Hal Sashthi Vrat 2023: कब मनाया जाएगा हलषष्ठी या खमरछठ? जाने इस पूजन के पीछे का उद्देश्य, मुहूर्त और सम्पूर्ण पूजन विधि

Hal Sashthi Vrat 2023: कब मनाया जाएगा हलषष्ठी या खमरछठ? जाने इस पूजन के पीछे का उद्देश्य, मुहूर्त और सम्पूर्ण पूजन विधि

Luck Of These People Will Change On Hal Sashthi Vrat 2023

Modified Date: September 3, 2023 / 08:57 pm IST
Published Date: September 3, 2023 8:55 pm IST

रायपुर: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी अथवा हरछठ मनाई जाएगी। (Luck Of These People Will Change On Hal Sashthi Vrat 2023) इसका शुभ मुहूर्त भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 04 सितंबर 2023 को शाम 04 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 05 सितंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर हलषष्ठी का व्रत 05 सितंबर को रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए एवं अपनी संतान की रक्षा के लिए व्रत और उपवास करती हैं।

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भगवान विष्णु से जुड़ा है पर्व

हलषष्ठी अथवा हरछठ भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम का जन्म दिवस है। सारे भारत में इसे श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान बलराम, शेषनाग का अवतार हैं जिन्होंने भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार में आने से पहले ही जन्म ले लिया था। भगवान बलराम मल्लयुद्ध में पारंगत थे और गदा शस्त्र के विशेषज्ञ थे परंतु उन्होंने हमेशा हल धारण किया। यानी द्वापर युग में भगवान बलराम सृजन के देवता थे। हल धारण करने के कारण भी बलरामजी को हलधर नाम से भी जाना जाता है। भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान हैं। यह पर्व श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद विभिन्न नामों के साथ इसे चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ, रंधन षष्ठी कहते हैं।

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क्या होता है फलाहार ?

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है हल। यानि जिस अन्न को हल से नहीं जोता गया हो। इस दिन व्रत के दौरान कोई अनाज नहीं खाया जाता। महुआ की दातुन की जाती है। तालाब में उगने वाली चीजें ही खाई जाती हैं। जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसाही के चावल। हलषष्ठी व्रत में भैंस का दूध, दही और घी का इस्तेमाल प्रयोग किया जाता है। गाय के किसी भी प्रकार के उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का उपयोग नहीं किया जाता। हलषष्ठी पर घर या बाहर दीवाल पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। जिसके बाद भगवान गणेश और मां गौरा का पूजन किया जाता है। घर में ही तालाब बनाकर महिलाएं उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं। इसी स्थान पर बैठकर पूजन होता है। जिसमें हल षष्ठी की कथा सुनी जाती हैं।

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