Big Picture with RKM: रायपुर: बांग्लादेश में आज एक नाटकीय घटनाक्रम हुआ और इस घटनाक्रम से देश का पूरा राजनीतिक चरित्र ही बदल गया। सुबह तक आवामी लीग की शेख हसीना जो देश की प्रधानमंत्री थी लेकिन दोपहर होते तक देश की कमान सेना के हाथों में आ गई। हालांकि यह सबकुछ तय नहीं था और धीरे-धीरे स्थिति विपरीत होती गई। इस साल के जनवरी में ही शेख हसीना चुनाव जीतकर सत्ता में लौटी थी। यह पूरा चुनाव तथाकथित था। तथाकथित इसलिए क्योंकि बांग्लादेश के विपक्षी दलों ने इस चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार किया था। लेकिन इन आठ महीनों में ऐसा क्या हुआ कि उन्हें सत्ता ही नहीं छोड़ना पड़ा बल्कि देश भी छोड़कर भागना पड़ा। आज की हमारी बिग पिक्चर इसी पर।
अब सबसे महत्वपूर्ण यह समझना होगा कि इस पूरे प्रकरण का असर कूटनीतिक तौर पर कैसा रहेगा? भारत और बांग्लादेश के बीच के रिश्ते कितने प्रभावित होंगे और चीन जैसे देश इस पर किस तरह नजर रखेंगे? बहरहाल हमें समझना होगा कि आखिर बांग्लादेश में इस पूरे बवाल के पीछे वजह क्या हैं। बात दें कि, इस साल के जून के आखिर में बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ था। यह आंदोलन वहां के स्थानीय छात्रों का था जो 1972 के आरक्षण कानून के खिलाफ था। 1972 के आरक्षण क़ानून के मुताबिक़ बांग्लादेश में नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनके परिवारों के लिए आरक्षित था। छात्र इसी 30 फ़ीसदी आरक्षण के विरोध में थे। छात्र चाहते थे कि सभी तरह की भर्तियां और नियुक्तियां मेरिट के आधार पर हो। इस आंदोलन की उग्रता को देखते हुए पिछले दिनों बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने इसे हटा भी दिया और सरकार भी इस आदेश से सहमत थी लेकिन छात्रों का आंदोलन और उग्र हुआ। वे इससे संतुष्ट नहीं थे। वे इस बदलाव को कानूनी रू देने के लिए अड़े हुए थे। इसी बीच इस आंदोलन में कई दूसरे संगठनों की भी एंट्री हुई। मसलन विपक्षी दल, सत्ताविरोधी दल और कुछेक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन। इस पूरे आंदोलन में अबतक 300 लोगों की भी मौतें हो चुकी है। बांग्लादेश में सबसे ज्यादा बवाल 4 अगस्त रविवार को सामने आया। इस एक ही दिन में यहां 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और इस पूरे विरोध प्रदर्शन ने उग्र रूप ले लिया। ये सारे हालात शेख हसीना के लिए भी अनुकूल नहीं थे बावजूद इसके सुरक्षा के इंतज़ाम किये गये थे और देशभर में कर्फ्यू भी लगाए गए थे।
बावजूद देशभर में छात्रों ने मार्च का आह्वान किया था। इस बीच सेना ने भी सरकार से कह दिया कि वह इस आंदोलन को रोकने में सहयोग तो करेंगे लेकिन उनके खिलाफ किसी तरह की दमनकारी नीति नहीं अपनाएंगे। लेकिन इसी बीच तेजी से घटनाक्रम में परिवर्तन हुआ और सेना ने आखिर में शेख हसीना को देश छोड़कर जाने के लिए 45 मिनट दिया और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने देश छोड़ दिया। चूंकि सेना ने हर तरह से शेख हसीना की मदद की तो एकबारगी यह साजिश देश की सेना की नहीं हो सकती। अब आगे इस पर सेना का क्या स्टैंड होगा यह देखना भी दिलचस्प होगा।
अब देखना होगा कि इस घटना का बांग्लादेश पर क्या असर होगा? घटना के बाद देश के सेना प्रमुख ने अपील किया हैं कि हिंसा छोड़कर सभी शांति के राह में आगे बढ़े, वह जल्द ही देश में एक अंतरिम सरकार बनाएंगे। सेना प्रमुख का यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीएनपी की मुखिया खालिदा जिया फ़िलहाल जेल में हैं। ऐसे में बांग्लादेश की सत्ता फिलहाल सेना के ही हाथों में ही रहेगी। दूसरा दृश्य यह हो सकता हैं कि बांग्लादेश में नेशनल पार्टी की सरकार बने। यानी किसी के पास भी बहुमत नहीं होने की स्थिति में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को साथ लेकर सरकार बनाई जाये। बात करें तीसरी स्थिति कि तो नए चुनाव तक देश की सत्ता प्रमुख देश के सेनाप्रमुख ही बने रहे। हालांकि यह सब कुछ आसान नहीं होगा। क्योकि मुल्क के हालात पर भारत और चीन दोनों की नजर बनी हुई है। बावजूद इन सबके देश की सत्ता में अभी सेना यही होगी, वही मुखिया होंगे।
शेख हसीना का सत्ता से हटना भारत के लिए बड़ा झटका माना जा सकता हैं। शेख हसीना भारत की समर्थक रही हैं। उन्होंने चीन के मुकाबले भारत को प्राथमिकता दी हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तीस्ता नदी पर बनने वाला बांध है। यहां भी शेख हसीना ने संतुलन बनाये रखा और चीन के मुकाबले भारत को ही प्राथमिकता दी। शेख हसीना पीएम मोदी की भी अच्छी राजनयिक मित्र रही हैं। वह नरेंद्र मोदी के सभी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल भी होती रही है। यही वजह थी कि भारत को भी उनपर पूरा विश्वास था। अब आशंका यह भी हैं कि कही चीन बांग्लादेश के सियासत में ज्यादा दखलंदाजी कर सकता हैं, वहां की सेना या विपक्षी दलों को प्रभावित भी कर सकता है। तो यह स्थिति भी भारत के लिए किसी खतरे से कम नहीं।
बांग्लादेश और भारत 4,096 किलोमीटर लंबी (2,545 मील) अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं। बांग्लादेश के इस राजनीतिक अस्थिरता के बाद सीमा में भी तनाव के आसार हैं। लेकिन सबसे अहम् नई सरकार के प्रभाव को लेकर हैं यानी कौन सा देश नई सरकार केकरीब होगा यह देखन भी दिलचस्प होगा।