एनएसजी अधिनियम: मंत्रालय ने एनएसएफ के लिए चुनाव की समय सीमा में ढील दी
एनएसजी अधिनियम: मंत्रालय ने एनएसएफ के लिए चुनाव की समय सीमा में ढील दी
नयी दिल्ली, 22 दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय खेल संचालन (एनएसजी) अधिनियम को जनवरी में पूरी तरह से लागू करने की तैयारी करते हुए खेल मंत्रालय ने सोमवार को फैसला किया कि जो राष्ट्रीय खेल महासंघ (एनएसएफ) आने वाले महीनों में चुनाव कराने वाले हैं उन्हें नए कानून के तहत जरूरी ‘बुनियादी’ बदलावों को लागू करने के लिए दिसंबर 2026 तक चुनाव टालने की इजाजत दी जाएगी।
अगस्त में अधिनियम पारित होने के बाद पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा था कि इसे जनवरी में लागू किया जाएगा। उन्होंने पिछले हफ्ते एक बातचीत में इस बात को दोहराया। अधिनियम को लागू करने के लिए मसौदा नियम कानूनी सलाह के बाद अंतिम चरण में हैं।
अगले साल सबसे अधिक इंतजार एआईएफएफ (अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ) के चुनाव का है जिसके प्रमुख अभी कल्याण चौबे हैं। पीटी उषा की अगुवाई वाला भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) भी अगले साल के आखिर में चुनाव कराने वाला है।
मंत्रालय ने सभी एनएसएफ और आईओए को लिखे एक पत्र में कहा, ‘‘एनएसजी अधिनियम 2025 के तहत अनुपालन की जरूरतों के लिए एनएसएफको मजबूत चुनावी ढांचा और प्रक्रियाएं स्थापित करने और एनएसएफ के संविधान/नियमों को एनएससी अधिनियम के समरूप करने के लिए पर्याप्त तैयारी का समय चाहिए।’’
मंत्रालय ने कहा कि एनएसएफ को अपनी आम सभा को पुनगर्ठित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए ‘उचित उपाय’ करने होंगे कि उनके मतदान करने वाले सभी सदस्य और संबद्ध इकाइयां एनएसजी अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हों।
मंत्रालय ने कहा कि एनएसएफ के चुनाव कार्यक्रम की समीक्षा करने के बाद उसे लगा कि बदलावों का कार्यान्वयन ‘बुनियादी प्रकृति’ का है।
पत्र के अनुसार, ‘‘…और जिन एनएसएफ के चुनाव आने वाले महीनों में होने हैं उनके पास सीमित समय-सीमा में इन बदलावों को प्रभावी ढंग से पूरा करना मुश्किल हो सकता है।’’
इसमें कहा गया, ‘‘नई संचालन कार्ययोजना के तहत सुचारू बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिए और साथ ही एनएसएफ द्वारा एनएसजी अधिनियम के तहत वैधानिक जरूरतों को लागू करने के लिए पर्याप्त समय देने के लिए यह तय किया गया है कि जिन एनएसएफ के चुनाव आने वाले महीनों में होने वाले हैं उन्हें 31 दिसंबर तक चुनाव टालने की इजाजत दी जाती है यह एक बदलाव के दौर से जुड़ा उपाय है।’’
इसका एकमात्र अपवाद वे मामले हैं जहां अदालतों के विशिष्ट निर्देश हैं।
भाषा सुधीर आनन्द
आनन्द

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