ग्वालियर: ग्वालियर में बीते 29 सालों से फाइलों और बंजर जमीन के बीच ही घुम रही है। न तो साडा क्षेत्र में लोग अपनी रूचि दिखा रहे हैं और न ही प्रशासनिक नुमांइदें इसको लेकर जरा भी संजिदें। मसलन 600 करोड़ की राशि खर्च करके बनाए क्षेत्र में अभी तक किसी शहरी व्यक्ति ने अपनी आमद दर्ज नही करवाई है। हालत ये है, जो आवास योजना के समय, साडा ने बनाएं थे वो कंडम हो गए है। आज इसी की पड़ताल करेगें। आखिर, साडा को लेकर कितनी गंभीर है, सरकार ओर उसकी मशीनरी।
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चमचमाती सड़कों का सपना…बड़ी-बड़ी इमारतों का इरादा…बिजली, पानी, खेल-मैदान जैसी सुविधाओं का आनंद…विकास की दावा… ग्वालियर शहर और शहरवासी 29 सालों से इस सपने को संजोए हुए थे। लेकिन SADA की हकीकत क्या है?
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ग्वालियर का विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण यानि “साडा” में आज भी दूर-दूर तक वीरानी छाई हुई है। यहां जो भी घर बनाने की सोचते हैं, वो दूर-दूर तक छाए सन्नाटे, चारों ओर बंजर मैदान को देखकर लौट जाते हैं। दरअसल साल 1992 में प्रदेश सरकार ने ग्वालियर की बढ़ती आबादी को देखकर दिल्ली के नोएडा की तर्ज पर एक नया शहर बसाने की योजना बनाई थी। लेकिन भारी रकम खर्च करने के बाद भी यहां न तो बिजली, पानी, सीवर जैसी जरूरी सुविधाएं जुटा पाया है और न ही बनाई हुई सड़कों का मेंटेनेंस करा पाया है। नतीजतन 29 सालों से साडा के अफसर बसाहट नहीं कर पाए हैं, लिहाज़ा साडा की हालत अब पतली हो गई है।
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