देखिए अटेर विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
देखिए अटेर विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
भिंड। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश के भिंड जिले में आने वाली अटेर विधानसभा सीट की। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटी इस सीट से मिथक जुड़ा है कि यहां से कोई भी नेता लगातार दो बार विधायक का चुनाव नहीं जीता। हां, पार्टी जरूर लगातार 2 चुनाव जीती है। हेमंत कटारे के पिता सत्यदेव कटारे इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे और विपक्ष में नेता प्रतिपक्ष थे। लेकिन उनके निधन के बाद 2017 में उपचुनाव में हेमंत कटारे यहां से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। हालांकि पिछले दिनों रेप के कथित आरोप के बाद उनकी छवि जरूर धूमिल हुई है। वहीं बीजेपी भी इस मौके को भुनाते हुए सीट को दोबारा हासिल करने के लिए पूरी जोर लगा रही है।
अटेर में इन दिनों सियासत पूरे उफान पर है। चाहे कांग्रेस के नेता हो या बीजेपी हो फिर किसी और दल का। एक–दूसरे पर आरोप लगाने का कोई मौका नहीं चूकते। कांग्रेस विधायक हेमंत कटारे पर फिलहाल कथित रेप का आरोप है। हालांकि वे इस आरोप को झूठा बताते हुए कहते हैं ये सब व्यापमं के मामले को उठाने का बदला है। साथ ही वे ये भी कहते हैं कि उनके ऊपर कथित रेप का आरोप झूठा था, जिसे बीजेपी सरकार और अरविंद भदौरिया ने लगवाया था। वहीं दूसरी ओर अरविंद भदौरिया का कहना है कि कांग्रेस विधायक अपनी गलतियों को दूसरे पर डालने के लिए इस तरह का आरोप लगा रहे हैं। उनके मुताबिक उन्होंने किसी तरह का डर्टी पॉलिटिक्स का काम नहीं किया है। वहीं इलाके के पिछड़ेपन के लिए वे कांग्रेस विधायक को दोषी मानते हैं।
यह भी पढ़ें : मध्य प्रदेश के कड़कनाथ को मिला जीआई टैग, छत्तीसगढ़ ने भी किया था दावा
अटेर के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1952 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट पर अब तक 15 बार चुनाव हुए। इसमें से 9 बार कांग्रेस, 3 बार बीजेपी, 2 बार बीएसपी और 1 बार जनता पार्टी चुनाव जीती। 1980 में यहां कांग्रेस के परशुराम भदौरिया चुनाव जीते। 1985 यहां से सत्यदेव कटारे से पहली बार चुनाव लड़े और चुनाव जीते। 1993 में सत्यदेव कटारे दूसरी बार यहां से चुनाव जीते लेकिन 1998 में बीजेपी के मुन्ना सिंह भदौरिया ने हरा दिया। लेकिन 2003 में सत्यदेव कटारे ने मुन्ना सिंह भदौरिया को हराकर पिछली हार का बदला लिया। 2008 में अटेर विधानसभा सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हो गई 2008 में बीजेपी के अरविंद सिंह भदौरिया ने सत्यदेव कटारे को मात देकर एक बार फिर बीजेपी का परचम लहराया। वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्यदेव कटारे अटेर से पांचवी बार चुनाव लड़े और जीते भी। लेकिन 2017 में उनके निधन के बाद यहां उपचुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने सत्यदेव कटारे के बेटे हेमंत कटारे को टिकट दिया, जबकि बीजेपी से अरविंद सिंह भदौरिया चुनाव मैदान में थे। लेकिन बाजी मारी हेमंत कटारे ने इस चुनाव में कांग्रेस को जहां 59228 वोट मिले, वहीं बीजेपी के खाते में 58371 वोट आए। इस तरह जीत का अंतर मात्र 857 वोटों का रहा।
अटेर विधानसभा के जाति समीकरण की बात करें तो यहां ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक स्थिति में रहते हैं। इसके अलावा नरवरिया, कुशवाह, बघेल, अजा, मुस्लिम मतदाताओं का भी अच्छा खास प्रभाव रहता है। यानी अटेर में मिशन 2018 की बाजी वही जीतेगा। जो यहां सभी समीकरणों को को साधने में सफल होगा।
अटेर विधानसभा क्षेत्र को मध्यप्रदेश की हाईप्रोफाइल सीट कहा जा सकता है, क्योंकि ये कांग्रेस के दिवंगत सत्यदेव कटारे का चुनाव क्षेत्र रहा है। अटेर की जनता ने लंबे समय तक कांग्रेस और कटारे परिवार पर अपना भरोसा किया है। लेकिन उसके बावजूद यहां मुद्दों की कोई कमी नहीं है। बुनियादी सुविधाओं की कमी के अलावा यहां अवैध रेत खनन का मुद्दा इस बार चुनाव में सियासी मुद्दा जरूर बनेगा। वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं भी बदहाल हो चुकी हैं।
यह भी पढ़ें : तेज रफ्तार ट्रक ने ढाबा में खाना खा रहे 6 लोगों को रौंदा, मौके पर मौत
बंद पड़े दफ्तरों और खुदे हुए सड़कों देखकर ही आप अटेर विधानसभा क्षेत्र के विकास का अंदाजा लगा सकते हैं। और इसकी सबसे बड़ी वजह है अटेर में कांग्रेस और बीजेपी में मची सियासी खींचतान.. जिसके बीच यहां की जनता सालों से पीस रही है। आज भी ये इलाका बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। यहां के लोगों को आज भी छोटे-छोटे काम के लिए भिंड तक जाना पड़ता है। वहीं दोपहर होते ही सरकारी दफ्तरों से लेकर अस्पतालों में ताले लटकना आम बात है। रोजगार और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी पिछड़ा है अटेर विधानसभा। अटेर विधानसभा सीट को अपने कब्जे में लेने के लिए कांग्रेस और बीजेपी के दावेदारों से लेकर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कई विकास के वायदे किए थे। मुख्यमंत्री 2017 में हुए उपचुनाव में एक हफ्ते अटेर विधानसभा में रुकने के साथ उसे गोद लेने तक की बात मंचों से करके गए थे। लेकिन उन वायदों की जमीन हकीकत यहां के लोगों की जुबानी समझी जा सकती है।
हालांकि बीजेपी नेता ये जरुर दम भर रहे हैं कि मध्य प्रदेश की इक्का–दुक्का विधानसभा सीटों में से एक अटेर विधानसभा है, जिसमें सबसे ज्यादा काम हुआ है। बीजेपी के पूर्व विधायक और प्रदेश उपाध्यक्ष अरविंद भदौरिया की माने तो शिवराज सरकार ने एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के काम कराएं है। वहीं गांव-गांव में सड़कों का जाल बिछा दिया है।
वहीं कांग्रेस विधायक हेमंत कटारे का कहना है कि उनका कार्यकाल छोटा जरूर रहा है, लेकिन उन्होंने विकास के कई कार्य करवाए हैं। लेकिन वो राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि विधायक निधि से भी कोई काम अगर करवाना चाहते है, तो बीजेपी के नेता उसे होने नहीं देते हैं। इसके साथ ही हेमंत कटारे का आरोप है कि नदियों को छलनी कर बीजेपी के नेता अवैध उत्खनन करवा रहे हैं। वे इस मामले को विधानसभा में उठाते है, लेकिन सरकार कुछ नही करती। इसके अलावा भी अटेर में कई ऐसी बुनियादी समस्याएं हैं, जो आने वाले चुनाव में नेताओँ के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं। हालांकि अटेर विधानसभा में दोनों सियासी दल विकास के लाख दावे करते हैं। लेकिन आज भी अटेर विधानसभा में ये मुद्दे हावी है, जिन पर सियासत करके वे सत्ता में आएं थे।
भिंड जिले की अटेर विधानसभा का सियासी गाणित भी बेहद रोचक है। इस विधानसभा में हमेशा उम्मीदवार ब्राहम्ण और क्षत्रिय होते है। बीजेपी हमेशा क्षत्रियों पर दांव खेलती आई है, तो वहीं कांग्रेस ब्राहम्ण प्रत्याशियों पर भरोसा करती आई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के पास अपने उम्मीदवारों की लंबी फेरिस्त है, तो वहीं कांग्रेस भी पीछे नहीं है। बावजूद इसके विवादों से घिरे मौजूदा कांग्रेस अपनी दावेदारी से लेकर जीत का दंभ भर रहे है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के मजबूत गढ़ों में से एक है अटेर विधानसभा। पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता सत्यदेव कटारे और उनके निधन के बाद उनके बेटे यहां से विधायक हैं। हालांकि यहां बीजेपी के हारने की बड़ी वजह भीतरघात रही है। अटेर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के पूर्व विधायक अरविंद भदौरिया, बीज निगम उपाध्यक्ष और दो बार के विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया और संभागीय संगठन मंत्री शैलेंद्र बरुआ जैसे कद्दावर नेता हैं। इस लिस्ट में चंबल के एंकाउंटर स्पेशलिस्ट अशोक भदौरिया का नाम भी शामिल हो गया है। संगठन की तमाम कोशिशों के बावजूद यहां नेताओं के समर्थक खेमों में बंटे हुए हैं। इसका खामियाजा पार्टी को 2013 के विधानसभा चुनाव और 2017 के उपचुनाव में भुगतना पड़ा था। हालांकि बीजेपी नेताओं के मुताबिक इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा।
सियासी महासमर 2018 के लिए बीजेपी यहां एक बार फिर चुनावी तैयारियों में जुट गई है। पार्टी से संभावित उम्मीदवारों की बात की जाए तो इसमें सबसे पहला नाम पूर्व विधायक अरविंद भदौरिया का है। आरएसएस से जुड़े होने के साथ पार्टी में उनकी मजबूत पकड़ है। इनके अलावा अशोक भदौरिया भी टिकट की दौड़ में शामिल है। अशोक भदौरिया की पहचान चंबल में एनकांउटर स्पेशलिस्ट की तौर पर रही है, लेकिन रिटायर होने के बाद वे बीजेपी से जुड़ गए और अब बीजेपी से टिकट की दावेदारी भी कर रहे है।
यह भी पढ़ें : मौसम विभाग का पूर्वानुमान, अगस्त-सितंबर में सामान्य रहेगा मानसून
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस विधायक हेमंत कटारे टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं। लेकिन पिछले दिनों उनपर एक युवती ने दुष्कर्म और अपहरण का आरोप लगाया। इससे उनकी छवि खराब हुई। हालांकि बाद में आरोप लगाने वाली युवती ने कहा कि उसने राजनीतिक प्रभाव में झूठे आरोप लगाए थे। उसने अरविंद भदौरिया पर ही आरोप लगा दिया। इससे कटारे की स्थिति सुधरी है। वे कांग्रेस से टिकट के प्रमुख दावेदार अब भी हैं। लेकिन कांग्रेस कथित रेप कांड को लेकर हेमंत कटारे का टिकट काटती है, तो उसके बाद ब्राहम्ण नेताओं में कांग्रेस की तरफ से सबसे बड़ा नाम मनोज दैपुरिया का है। मनोज दैपुरिया का दावा है कि वो कांग्रेस को इस सीट से विजय दिलवाएंगे।
हालांकि कांग्रेस हो या बीजेपी टिकट फाइनल करते समय जाति समीकरण का भी ख्याल रखती है। वहीं बसपा और सपा यहां बीजेपी और कांग्रेस के असंतुष्टों के भरोसे रहती हैं। जो इन पर दांव लगाने का काम करती है।
वेब डेस्क, IBC24

Facebook



