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दतियाः MP News: मध्य प्रदेश के दतिया (Datia) में एक राजसी विवाद ने तूल पकड़ लिया है। रविवार को हेरिटेज पैलेस में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान राहुल देव सिंह ने स्वयं को दतिया रियासत का 14वां महाराज घोषित कर दिया। इसे लेकर अब एक नई बहस छिड़ गई है। इस बीच अब राजमाता भावना राजे जूदेव का बड़ा सामने आया है। भावना राजे ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “मैंने अपने श्वसुर की परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने दामाद का तिलक किया है। इसमें किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए?” साथ ही उन्होंने संविधान की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा, “हमें हमारा नाम रखने का अधिकार है।” राजा राहुल देव सिंह जूदेव के तिलकोत्सव पर महाराज घनश्याम सिंह जूदेव और अरुणादित्य सिंह जूदेव द्वारा उठाए गए सवालों पर राजमाता ने अपनी नाराजगी जताई और उन्हें साफ शब्दों में कहा-“कृपया हमारे पारिवारिक मामलों में हस्तक्षेप न करें।”
बता दें कि दतिया रियासत का इतिहास बुंदेलखंड के महान योद्धा महाराज वीर सिंह जूदेव से जुड़ा हुआ है। स्वतंत्रता पूर्व इस रियासत की एक सुदृढ़ और संगठित व्यवस्था रही है, जहां परंपराओं का विशेष महत्व था। महाराज गोविंद सिंह जूदेव ने रियासत के अंतरिम शासक के रूप में अपनी भूमिका निभाई थी और उन्होंने अपने बड़े पुत्र बलभद्र सिंह जूदेव को राजगद्दी दी, जबकि अपने छोटे पुत्र जसवंत सिंह जूदेव को ‘रावराजा’ की उपाधि और वसीयत का बड़ा हिस्सा प्रदान किया। यही टाइटल आज विवाद का कारण बन चुका है।
MP News: यह विशेष उपाधि ‘रावराजा’ केवल एक सम्मानजनक संबोधन नहीं, बल्कि यह गोविंद सिंह की पारिवारिक व्यवस्था और न्याय का प्रतीक था। उन्होंने इसे अपने छोटे पुत्र को देकर यह दिखाया था कि पारिवारिक संतुलन और परंपरा दोनों को साथ लेकर चलना चाहिए। लेकिन वर्तमान में जसवंत सिंह जूदेव के दामाद राहुल देव सिंह को रावराजा के रूप में तिलक करना कुछ लोगों को स्वीकार्य नहीं है, विशेष रूप से उन सदस्यों को जो स्वयं को गद्दी का अधिकृत उत्तराधिकारी मानते हैं।
तिलकोत्सव के समय उपस्थित स्थानीय जनप्रतिनिधि, साधु-संत, और हजारों की भीड़ ने इसे एक राजकीय आयोजन की तरह देखा। और यही बात घनश्याम सिंह जूदेव और अरुणादित्य सिंह जूदेव को चुभी। दोनों ने मीडिया में आकर इस तिलक कार्यक्रम को ‘राजनीतिक स्टंट’ करार दिया और कहा कि यह रियासत की परंपराओं के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि एक दामाद को रावराजा कहना, पारिवारिक परंपरा का उल्लंघन है। इन बयानों के जवाब में भावना राजे ने कहा— “क्या एक स्त्री को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने परिवार की विरासत का संरक्षण करे? मैंने अपने श्वसुर की इच्छा और परंपरा के अनुरूप कार्य किया है।” राजमाता के इस बयान के बाद एक ओर जहां राहुल देव सिंह समर्थक इसे ‘न्यायोचित परंपरा की रक्षा’ मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विरोधी गुट इसे ‘मनमानी’ बता रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या राजमाता के इस बयान से विवाद थमेगा? या फिर यह और गहराएगा?