मुंबई, तीन अगस्त (भाषा) केंद्र सरकार ने मंगलवार को बंबई उच्च न्यायालय में कहा कि एक बड़ी, अखिल भारतीय साजिश का पर्दाफाश करने के लिए एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को सौंपा गया था और इसका महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन से कोई लेना-देना नहीं है।
इस मामले के सम्बन्ध में गिरफ्तार मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता सुधीर धवले की ओर से उच्च न्यायालय में दायर याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने हाल में हलफनामा दायर किया था। उक्त याचिका में जनवरी 2020 में लिए गए उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें मामले की जांच पुणे पुलिस से एनआईए को सौंप दी गई।
वकील एस बी तालेकर के जरिये पिछले साल दायर की गई याचिका में कहा गया था कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार जाने के बाद केंद्र ने मामले को एनआईए को सौंपा इसलिए यह निर्णय राजनीति से प्रेरित था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आतंकवाद रोधी एवं चरमपंथ रोधी विभाग के अवर सचिव की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया, “इसका खंडन किया जाता है कि सरकार बदलने के कारण जांच स्थानांतरित की गई। सरकार बदलने से एनआईए को जांच सौंपे जाने का कोई लेनादेना नहीं है।”
यह भी कहा गया कि याचिका गलत इरादे से और परेशान करने के लिए दायर की गई। हलफनामे में कहा गया, “यह उजागर हुआ है कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के वरिष्ठ नेता एल्गार परिषद के आयोजकों के संपर्क में थे और उनका इरादा माओवाद/नक्सलवाद का प्रसार करना और अवैध गतिविधियों को प्रोत्साहन देना था।”
सरकार की ओर से दायर हलफनामे के अनुसार, “मामला असाधारण रूप से गंभीर था और यह न केवल पुणे जिले में बल्कि भारत के बहुत से क्षेत्रों में फैला है” इसलिए आरोपियों की अखिल भारतीय साजिश का खुलासा करने के लिए गहन जांच की जरूरत थी।
भाषा यश पवनेश
पवनेश
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