What is the message of the fifth phase voting percentage?

The Big Picture With RKM : जम्मू ने जगाई आस, महाराष्ट्र ने किया निराश… क्या कहता है पांचवें चरण का मतदान? कम वोटिंग के मायने क्या?

जम्मू ने जगाई आस, महाराष्ट्र ने किया निराश... क्या कहता है पांचवें चरण का मतदान? What is the message of the fifth phase voting data?

Edited By :   Modified Date:  May 21, 2024 / 12:26 AM IST, Published Date : May 21, 2024/12:20 am IST

रायपुरः Message of fifth phase voting percentage लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण के तहत सोमवार को 6 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों की 49 सीटों पर वोट डाले गए। इन सीटों पर 57.80% वोटिंग हुई। सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में 73.06% तो सबसे कम महाराष्ट्र में 49.64% मतदान हुआ है। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने भी लोकतंत्र के महापर्व में बढ़कर हिस्सा लिया। बारामूला लोकसभा सीट पर 59 फीसदी वोटिंग हुई। सोमवार के मतदान और आंकड़ों को लेकर बहुत से संदेश निकले। तो चलिए समझते हैं आखिर पांचवे चरण का मतदान क्या कहता है?

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Message of fifth phase voting percentage  देश में लोकसभा चुनाव के लिए अब एक-एक कर पांच चरण खत्म हो गए हैं। पांचवे चरण के दौरान सोमवार को देश के सबसे ठंडे प्रदेश जम्मू-कश्मीर से सबसे अच्छी और गरमा-गरम खबर आई। यहां के बारामूला लोकसभा सीट पर पिछले चुनावों का रिकार्ड टूट गया। यहां करीब 54.21 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 40 बाद ये ऐसा मौका है, जब बारामूला में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने मतदान किया है। यहां से नेशनल कॉन्फ्रेस के नेता उमर अब्दुल्ला और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन के बीच मुकाबला है। इससे पहले पिछले चरण के अंतर्गत श्रीनगर लोकसभा सीट में मतदान हुआ था। वहां भी 40 साल बाद रिकॉर्ड 38% मतदान हुआ था। इससे पहले कश्मीर में मतदान का आंकड़ा 20%, 27% और 25% तक सिमट जाता था। पिछली बार केवल 30% वोटिंग हुई थी। इस बार वहां के मतदाताओं का घरों से बाहर निकलकर आना लोकतंत्र के लिए उत्साह की बात है। सबसे खास बात यह है कि धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में यह पहला चुनाव है। वहां के लोगों ने लोकतंत्र के त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। इससे एक बात तो साफ है कि वहां के लोगों में लोकतंत्र के प्रति विश्वास बढ़ा है। वहां के लोग अब लोकतांत्रिक ढंग से अपनी बात कहना चाहते हैं। हालांकि पिछले दिनों आतंकवादियों ने एक टूरिस्ट के ऊपर हमला किया था। यह घटना आतंकवादियों की बौखलाहट को दर्शाती है। क्योंकि अब आतंकियों को लगने लगा है कि कश्मीर में अब लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही है। लोग चुनाव में भाग ले रहे हैं। यही वजह है कि आतंकवादी अब लोगों को डिस्टर्ब करना चाहते हैं। उस घटना के बाद भी वहां लगभग 55% मतदान होना, लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत है। उल्लेखनीय़ यह भी है कि जम्मू-कश्मीर की तीन सीटों पर बीजेपी ने अपने कैंडिडेट नहीं उतारे हैं। भाजपा वहां के दूसरी पार्टियों को सपोर्ट कर रही है।

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इनसे इतर दूसरे राज्यों की बात करें तो पश्चिम बंगाल को छोड़ दे तो दूसरे जगहों पर कम मतदान हुआ है। बिहार-यूपी की सीटों पर भी कम मतदान चिंता का विषय है। महाराष्ट्र के मुंबई में वोटिंग परसेंट 50% तक नहीं पहुंचा। महाराष्ट्र की गिनती भारत के विकसित प्रदेशों में की जाती है। अच्छे और प्रोग्रेसिव विचारों के लिए जाना जाने वाले प्रदेश के लोग मतदान के लिए ना आए, यह एक निराशाजनक बात है। एक राज्य कश्मीर है, जो आतंकवाद प्रभावित होते हुए भी लोकतंत्र के त्योहार में अपनी सहभागिता दी। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र है, जहां सभी सुविधाएं होते हुए भी लोग वोट करने नहीं आए। यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। लोगों को स्वतः ही वोट देने के लिए आना चाहिए। आखिर 5 साल में एक बार सरकार चुनने का मौका मिलता है। उत्साह से मतदान करना चाहिए और सरकार चुनना चाहिए।

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आखिर मतदान कम होने की वजह क्या है?

मतदान प्रतिशत कम होने की कई वजह हो सकती हैं। सबसे पहला कारण मुझे लगता है कि भीषण गर्मी में चुनाव होना। इतनी गर्मी में वोट करने कोई जाना नहीं चाहता। सोमवार को देखें तो कई जगहों का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया था। केवल सुबह-शाम को लोग वोट करने आ रहे हैं। दोपहर को पोलिंग स्टेशन खाली रह जा रहे हैं। अब यह सोचना होगा कि क्या भीषण गर्मी के मौसम में चुनाव होना चाहिए? वोटर में उत्साह की कमी मुझे इसका दूसरा कारण लगता है। नेता और उम्मीदवार लोगों में उत्साह नहीं जगा पाए कि वे घरों से निकले और उनको वोट दें। नेताओं को भी मतदाताओं में निराशावादिता को दूर करने की दिशा में सोचना होगा। तीसरा कारण मुझे चुनाव की लंबी प्रक्रिया लगता है। चुनाव प्रकिया की अवधि लंबी होने के कारण लोगों में नीरसता आती है। चुनाव आयोग को भी यह ध्यान देना चाहिए कि पूरी चुनाव प्रक्रिया कम से कम समय में हो जाए। ईवीएम पर नेताओं की बयानबाजी भी मतदान को प्रभावित करता है। इससे चुनाव प्रक्रिया पर लोगों का विश्वास कम होता है। अब केवल 115 सीटे बची हैं जहां पर चुनाव होना है। अभी तक जो ग्राउंड रिपोर्ट हमें मिल रही है, जो स्थिति अभी सत्ता में है वह यथा स्थिति बनी रहेगी। बहुत ज्यादा बदलाव नहीं होने वाला है। हां ये बात जरूर है कि 20 से 25 सीटें इधर-उधर हो सकती है।बाकी हमें एक जून को एग्जिट पोल और 4 जून को नतीजों में पता चल जाएगा कि देश में आखिर किसकी सरकार बन रही है।

 

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