Shiv Sena political crisis: खत्म हुई 'शिवसेना'! तीर कमान टूटकर बनी 'जलती मशाल' और 'तलवार ढाल' |

Shiv Sena political crisis: खत्म हुई ‘शिवसेना’! तीर कमान टूटकर बनी ‘जलती मशाल’ और ‘तलवार ढाल’

आपको जानकर हैरानी होगी की यह पहली बार नहीं है जब शिवसेना मशाल चुनाव निशान पर चुनाव लड़ रही है।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:23 PM IST, Published Date : October 12, 2022/1:12 pm IST

मुंबई। शिवसेना के दो धड़ों में घमासान के बाद आखिरकार चुनाव आयोग ने उद्धव और शिंदे गुट को उपचुनाव के लिए धनुष बाण से इतर चुनाव निशान देने का फैसला कर दिया है। उद्धव गुट को मशाल का चुनाव निशान दे दिया गया है हालांकि शिंदे गुट के सुझाए निशानों से चुनाव आयोग संतुष्ट नहीं था। इसलिए शिंदे गुट से तीन अन्य विकल्प मांगे गए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी की यह पहली बार नहीं है जब शिवसेना मशाल चुनाव निशान पर चुनाव लड़ रही है। इससे पहले 1985 में भी शिवसेना को यही निशान दिया गया था और उसे सफलता भी हाथ लगी थी।>>*IBC24 News Channel के WHATSAPP  ग्रुप से जुड़ने के लिए  यहां CLICK करें*<<

महाराष्ट्र में शिवसेना के चुनाव चिन्ह की जंग को थामते हुए चुनाव आयोग ने ठाकरे गुट और शिंदे गुट दोनों को नए चुनाव चिन्ह और नाम आवंटित कर दिए हैं। बता दें कि उद्धव ठाकरे गुट को ‘ज्वलंत मशाल’ (मशाल) और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को ‘दो तलवारें और एक ढाल’ का चुनाव चिन्ह दिया गया है। यह दोनों ही निशान एक समय पर मूल पार्टी शिवसेना से जुड़े हुए थे। फिर लंबे टाइम बाद जाकर पार्टी को ‘धनुष और तीर’ का चुनाव चिन्ह मिला था।

छगन भुजबल ने मजगांव से मशाल के निशान पर चुनाव जीता था। बाद में भुजबल ने विद्रोह कर दिया और वे कांग्रेस में चले गए। छगन भुजबल इस समय राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में हैं। शिवसेना ने निकाय चुनाव और विधानसभा चुनाव के वक्त मशाल चुनाव निशान का इस्तेमाल किया था। बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना का गठन तो कर दिया था लेकिन स्थायी चुनाव निशान मिलने में 23 साल लग गए। 1989 में शिवसेना को राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा दिया गया। इसके बाद ही पार्टी को एक स्थाई चुनाव निशान रखने की अनुमति मिली।

शिवसेना में एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद लगभग 33 साल बाद ऐसा हुआ है कि जब पार्टी का ‘धनुष बाण’ निशान फ्रीज कर दिया गया है। इसके अलावा चुनाव आयोग ने दोनों गुटों को शिवसेना नाम का इस्तेमाल करने से भी रोका है। विकल्प मांगने के बाद चुनाव आयोग से शिंदे गुट को बालासाहेबांची शिवेसना और उद्धव गुट को, शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे नाम दिया गया है।

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