खंडवा। Khandwa’s daughter Fauzia: यहां के 13 साल की एक छात्रा मूकबधिरों की आवाज बनकर उन्हें इंसाफ दिलाती है। जी हां , सुनने में अजीब लगता है, लेकिन ये सच है। वह न कानून की पढ़ाई की है और न मूकबधिरों की भाषा सीखी है.. फिर भी 13 वर्षीय आठवीं कक्षा की ये छात्रा मूकबधिर लोगों की आवाज बन चुकी है… जो बोल व सुन नहीं सकते, उनकी इशारों की भाषा समझकर थाना हो या कोर्ट… बेजुबानों को न्याय दिलाने पहुंच जाती हैं।
8वीं कक्षा की छात्रा फौजिया दिव्यांगों की आवाज बनकर उनको इंसाफ दिलाती है। फौजिया ने इसके लिए कोई विशेष पढ़ाई या कोई ट्रेनिंग नहीं ली है, बल्कि अपने मां-बाप को देखकर उसने यह लैंग्वेज सीखी है। अब इसी के दम पर थाने, कचहरी या अन्य सरकारी काम में मूकबधिर लोग जो बोल और सुन नहीं सकते, उनकी मदद करती है, ताकि उनको इंसाफ मिल सके। उनके जरूरी कागजात सरकारी ऑफिसों में बन सके।
फौजिया के पिता फारूख और मां. फेमिदा मूकबधिर हैं। बचपन से माता–पिता को इशारों में बात करते देख वह भी इस भाषा को सीख गई। इसी खूबी के चलते मां से प्रेरणा लेकर उसने मूक बधिर लोगों की मदद शुरू कर दी। खंडवा, इंदौर, बुरहानपुर, इटारसी सहित कई जिलों और पड़ोसी राज्यों में वह कलेक्टर और एसपी के सामने वकीलों की तरह बेबाकी से पीड़ितों के पक्ष रखती है। पीड़ितों को न्याय मिलने तक वह उनके साथ ही रहती है।
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फौजिया का कहना है, कि उसने सबसे पहले इसकी शुरुआत बुरहानपुर से की थी। यहां एक मूक-बधिर को परेशानी आने पर उसने बुरहानपुर प्रशासन की मदद की थी। इससे उसे खुशी मिली तब से लेकर आज तक वह कई जगह प्रशासन व मूक-बधिरों के बीच सेतु बनकर काम कर चुकी है। इतना ही नहीं फौजिया ने खंडवा में एक मूक-बधिर परिवार को टूटने से भी बचाया था। फौजिया ने बताया कि घरेलू विवाद में उनका समझौता कराने में पुलिस की मदद की थी। क्योंकि वे दोनों मूकबघिर थे और पुलिस को उनकी बाते समझने में दिक्कत आ रही थी। इसके बाद मुझे बुलाया और मैंने उनकी समस्या पुलिस को समझाते हुए पुलिस का सहारा लेकर उनको बेहतर समझाइश दी। उन्हीं की लैंग्वेज यानी इशारों–इशारों में।
फौजिया 13 साल की उम्र में 100 से ज्यादा मूकबधिर लोगों की मदद कर चुकी है और आगे उसे मदद के लिए बुलाया जाता तो वह फोरन मदद के लिए पहुंच जाती है। फौजिया का कहना है, कि उसके माता पिता मूक-बधिर है और उन्होंने ही ऐसे लोगो की मदद करना मुझे सिखाया है। अभी में 8वीं कक्षा में पढ़ती हूं और आगे अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हूं, साथ ही ऐसे लोगों की मदद करना मुझे अच्छा लगता है। कहते हैं! जहां चाह होती है, वहां राह होती है। अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो तो हर काम आसान हो जाता है, खंडवा की फौजिया ने भी ये कर दिखाया है। न कानून की पढ़ाई की और न मूक-बधिरों की भाषा सीखी फिर भी उनकी आवाज बनकर इंसाफ दिला रही है।