Who is Kirtimukha: कीर्तिमुख कौन है, जिसने देवताओं से भी ऊंचा दर्जा हासिल किया? उसने भगवान शिव के आदेश पर खुद को ही खा लिया! जान लें अनोखी कथा

किसी प्राचीन मंदिर में घुसते ही आपकी नज़र तुरंत एक डरावने नक्काशीदार चेहरे पर पड़ती है। यह शिव के गुस्से से पैदा हुआ एक जीव है, लेकिन जिसने उनके आदेश पर खुद को खाकर अमरता पाई। यह न तो देवता है, न राक्षस, न ही कोई दानव, बल्कि...

Who is Kirtimukha: कीर्तिमुख कौन है, जिसने देवताओं से भी ऊंचा दर्जा हासिल किया? उसने भगवान शिव के आदेश पर खुद को ही खा लिया! जान लें अनोखी कथा

Kirtimukha kaun hai

Modified Date: November 7, 2025 / 01:39 pm IST
Published Date: November 7, 2025 1:33 pm IST
HIGHLIGHTS
  • "मंदिरों के प्रवेश द्वार पर एक डरावना चेहरा क्यों लगाया जाता है?" सच जानें

Who is Kirtimukha: भारत के प्राचीन मंदिरों प्रवेश द्वार पर अक्सर एक भयावह लेकिन आकर्षक चेहरे पर पड़ती है। यह चेहरा न दयालु है, न सुंदर—बल्कि विकराल, दांत निकले हुए, आंखें उभरी हुईं, एक ऐसी मुस्कान जो डराती भी है और मोहित भी करती है और मुंह इतना चौड़ा कि लगता है सब कुछ निगल जाएगा। यह है “कीर्तिमुख”, जिसे “गौरव का मुख” कहा जाता है। यह न तो देवता है, न असुर, न राक्षस – बल्कि शिव की आज्ञा का जीवंत प्रमाण। यह स्वयं को खाकर भी जीवित रहा, इसलिए इसे “आत्म-भक्षी अमर मुख” भी कहा जाता है।

Who is Kirtimukha: कौन है कीर्तिमुख?

कीर्तिमुख एक राक्षस नहीं, बल्कि भगवान शिव के गण थे, जिनका जन्म शिवजी के माथे पर लगे चंद्रमा को राहु के ग्रहण लगाने पर उनके क्रोध से हुआ था। भगवान शिव के आदेश पर कीर्तिमुख ने अपना पूरा शरीर खा लिया और केवल मुख ही बचा रह गया। यह एक ऐसा प्राणी है जो शिव के क्रोध से जन्मा, लेकिन उनके आदेश के पालन से अमर हो गया।
शिवजी की प्रसन्नता के बाद, कीर्तिमुख को वरदान मिला कि वह जहाँ भी जाएगा, वहाँ की नकारात्मक ऊर्जा और द्वेष एवं क्रोध को भी निगल जायेगा, इसलिए लोग अपने घरों और मंदिरों के दरवाजों पर कीर्तिमुख की प्रतिमा लगाते हैं, ताकि बुरी नज़र और नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश न कर सके।

Who is Kirtimukha: कीर्तिमुख की कथा

आज हम आपको बताएँगे एक ऐसी पौराणिक कथा जो शायद ही अपने सुनी होगी। ये कथा है “कीर्तिमुख” की। कीर्तिमुख की उत्पत्ति शिव पुराण की एक प्रसिद्ध कथा से जुड़ी है। कथा शुरू होती है असुर राजा जलंधर से। जलंधर की पत्नी वृंदा की पतिव्रता शक्ति इतनी प्रबल थी कि अपनी पत्नी वृंदा की कठोर तपस्या के फलस्वरूप उसने असीम शक्तियां प्राप्त कीं। वह इतना अभिमानी हो गया कि उसने स्वयं को देवताओं से श्रेष्ठ घोषित कर दिया। उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और अपने दूत के रूप में राहु को भेजा (जो चंद्र ग्रहण का कारण बनने वाला असुर है)। जब शिव ध्यान में लीन थे, तो अहंकारी राहु ने उनके मस्तक पर चंद्रमा को ग्रहण लगा दिया। राहु ने शिव से कहा, “हे शिव! जलंधर तुमसे पार्वती मांगते हैं।” यह सुनकर शिव के तीसरे नेत्र से अग्नि की ज्वाला फूटी।

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शिव क्रोधित हो उठे। उनके तीसरे नेत्र से एक भयंकर ज्वाला प्रकट हुई, जिसमें से एक दुबला-पतला, भूख से तड़पता, सिंह-मुखी प्राणी “कीर्तिमुख” का जन्म हुआ। उसकी आंखें लाल, दांत नुकीले, और भूख इतनी कि वह कुछ भी खा सकता था। यह प्राणी इतना भयावह था कि राहु डर के मारे शिव के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा। शिव ने राहु को क्षमा तो दे दी। लेकिन कीर्तिमुख की विकराल भूख को देखकर उसे एक अनोखा आदेश दिया कि जाओ, जो कुछ भी मिले, उसे खा लो।”

“कीर्तिमुख” को चारों ओर कुछ नहीं मिला। उस प्राणी ने कहा कि उसे किसी को खाने के लिए पैदा किया गया है, तो वह अब क्या करे? शिवजी ने उसे यूं ही कह दिया कि एक काम करो, तुम अपने ही शरीर को ही खा जाओ। शिवजी को ये एहसास न था की वह प्राणी उनके उस आदेश का भी पालन करेगा। उसने अपना शरीर खाना शुरू किया, सबसे पहले अपनी पूंछ, फिर धड़, आखिर में पूरा शरीर खाने लगा और जब केवल मुख बचा हुआ था, तो शिवजी का उसपर ध्यान गया और उन्होंने उसे रोक दिया।

कैसे मिला देवताओं से भी ऊपर का दर्जा?

यह दृश्य देख भगवान् शिव अत्यंत प्रसन्न हो गए। उन्होंने कहा, तुम्हारा मुख तेजस्वी है और जिस तरह इतनी सख्ती से तुमने मेरे आदेश का पालन किया कि तुम्हारा त्याग देखने लायक था। अब से तुम्हारा नाम “कीर्तिमुख” होगा जिसका अर्थ है “गौरवपूर्ण चेहरा”। तुम मेरे मंदिरों के द्वारों पर सदा विराजमान रहोगे। तुम्हें मैं देवताओं से भी ऊपर का दर्जा देता हूँ, जो भक्त तुम्हें प्रणाम करेगा, उसे मेरी कृपा प्राप्त होगी।”

Who is Kirtimukha: घरों और मंदिरों के बाहर क्यों लगाया जाता है ?

कीर्तिमुख का भयावह स्वरूप कोई संयोग नहीं है; यह एक चेतावनी और रक्षा का प्रतीक है। मान्यता है कि यह “नजर बट्टू” की तरह कार्य करता है, जो घरों और मंदिरों को बुरी नजर से बचाता है। यह केवल शिव मंदिरों में नहीं बल्कि अन्य देवताओं के मंदिरों में भी पाया जाता है। वो इसलिए क्यूंकि, मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्त को अपना क्रोध, अहंकार, लोभ, द्वेष और आसक्ति त्यागनी पड़ती है। कीर्तिमुख का मुंह खुला रहना दर्शाता है कि यह सब कुछ निगल लेगा, ताकि भक्त शुद्ध मन से भगवान का दर्शन हो सके।

Disclaimer:- उपरोक्त लेख में उल्लेखित सभी जानकारियाँ प्रचलित मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है। हमारा उद्देश्य केवल सूचना पँहुचाना है।

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