Face To Face Madhya Pradesh । Image Credit: IBC24
भोपाल। Face To Face Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण एक विशुद्ध राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। कांग्रेस ने एक बार फिर इसे लेकर मौजूदा सरकार को घेरने की कोशिश की है। सरकारी वकील पर सबसे ज्यादा निशाना साधा गया है। केस को जानबूझकर लटकाने का आरोप भी मढ़ा गया है। इस मामले की सच्चाई आखिर क्या है। सियासत तो बहुत हुआ क्या अब इसमें तस्वीर साफ होगी ये एक सवाल है ।
मध्यप्रदेश में फिर ओबीसी आरक्षण की सियासत गरमा रही है। कांग्रेस ये दावा कर रही है कि अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के मामले में सरकार की नीयत में ही खोट है। कांग्रेस के सुर में अब बेरोजगारों के सबसे बड़े संगठन NEYU ने भी सुर मिलाना शुरु कर दिया है। दरअसल, अब ना सिर्फ कांग्रेस की बल्की ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण का हक मांग रहे बेरोजगारों के संगठन ने फैसले में हो रही देरी का जिम्मेदार महाधिवक्ता प्रशांत सिंह को ठहरा रही है। बाकायदा सोशल मीडिया पर ओबीसी आरक्षण की पैरवी कर रहे बीजेपी सरकार के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह के खिलाफ ट्रेंड चलाया जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार खुद कह रहे हैं कि प्रशांत सिंह हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण की पैरवी तबीयत से नहीं कर रहे हैं। लिहाजा अब तक मामला पेंडिंग पड़ा हुआ है।
दरअसल, मध्यप्रदेश में ओबीसी कैटेगरी की सियासत नयी नहीं है। पिछले 5 सालों से ओबीसी पर जमकर सियासत हो रही है। चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों दलों की तरफ से चुनावों के दौरान ओबीसी कैटेगरी के लिए चांद तारे तोड़ने के दावे भी होते रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ ने साल 2019 में ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला ले लिया था। हालांकि इस निर्णय के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं दायर हुईं थी।
Face To Face Madhya Pradesh: याचिकाओं में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक, एससी, एसटी, और ओबीसी के लिए कुल आरक्षण 50% से ज़्यादा नहीं हो सकता उधर सत्ता मे लौटते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग बनाकर ओबीसी की आबादी तक की गिनती करवा दी थी। आयोग की रिपोर्ट ने ये दावा किया था कि एमपी में 52 फीसदी ओबीसी जनसंख्या है जबकि 48 फीसदी वोटर है। जाहिर है ओबीसी आरक्षण पर लगी आग की लपटों की तपिश अब भी महसूस की जा रही है। भले कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान की सियासत का युग मध्यप्रदेश में खत्म हो गया हो, लेकिन दोनों ही दलों के मौजूदा नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि मामला सीधे सीधे 50 फीसदी वोटों से जुड़ा है।