सुधीर दंडोतिया/भोपालः गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 50 उम्रदराज विधायकों और उनके परिवार वालों को दरकिनार कर कार्यकताओं को तरजीह दी। लेकिन मध्य प्रदेश में बीजेपी संसदीय बोर्ड के 11 सदस्यों में से एक सत्यनारायण जटिया ने ये कहते हुए नई बहस छेड़ दी है कि समय के साथ चीजें विस्मृत हो जाती है। यानी साफ़ है कि 75 साल के ऊपर वाले नेता भी चुनाव लड़ सकते हैं और नेतापुत्रों के लिए भी चुनाव लड़ने का रास्ता साफ है। हालांकि एमपी में निकाय चुनाव के ठीक पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने ये साफ कह दिया था कि बीजेपी में वंशवाद नहीं चलेगा। लेकिन बीजेपी अध्यक्ष के बयान के 4 महीने बाद ही बयान के मायने बदल गए।
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क्या बीजेपी अपने चुनाव लड़ने वाले क्राइटेरिया से समझौता करने वाली है, ये सवाल इसलिए है कि बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्य सत्यनारायण जटिया 75 साल के नेता टिकट देने के मामले में बीजेपी की लाइन से अलग बयान दे गए। जी हां बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्य सत्यनारायण जटिया बीजेपी लाइन से अलग नेताओ के परिवार और उम्रदराज नेताओं के चुनाव लड़ने के पक्ष में नजर आ रहे हैं। सत्यनारायण जटिया का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वो बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं और बीजेपी हर बार नए फॉर्मूले के साथ चुनाव मैदान में जाती है। नेताओं के रिश्तेदारों के चुनाव लड़ने के सवाल पर जटिया ने कहा कि अगर परिवार के लोग तैयारी करेंगे तो पार्टी के काम आयेगी। उम्मीदवारी के बारे में सोचना गलत नहीं है।
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जटिया के बयान के बाद सियासी बयानबाजी शुरू हो गई है। एक ओर प्रदेश बीजेपी क्राइटेरिया को लेकर असमंजस में है तो कांग्रेस बीजेपी की नीतियों को अवसरवादी बता रही है। राजनीति में परिवारवाद को लेकर लंबे समय से बहस होती रही है। 2018 के चुनाव में बीजेपी ने 75 का फार्मूला लागू करते हुए कई उम्रदराज नेताओं के टिकट काटे थे। जटिया के बयान ने पेंशन पा रहे नेताओं और भाई-भतीजा और बेटा-बेटी के राजनीतिक भविष्य की टेंशन ले रहे नेताओं को थोड़ी राहत जरूर दी होगी।
जटिया खुद 77 साल के है ऐसे में माना जा रहा है कि वो खुद भी लोकसभा के लिए दावेदारी कर सकते है। अब सवाल यही है जिस वंशवाद के जरिये बीजेपी विपक्षी दलों पर हमला कर देश में आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करने की बात करती है, क्या चुनावी राजनीति ने उसे सिद्धांत बदलने पर मजबूर कर दिया है!
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6 hours ago