में भी कांग्रेस को जीत मिली थी। 1967 के चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था।  इसके अगले 3 चुनाव में भी कांग्रेस को यहां पर लगातार हार मिली। 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर जीत हासिल की। सत्यनारायण पवार ने कांग्रेस की वापसी कराई । 1984 की जीत को सत्यनारायण 1989 के चुनाव में दोहरा नहीं सके और यहां पर उनको हार मिली। 1984 में  बीजेपी के सत्यनारायण जटिया ने इस बार जीत हासिल की। फिर इसके बाद उन्होंने लगातार 6 बार इस सीट पर फतह हासिल की।2009 के चुनाव में आखिरकार कांग्रेस को सफलता मिली जब प्रेम चंद ने उन्हें हरा दिया। हालांकि अगले ही चुनाव में बीजेपी ने इस हार का बदला ले लिया और प्रोफेसर चिंतामणि मालवीय ने प्रेम चंद को हरा दिया। उज्जैन लोकसभा सीट पर  बीजेपी को यहां 7 चुनावों में जीत मिली है तो कांग्रेस को सिर्फ 4 बार ही यहां पर जीत हासिल करने में कामयाब रही है।

चुनावी मुद्दे

मंदिरों की नगरी उज्जैन ऐतिहासिक धरोहरों के मामले काफी  धनी है.. लेकिन विकास की दौड़ में ये धार्मिक नगरी बाकी जिलों से काफी पिछड़ गया है। जिले की जीवनदायिनी शिप्रा नदी तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदूषण मुक्त नहीं हो पा रही है। वहीं शहर में पेयजल का संकट किसी से छिपी नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो जिला अस्पतालों में डॉक्टर्स की कमी है, जिसके चलते मरीजों को इंदौर रेफर कर दिया जाता है। उज्जैन में कभी बड़े-बड़े कारखाने हुआ करते थे।लेकिन सभी बंद हो चुके हैं और कोई नया उद्योग भी नहीं खुला। जिससे मजदूर वर्ग बदहाली के कगार पर हैं। युवा रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। महाकाल के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन उनके ठहरने के लिए बेहतर इंतजामों की यहां कमी है। कानून व्यवस्था के मामले में उज्जैन की हालत ठीक नहीं है।

जातिगत समीकरण

2011 की जनगणना के मुताबिक उज्जैन की जनसंख्या 22,90,606 है।  यहां की 63.49 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 36.51 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। यहां पर 26 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति के लोगों की है और 2.3 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है। उज्जैन की लगभग 86 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू है। मुस्लिम आबादी का आंकड़ा तकरीबन 11 प्रतिशत है। संसदीय क्षेत्र में बलाई समाज के साढ़े तीन लाख से अधिक वोट हैं। कांग्रेस ने बलाई समाज से आने वाले  बाबूलाल मालवीय को ही टिकट दिया है । वहीं बीजेपी ने खटीक समाज से आने वाले अनिल फिरोजिया को मैदान में उतारा है।

राजनीतिक प्रभाव

परंपरागत रुप से उज्जैन बीजेपी का गढ़ माना जाता है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में  बीजेपी ही हावी  रही है। हालांकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के गढ़ में सेंध लगाते हुए उज्जैन की 8 में से 5 विधानसभा सीटों पर कब्ज़ा किया, जबकि भाजपा ने अपनी शहरी दोनों सीटों के साथ एक ग्रामीण सीट पर कब्ज़ा बरकरार रखा। उज्जैन एससी सीट है। कांग्रेस के पास आलोट, तराना , घट्टिया विधानसभा समेत 3  आरक्षित एससी सीट है, साथ ही बडनगर और नागदा-खाचरोद सामान्य सीट पर भी कांग्रेस के विधायक हैं। वहीं भाजपा के पास महिदपुर की सामान्य सीट के साथ ही शहर की दोनों सीट है। भाजपा दावा कर रही है, कि कांग्रेस का विधानसभा का जो परिणाम है, वो भाजपा की जीत की लीड का आधा भी नहीं है, जबकि कांग्रेस दावा कर रही है, कि वो ग्रामीण सीट की लीड के साथ शहरी इलाके का गड्ढा भी भरने में जुट गई है। दोनों ही दल लोकसभा चुनाव में अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।

2014 के आंकड़े

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रो. चिंतामणि मालवीय ने कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को मात दी थी। इस चुनाव में चिंतामणि को 6,41,101(63.08फीसदी) वोट मिले थे और प्रेमचंद को 3,31,438 (32.61 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच जीत हार का अंतर 3,09,663 वोटों का था. वहीं बसपा उम्मीदवार रामप्रसाद .98 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थे। इससे पहले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को जीत मिली थी. उन्होंने बीजेपी के सत्यनारायण जटिया को हराया था. प्रेमचंद को 3,26,905 (48.97 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं सत्यनारायण को 3,11,064( 46.6 फीसदी वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 15,841 वोटों का था. वहीं बसपा 1.38 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी।

किसका पलड़ा भारी

उज्जैन में भाजपा का किला ध्वस्त करना आसान नहीं है लेकिन फिर भी कांग्रेस इस सीट को इस बार जीतने के लिए एड़ी-चोटी का दम लगाएगी तो वहीं भाजपा की पूरी कोशिश इस सीट को अपने पास बचाकर रखने की होगी, हालांकि उसके लिए यह कर पाना बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार है और विधानसभा चुनावों के नतीजे उसके पक्ष में नहीं आए हैं, कहना गलत ना होगा कि इस सीट पर लड़ाई रोमांचक हो गई है जिसमें जीतेगा वो ही जिसे उज्जैनवासियों का साथ और प्यार मिलेगा और वो किसके साथ हैं, यह तो चुनावी परिणाम ही बताएंगे।

2014 लोकसभा चुनाव परिणाम

विजयी प्रत्याशी

प्रो. चिंतामणि मालवीय ( BJP)

वोट : 6,41,101 (63.08 फीसदी)

फर्स्ट रनर अप

प्रेमचंद गुड्डू (कांग्रेस)

वोट :  3,31,438 (32.61 फीसदी) 

2014 में कुल मतदान प्रतिशत / मतदाता

कुल कितने फीसदी मतदान हुआ : 66.63

कुल मतदाता :  15,25,481

पुरुष मतदाता :  7,90,889

महिला मतदाता : 7,34,592