तीरंदाज बनना चाहती थीं मीराबाई चानू, किताब ने बदल दी जिंदगी, लकड़ी बीनने से लेकर वेटलिफ्टर तक का सफर.. देखिए

तीरंदाज बनना चाहती थीं मीराबाई चानू, किताब ने बदल दी जिंदगी, लकड़ी बीनने से लेकर वेटलिफ्टर तक का सफर.. देखिए
Modified Date: November 29, 2022 / 08:32 pm IST
Published Date: July 24, 2021 4:27 pm IST

नई दिल्ली। टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मैडल पर कब्जा करने वाली मीराबाई चानू ओलंपिक में मेडल जीतने वालीं भारत की दूसरी वेटलिफ्टर बन गई हैं। उन्होंने 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता।

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8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में जन्मीं मीराबाई चानू का सपना तीरंदाज बनने का था, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अपना करियर चुनना पड़ा।

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मणिपुर से आने वालीं मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता। वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर रही हैं।

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तीरंदाज यानी आर्चर बनने की चाह के बीच कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया। क्योंकि 8वीं कि किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी का जिक्र था।

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बता दें कि इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं। कोई भी भारतीय महिला वेटलिफ्टर कुंजरानी से ज्यादा मेडल नहीं जीत पाई है।

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बस, कक्षा आठ में तय हो गया कि अब तो वजन ही उठाना है। इसके साथ ही शुरू हुआ मीराबाई का करियर। साल 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में 48 किलो भारवर्ग में उन्होंने भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता।

 

 

 


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