Pitru Paksha Shradh 2024 : पितृपक्ष का दूसरा दिन.. इस मुहूर्त में करें श्राद्ध, जानें नियम और कर्म, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद
Pitru Paksha Shradh 2024 : पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा करना, तर्पण और पिंडदान करने का अत्यधिक महत्व होता है।

Magh Purnima 2025/ Image Credit: IBC24 File
नई दिल्ली। Pitru Paksha Shradh 2024 : पितरों को संतुष्ट करने के लिए पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध किए जाते हैं। इन 15 दिनों में नित्य जल दान व तिथि पर अन्न व वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। आज 19 सितंबर, गुरुवार के दिन पितृ पक्ष का दूसरा श्राद्ध (Shraddh) किया जा रहा है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा करना, तर्पण और पिंडदान करने का अत्यधिक महत्व होता है। पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने की भी कोशिश की जाती है ताकि घर-परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहे।
द्वितीया तिथि का श्राद्ध
Pitru Paksha Shradh 2024 : द्वितीया तिथि का श्राद्ध पितृपक्ष के दूसरे दिन किया जाता है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु हिंदू पंचांग के अनुसार द्वितीया तिथि को होती है। द्वितीया तिथि के श्राद्ध कर्म में मुख्य रूप से पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन कराने की परंपरा होती है। इस दिन परिवार के लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
तिथि और शुभ मुहूर्त
- पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष के दूसरे दिन की द्वितीया तिथि 19 सितंबर को 04 बजकर 19 मिनट पर शुरू हो चुकी है और 20 सिंतबर को 00 बजकर 39 मिनट पर खत्म होगी।
- कुतुप मूहूर्त सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में श्राद्ध के लिए केवल 49 मिनट का समय मिलेगा।
- रौहिण मूहूर्त दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से 13 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में श्राद्ध-तर्पण के लिए भी 49 मिनट का समय मिलेगा।
- अपराह्न काल का मुहूर्त 13 बजकर 28 मिनट से 15 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में पितरों के श्राद्ध के लिए कुल 2 घण्टे 27 मिनट का समय मिलेगा।
द्वितीया तिथि पर श्राद्ध की विधि
पिंडदान: आटे, चावल, या जौ से बने पिंड (गोल आकार के गोले) बनाए जाते हैं, जो पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
तर्पण: जल में तिल मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है।
ब्राह्मण भोज: श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना और दक्षिणा देना महत्वपूर्ण माना जाता है।
ध्यान और प्रार्थना: आखिर में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ध्यान और प्रार्थना की जाती है। ताकि हमारे जीवन में सुख-शांति और संपन्नता सदैव बनी रहे।
पितृपक्ष के नियम और कर्म
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करते हैं। यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है। जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है। पितृपक्ष में जिस दिन पूर्वज के देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है। और उसी तिथि को किसी निर्धन या ब्राह्मण को भोजन भी कराया जाता है। इसके बाद पितृपक्ष के कर्मों का समापन हो जाता है।
श्राद्ध करने की आसान विधि
जिस तिथि में पितरों का श्राद्ध करना हो, उस दिन सुबह जल्दी उठें।
स्नानादि के बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें।
पितृस्थान को गाय के गोबर से लीप कर और गंगाजल से पवित्र करें।
महिलाएं स्नान करने के बाद पितरों के लिए सात्विक भोजन तैयार करें।
श्राद्ध भोज के लिए ब्राह्मणों को पहले से ही निमंत्रण दें।
ब्राह्मणों के आगमन के बाद उनसे पितरों की पूजा और तर्पण कराएं।
पितरों का नाम लेकर श्राद्ध करने का संकल्प लें।
जल में काला तिल मिलाकर पितरों को तर्पण दें।
पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, घी, खीर और दही अर्पित करें।
चावल के पिंड बनाकर पितरों को अर्पित करें।
ब्राह्मण को पूरे सम्मान के साथ भोजन कराएं।
अपनी क्षमतानुसार दान-दक्षिणा दें।
इसके बाद आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें।
श्राद्ध में पितरों के अलावा कौए, देव, गाय, और चींटी को भोजन खिलाने का प्रावधान है।