#BigPictureWithRKM: इस्तीफे के ऐलान से जनता का कितना सरोकार या सिर्फ पॉलिटिकल स्टंट?.. आखिर किन वजहों से केजरीवाल ने किया पद छोड़ने का फैसला?.. देखें बिग पिक्चर

सबसे बड़ी वजह सरकार और खुद के खिलाफ जनता के बीच एंटी इंकम्बेंसी भी है। केजरीवाल एक दशक से शासन में हैं। जनता लगातार उनके कामकाज की भी समीक्षा कर रही हैं। ऐसे में किसी और को पद देना भी उनकी रणनीति का बड़ा हिस्सा है।

Modified Date: September 16, 2024 / 11:33 PM IST
Published Date: September 16, 2024 11:30 pm IST

 

Big Picture with RKM : रायपुर: निजी तौर पर सीएम अरविन्द केजरीवाल के सामर्थ्य में कोई शक नहीं है। वह जानते है कि खुद को कैसे सियासत के लाइमलाइट में रखा जाए, कैसे फोकस पर खुद को रखा जाए और कैसे ख़बरों के सुर्ख़ियों में खुद को बनाये रखा जाये। वह राजनीति के सबसे बड़े ‘तड़का एलिमेंट’ है। (Why did Arvind Kejriwal announce his resignation from the post of CM?) वे इस सदी के राजनीती के लालू यादव है। लालू यादव और केजरीवाल में कोई ज्यादा फर्क नहीं हैं। हाँ यह जरूर हैं कि लालू का अंदाज देसी था तो वही केजरीवाल पढ़े-लिखे है और आईआरएस भी रह चुके हैं। लेकिन बात समानता की करें तो दोनों मुख्यमंत्री भी रहे और दोनों पर ही भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। दोनों ने जेल की यात्राएं भी की। दोनों ही राजनेता जानते हैं कि कब क्या, क्यों और कैसे बोलना है। ऐसे में अगर केजरीवाल ने इस्तीफे की बात कही है तो इसके पीछे उनका खुद का फायदा और खुद की सियासत चमकाने की भाव भी छिपा है। फिलहाल केजरीवाल की सबसे बड़ी मंशा खुद पर लगे भ्रष्टाचार के दाग को धोने की है, खुद को इन आरोपों से दूर ले जाने की है। इस्तीफे की बात केजरीवाल का सबसे बड़ा सियासी स्टंट हैं। इसका देश के विकास और लोगों के कल्याण से कोई ख़ास लेना-देना नहीं है। केजरीवाल का प्रयास खुद की राजनीति को फिर से चमकाने की हैं। यही काम लालू यादव भी करते रहे और यही अरविन्द केजरीवाल भी कर रहे है।

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      क्यों किया इस्तीफे का ऐलान?

      केजरीवाल के इस्तीफे के ऐलान पर चर्चा करें तो इसके पीछे चार-पांच कारण हैं। उन्होंने कहा हैं कि वह जेल से बाहर आकर अब सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। वह फिर तभी कुर्सी संभालेंगे जब जनता उन्हें चुनाव में फिर से चुनकर सदन में भेजेगी। केजरीवाल का कहना कि मैं अग्निपरीक्षा दूंगा और तभी जनता के दरबार में जाऊंगा। यह सिर्फ कहना अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को ख़त्म करने की कोशिश मात्र है। और यही उनके इस्तीफे के ऐलान का पहला कारण है।

      इस्तीफे की दूसरी वजह कोर्ट की तरफ से उनपर लगाए गए प्रतिबन्ध हैं। फ़िलहाल उनके पास न कुछ खोने को है, न कुछ पाने के लिए। वे न ही दफ्तर जा सकते, न ही किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर सकते और न ही किसी तरह के आधिकारिक फैसले ले सकते। (Why did Arvind Kejriwal announce his resignation from the post of CM?) तो ऐसे में बेहतर होगा कि वह खुद को इस पद से अलग कर ले और किसी ऐसे नेता को बागडोर सौंप दे जो उनका कठपुतली हो और उसकी डोर उनके हाथों में हो। ऐसे में जब दिल्ली में छह महीनो में चुनाव है तो कम से कम फुल टाइम सीएम तो मिलेगा जो सरकार की तरफ से जनता के लिए चुनावी और लोकलुभावन फैसले ले सकेंगे। केजरीवाल को डर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू होने की भी हैं लिहाजा इस वजह से भी उन्होंने इस्तीफे का ऐलान किया है।

      तीसरी और सबसे बड़ी वजह सरकार और खुद के खिलाफ जनता के बीच एंटी इंकम्बेंसी भी हैं। केजरीवाल एक दशक से शासन में हैं। जनता लगातार उनके कामकाज की भी समीक्षा कर रही हैं। ऐसे में किसी और को पद देना भी उनकी रणनीति का बड़ा हिस्सा है। ऐसे कदम से वह जनता के बीच अपनी लोकप्रियता और नाराजगी को भांप सकेंगे और आने वाले चुनाव के लिए डैमेज का सुधार भी कर सकेंगे। इस्तीफे के बाद एंटी इंकम्बेंसी का सवाल भी ख़त्म हो जाएगा। केजरीवाल ने अपने फैसले से चुनावी हवा को पलटने की कोशिश की है।

      चौथा कारण यह भी हैं कि केजरीवाल नवम्बर महीने में दिल्ली का चुनाव चाहते हैं। इसके पीछे उनकी मंशा महाराष्ट्र के साथ चुनाव के साथ ही चुनाव कराने की है। (Why did Arvind Kejriwal announce his resignation from the post of CM?) केजरीवाल जानते है कि महाराष्ट्र में फिलहाल भाजपा की हालत सही नहीं हैं। भाजपा इस मराठा राज्य में कमजोर स्थिति में हैं, गठबंधन में है। सारी पार्टिया भी फ़िलहाल भाजपा के खिलाफ हैं तो केजरीवाल इस लहर का फायदा उठाना भी चाहते है।

      बात अब नए सीएम की करें तो यह तय हैं कि नए मुख्यमंत्री का चुनाव न ही विधायक दल करेगा और न ही पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी। सभी फैसले खुद सीएम केजरीवाल ही करेंगे। यह भी मुमकिन हैं कि नए मुख्यमंत्री का फैसला भी हो चुका होगा सिर्फ नाम के ऐलान की औपचारिकता ही बाकी रह गई है। वन मैन पार्टी में विधायक दल की बैठक और सामूहिक फैसले सिर्फ नाम के होते है।

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