चैत्र नवरात्र : त्याग-तपस्या की देवी है मां ब्रह्मचारिणी,हजारों वर्ष के कठोर तप से प्रसन्न किया था भगवान भोलेनाथ को
चैत्र नवरात्र : त्याग-तपस्या की देवी है मां ब्रह्मचारिणी,हजारों वर्ष के कठोर तप से प्रसन्न किया था भगवान भोलेनाथ को
धर्म: वर्ष 2020 में चैत्र नवरात्रि 25 मार्च से प्रारंभ हो गई है। प्रथम दिन से लेकर नवमी तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। बुधवार से प्रारंभ हुई नवरात्र में प्रथम दिन लोगों ने घरों में-मंदिरों में भक्तों ने कलश स्थापना कर माता शैलपुत्री की पूजा की। इन नौ दिनों में नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के रूप माता ब्रह्मचारिणी की पूजा- अर्चना की जाती है।मां ब्रह्मचारिणी त्याग- तपस्या की देवी हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तपस्या और आचरण करने वाली से है।
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भविष्य पुराण में मां ब्रह्मचारिणी का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी की कथा इस प्रकार है- ऐसा माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पर्वतराज हिमालय के घर पर जन्मी थीं। मां ब्रह्मचारिणी ने नारदमुनि के कहने पर भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। कहते हैं उनकी इसी घोर तपस्या के कारण ही उनका नाम तपश्चारिणी पड़ा था। माता ब्रह्मचारिणी ने हजारों वर्षों तक तपस्या की। तपस्या के दौरान मां ने केवल फल-फूलकर खाकर और जमीन में सोकर अपना जीवन व्यतीत किया।
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तपस्या के दौरान उन्होंने कई कष्ट सहे। खुले आसमान में उन्होंने न धूप की चिंता की, न ही वर्षा और शीत की। वे लगातार शिव आराधना में डूबी रहीं। बाद में उन्होंने फलाहार भी लेना बंद कर दिया। वे निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करने लगीं। इस कठिन तपस्या के कारण मांता का शरीर बेहद दुर्बल हो गया।
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सारे देवी-देवताओं, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व और पुण्य कृत्य बताया, उनकी कठोर तपस्या की सराहना की और उनसे आग्रह करते हुए कहा- हे देवी! आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और भगवान शिव तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे। अंत में भगवान शिव ने मां ब्रह्मचारिणी को अपनी देवी के रूप में स्वीकर किया। तब जाकर उनकी तपस्या सिद्ध हो गई।
जानिए माता ब्रह्मचारिणी उनकी पूजा अर्चना किस प्रकार करें कि वो आपसे प्रसन्न हों। जानें उन्हें क्या भोग लगाएं, क्या चढ़ाएं व पूजन के दौरान कौन सी आरती करें।
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नौ दुर्गा में ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय व अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमंडल रहता है। साधक यदि भगवती के इस स्वरूप की आराधना करता है तो उसमें तप करने की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है। जीवन के कठिन से कठिन संघर्ष में वह विचलित नहीं होता है। भगवती ब्रह्मचारिणी की कृपा से उसे सदैव विजय प्राप्त होती है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाएं और घर के सभी सदस्यों को दें। इससे आयु में वृद्धि होती है।

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